78 वें स्वतंत्रता दिवस ( अमृत महोसव) पर्व पर विशेष: आजादी के सिपाही – तुलसी प्रसाद मिश्रा
आलेख : देवेन्द्र साहू राजनांदगांव, छत्तीसगढ
छुरिया विकासखंड के चिरचारी कला में 9 नवंबर 1903 को तुलसी प्रसाद मिश्रा का जन्म हुआ । 1929 में शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र देकर आजादी की लड़ाई में अपने आप को झोंक दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से आप इतने प्रभावित हुए कि वर्धा आश्रम में तीन माह रह कर सत्य, सेवा, अहिंसा और सत्याग्रह की ओर उन्मुख हो गए थे.
राजनांदगांव जिले का एक विकासखंड छुई खदान की शहीद नगर के रूप में पहचान बन गई है। जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में ठाकुर प्यारेलाल सिंह, लोटन सिंह ठाकुर, कुंज बिहारी चौबे, आर.एस. रूईकर, गोवर्धन लाल वर्मा, कन्हैया लाल अग्रवाल, दशरथ साहू, मानिक भैया गोंदिया वाले, रामाधीन गोंड़ , दामोदरदास टावरी, विद्या प्रसाद यादव, विश्राम दास बैरागी, बहुर सिंह ठाकुर, बुद्धू लाल साहू, रेवती दास के साथ पंडित तुलसी प्रसाद मिश्रा का भी योगदान सराहनीय रहा है।
प्रारंभिक जीवन
छुरिया विकासखंड के चिरचारी कला में पंडित अयोध्या प्रसाद मिश्रा एवं बिसाहिन मिश्रा के घर 9 नवंबर 1903 को तुलसी प्रसाद मिश्रा का जन्म हुआ। सन 1914 में सातवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण कर पिताजी की प्रेरणा से चिरचारी कला में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने लगे.आपके लगन से प्रभावित होकर उच्च शिक्षा अधिकारी ने शासकीय शिक्षक के रूप में नियुक्ति दे दी। सन 1928 में कमला मिश्रा के साथ आपका विवाह हुआ । तुलसी प्रसाद मिश्रा अपने वेतन से गरीब बच्चों के लिए पुस्तक ,काफी ,पेन खरीदने के साथ ही निर्धन ग्रामीणों का सहयोग करते थे । सन 1924 में ग्राम के बुजुर्गों के साथ मिलकर आपने ग्राम विकास समिति का गठन कर जन जागरण के संदेश देने लगे। इसकी भनक अंग्रेज अधिकारियों को लगी तो वे गुस्से में मिश्रा को शाला प्रांगण में ही ग्रामीणों के बीच अपमानित करने लगे । इससे ग्रामीण अंग्रेज शासक के प्रति आक्रोशित हो गए, लेकिन समय के पारखी की मिश्रा ने सब को शांत करा दिया । उस समय तुलसी प्रसाद के नाना रामअवतार जी राजनंदगांव स्टेट की रानी साहिबा सुंदरिया बाई के यहां मुख्तयार की नौकरी करते थे। आज भी चिरचारी कला में रानी साहिबा की 52 एकड़ की कृषि भूमि है। जब रानी साहिबा को पता चला कि उनके साथ अंग्रेज अधिकारियों ने बुरा व्यवहार किया है तो उन्हें राजनांदगांव बुलाकर उच्च पद पर नौकरी देना चाहा, लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। आजादी के बाद भी वे निरंतर समाज सेवा में तत्पर रहे। मिश्रा जी आचार्य विनोबा भावे जी के साथ भू – दान आंनदोलन मे भी सक्रिय रहे।
राष्ट्रप्रेम के लिए समर्पण
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से आप इतने प्रभावित हुए कि आपने जीवन को मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया।
नवंबर 1927 में महात्मा गांधी के मानस पुत्र जमना लाल बजाज जी ने राजनांदगांव में सत्याग्रह सम्मेलन रखा था। उस समय बजाज के साथ रानी साहिबा के महल में मिश्रा भी रुके थे । रानी साहिबा ने उन्हें बाजाज से मिलाया और दोनों सत्याग्रही सदस्य बन गए। इस दौरान गोवर्धन राम वर्मा और लोटन सिंह जी ठाकुर सत्याग्रह सदस्य रूप में अग्रणी थे ।
सक्रिय कार्यकर्ता
अंग्रेजों की गलत वन नीति के चलते ग्रामीणों को लकड़ियों काटने ,वनोपज लगाने ,घास काटने ,और मवेशी चराने भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था । इसके विरुद्ध मिश्रा ने आवाज बुलंद किया और जंगल सत्याग्रह की अगुवाई की । ठाकुर बांधा जंगल सत्याग्रह से अंग्रेज सरकार के विरुद् लोग एक होकर लड़े । छुरिया अंचल में जंगल सत्याग्रह का एक विशिष्ट स्थान रहा है इस सत्याग्रह में अंचल के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोगों को 5 मई 1936 को राजनांदगांव के उप जेल भेज दिया गया । 1 जनवरी 1937 को वे जेल से रिहा हुए । जेल से छूटने के बाद उनके जोश में और बढ़ोतरी हो गई। आंदोलनकारियों की बैठक लेकर 21 जनवरी 1939 को उग्र आंदोलन प्रारंभ हुआ। जिसमें आसपास की ग्रामों की जनता का पूर्ण सहयोग मिला। 21 जनवरी 1940 को जंगल सत्याग्रह चिरचारी कला से बाग द्वार फिर बादरा टोला पहुंचा । इस बीच बीच तत्कालीन मजिस्ट्रेट सुखदेव प्रसाद डोंगरगांव थानेदार के साथ हथियारबंद जवानों को लेकर बादराटोला पहुंच गए । पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोली चलाई। जिसमें रेवती दास को गोली लगने पर घायल अवस्था में अस्पताल पहुंचाया गया। रामाधीन गोंड़ के छाती में गोली लगने से वह शहीद हो गए ।
मिश्रा जी का आजादी का आंदोलन चलता रहा। अंग्रेज सिपाही मिश्रा के घर पहुंचकर उनके पत्नी और बच्चों को प्रताड़ित करते थे। ताकि वे टूट कर आंदोलन की राह से हट जाए। परंतु वे बिना विचलित हुए जी जान से अंतिम समय तक लड़ते रहे। 6 मई 2010 को आपने अंतिम सांस ली। जिले के जनप्रतिनिधियों एवं हजारों लोगों की उपस्थिति में गैंदाटोला थाना पुलिस बल द्वारा सशस्त्र सलामी देकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला चिरचारी कला का नामकरण इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर किया गया है। उनके छोटे से पुत्र प्रहलाद कुमार मिश्रा प्रवचन कार एवं साहित्यानुरागी हैं । छुरिया क्षेत्र के अनेक सूरवीरों का संघर्ष छुरिया अंचल ही नहीं , अपितु राजनांदगांव जिला के साथ ही प्रदेश की आजादी की इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है।