Political – जम्मू-कश्मीर: पब्लिक ने कैसे बंद कर दीं प्रॉक्सी नेताओं की दुकानें?- #INA
इंजीनियर रशीद
त्रिशंकु विधानसभा का ख्वाब सजाए बैठे राजनीति के धुरंधरों को जम्मू-कश्मीर से काफी निराशा हुई होगी. किंगमेकर बनने-बनाने, 5 विधायक नॉमिनेट कर बहुमत के आंकड़े में हेरफेर करने की आशंका और जोड़-तोड़ से सरकार बना लेने की मंशा पाले लोगों को तब केवल मायूसी हाथ लगी जब देश के इकलौते मुस्लिम बाहुल्य सूबे ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दे दिया. इंडिया गठबंधन इसलिए क्योंकि ये सिर्फ कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की जीत नहीं थी, बल्कि इसमें सीपीएम और पैंथर्स पार्टी भी भागीदार थी. ये और बात कि पैंथर्स पार्टी अपने हिस्से की इकलौती सीट नहीं जीत सकी. नेशनल कांफ्रेंस की अगुवाई वाली इंडिया गठबंधन ने जम्मू कश्मीर की 90 में से 49 सीटों पर जीत तो दर्ज किया. पर ऐसा करते हुए उन्होंने जम्मू कश्मीर में प्रॉक्सी का तमगा लिए घूम रहे नेताओं और राजनीतिक दलों की दुकानें भी बंद कर दी.
1. अल्ताफ बुखारी अपनी सीट भी नहीं जीत सके
वे सभी छोटी पार्टियां या निर्दलीय उम्मीदवार जिनको जम्मू कश्मीर में बीजेपी का हिमायती समझा जा रहा था, वे सभी एक झटके में न सिर्फ चुनाव हारे बल्कि वह कारनामा भी नहीं कर सके जिसकी उम्मीद दिल्ली से लगाई जा रही थी. जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने और राज्य दो हिस्सों में बांट देने के बाद जम्मू कश्मीर में एक नया विकल्प बनकर उभरने की बात करने वाली अपनी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी है. इसके मुखिया अल्ताफ बुखारी श्रीनगर जिले की चन्नापोरा सीट पर खुद चुनाव हार गए. उनपर घाटी में भाजपा का प्रॉक्सी होने का इल्जाम लगता रहा है. इस चुनाव की रोचकता का अंदाजा इससे भी लगाया जाना चाहिए कि जम्मू कश्मीर की आवाम ने महज 1 हजार रुपये की संपत्ति वाले बीजेपी अध्यक्ष रविंदर रैना को तो नौशेरा से हराया ही. साथ ही, बीजेपी से नजदीकी रखने वाले बुखारी को भी नहीं बख्शा जिनके पास 165 करोड़ रुपये की संपत्ति थी.
2. सज्जाद गनी लोन मुश्किल से अपनी सीट जीत पाए
अल्ताफ बुखारी से लोकसभा चुनाव में बारामुला लोकसभा सीट पर मदद लेने वाले जम्मू कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन का भी लगभग सफाया हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ा भाई कहने और कुछ एक मर्तबा केंद्र से बात करने की वजह से उन्हें कश्मीर में बीजेपी के साथ नरम रुख रखने वाला नेता देखा गया. नतीजा ये हुआ कि वे पहले तो लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारे और अब पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जो दो सीटों पर जीती थी. इस बार वह घटकर 1 पर आ गई है. लोन जैसे तैसे केवल अपनी हंदवाड़ा सीट, वह भी 662 वोटों के अंतर से बचा पाए हैं. लोन हंदवाड़ा के अलावा कुपवाड़ा से भी लड़ रहे थे मगर जीत नहीं सके. उनकी पार्टी कुल 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी मगर 1 से आगे नहीं बढ़ सकी.
3. इंजीनियर रशीद की पार्टी साबित हुई फिसड्डी
चुनाव से ठीक पहले बारामुला से सांसद और आवामी इत्तेहाद पार्टी के नेता इंजीनियर रशीद को दिल्ली मीडिया में एक्स फैक्टर बताया जा रहा था. कयास लग रहे थे कि चुनाव के बाद उनकी पार्टी किंगमेकर की भूमिका में होगी और वह लोकसभा चुनाव ही की तरह विधानसभा चुनाव में भी चौंकाएंगे. मगर मोटे तौर पर अगर कहें तो इंजीनियर रशीद की पार्टी को भी जम्मू कश्मीर की आवाम ने नकार दिया है. दो दर्जन से भी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही इंजीनियर की पार्टी केवल 1 सीट जीतने में सफल हुई है. नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की लांगेट सीट, जहां से वह दो बार विधायक रह चुके हैं, से रशीद के भाई खुर्शीद अहमद शेख ने महज 1,602 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. लेकिन इस एक सीट पर रशिद को समेटकर जम्मू कश्मीर की आवाम ने इंजीनियर पर लग रहे प्रॉक्सी के इल्जाम को कुछ हद तक जरुर कुबूल कर लिया है.
4. जमात और आजाद, दोनों में से किसी की नहीं चली
इसी तरह, 1987 के बाद पहली मर्तबा जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़ रही प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी के आजाद उम्मीदवारों की एक नहीं चल सकी है. कम से कम 10 सीटों पर निर्दलीय चुनाव लड़ रही जमात की विश्वसनीयता पर चुनाव में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने यह कहकर सवाल खड़ा किया था कि असली जमात तो जेल में है. दक्षिण कश्मीर जो कि जमात का गढ़ है, वहां भी उनके उम्मीदवार अच्छा नहीं कर सके. जमात ही की तरह कांग्रेस को अलविदा कहकर अपनी पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद को भी जम्मू कश्मीर में भाजपा का प्रॉक्सी कहा गया था. उन्होंने भरसक लोगों की बात कह इस आरोप को झुठलाने की कोशिश की मगर चुनावी नतीजों में जनता ने उनकी पार्टी को सिरे से खारिज कर दिया. इस तरह अगर देखा जाए तो जम्मू कश्मीर चुनाव ने प्रॉक्सी का आरोप झेल रहे नेताओं और पार्टियों पर ऐतबार न के बराबर किया है.
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