Political – मनोज जरांगे के चुनावी मैदान में उतरने से किसे नफा और किसे होगा नुकसान- #INA
मनोज जरांगे
मराठा आरक्षण आंदोलन के अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने सियासी पिच पर उतरने का ऐलान किया है. जरांगे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ‘मराठा समाज किस्मत आजमाएगा. मराठा समाज की दो दिनों से चल रही बैठक को संबोधित करते हुए मनोज जरांगे ने ऐलान किया है कि मराठा समाज पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ेंगे. मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े हुए नेताओं के चुनावी मैदान में उतरने से महाराष्ट्र चुनाव में सियासी गेम बदल सकता है. अब देखना है कि किसे नफा और किसे नुकसान होता है?
मनोज जरांगे ने घोषणा की है कि जिस सीट पर मराठा उम्मीदवार के जीतने की संभावना है, वहीं से चुनाव लड़ें. इसके अलावा एससी-एसटी रिजर्व सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में जो मराठा आरक्षण का समर्थन करेंगे, उसके पक्ष में वोटिंग के लिए अपील जारी करेंगे. मराठा समाज के उम्मीदवार जिस सीट पर नहीं होंगे, वहां पर जो उम्मीदवार लिखित रूप से मराठा समाज का समर्थन करेगा, उसे ही मराठा समुदाय के लोगों से वोट करने की अपील जारी की जाएगी.
रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरे
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मनोज जरांगे ने बहुत ही रणनीति के साथ चुनाव में उतरने का प्लान बनाया है. उन्होंने कहा कि मराठवाडा की कई सीटों पर मराठा समुदाय के वोट 70 हजार से एक लाख तक है. इतने बड़े बहुमत को तोड़ना किसी के लिए भी संभव नहीं है. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य समीकरण महत्वपूर्ण हैं. वह उन समीकरणों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इस तरह से मराठा समुदाय के लिए चुनाव में आरक्षण का एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहते हैं.
मराठा समुदाय की आबादी
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी करीब 30 फीसदी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. मराठा समाज का समर्थन मनोज जरांगे ने आरक्षण आंदोलन से हासिल कर रखा है. मराठा बहुल सीटों पर मनोज जरांगे के द्वारा उम्मीदवार उतारने से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ही नहीं बल्कि कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन का गेम भी बिगड़ सकता है.
वोटों का विभाजन हो सकता है
हालांकि, मनोज जरांगे की नाराजगी खासकर डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी को लेकर है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन मराठा समाज के उम्मीदवार के उतरने से ओबीसी समाज के वोटों का ध्रुवीकरण भी हो सकता है. इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. ऐसे में अगर दोनों ही गठबंधन के द्वारा चुनाव में ओबीसी उम्मीदवार उतारते हैं तो दोनों के बीच वोटों का विभाजन होगा और दोनों को नुकसान झेलना पड़ सकता है.
मराठवाड़ा पर सभी की निगाहें
महाराष्ट्र में ओबीसी और मराठों काफी अहम हैं. ओबीसी कई जातियों में बंटा हुआ तो मराठा समाज राजनीतिक रूप से बिखरा हुआ है. मनोज जरांगे पाटिल मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण की मांग कर रहे हैं, जिसे लेकर ओबीसी समुदाय खुश नहीं है. सूबे में मराठा आरक्षण आंदोलन का गढ़ रहे मराठवाड़ा पर विधानसभा चुनाव में सभी की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि जातीय ध्रुवीकरण के प्रभाव इसी क्षेत्र में होना है. ऐसे में मराठा समाज के प्रभाव वाली 46 सीटें है, जो किस करवट बैठेंगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं है.
मराठवाड़ा बेल्ट की 46 सीटों के नतीजे को देखें तो 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना (अविभाजित) गठबंधन 28 सीटें जीतने में कामयाब रही थीं. बीजेपी 16 और शिवसेना को 12 सीटें मिली थीं. कांग्रेस और एनसीपी को आठ-आठ सीटें मिली थी तो अन्य को दो सीटें मिली थीं.
मराठा समुदाय का आंदोलन
साल 2023 में मराठा समुदाय को कुनबी (खेतिहर मराठा) का दर्जा देकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे में आरक्षण दिलवाने के लिए शुरू हुए आंदोलन ने पूरे मराठवाड़ा की हवा बदल दी है. मराठा युवक मनोज जरांगे पाटिल के एक आह्वान ने 2024 लोकसभा चुनाव में मराठवाड़ा बेल्ट में बीजेपी को एक भी सीट नहीं जीतने दी थी. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए मराठवाड़ा के दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कोई करिश्मा नहीं दिखा सके तो अजीत पवार भी बेअसर रहे. इस क्षेत्र की आठ लोकसभा सीटों में से 3 कांग्रेस और 3 सीटें उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने जीती थीं. शरद पवार की एनसीपी और शिंदे की शिवसेना एक-एक सीटें जीती थी.
मराठवाड़ा में मराठा समाज का दबदबा
मराठावाड़ा में जातीय गणित के आधार पर देखें तो आठ में से सात सीट मराठा समाज के उम्मीदवारों ने जीती हैं जबकि एक सीट लातूर दलितों के लिए आरक्षित है, जहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. जातीय ध्रुवीकरण की स्थिति ऐसी रही कि छत्रपति संभाजी महाराज नगर से ओबीसी से आने चंद्रकांत खैरे को हराकर शिवसेना (शिंदे) के मराठा उम्मीदवार संदीपन भुमरे को जिताया था. इससे समझा जा सकता है कि किस तरह से मराठा समुदाय ने मराठवाड़ा की सियासत में उलटफेर किया था.
मराठवाड़ा में सियासी उलटफेर
मराठवाड़ा बेल्ट के चुनावी नतीजे बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन (महायुति) के लिए अच्छे संकेत नहीं थे. अब मनोज जरांगे ने विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी है, उन्होंने तो संभावित उम्मीदवारों के साक्षात्कार भी लेने शुरू कर दिए हैं. मराठवाड़ा में सियासी उलटफेर कई सीटों पर हो सकता है. महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में भले ही मराठा आंदोलन का असर न रहे, लेकिन मराठवाड़ा के मराठा तो उनके पीछे चलने को तैयार दिख रहे हैं.
खेतिहर मराठों का केंद्र
मराठवाड़ा जिस प्रकार से खेतिहर मराठों का केंद्र है, उसी प्रकार वंचित-ओबीसी मतदाताओं का भी बड़ा गढ़ है. गोपीनाथ मुंडे मराठवाड़ा क्षेत्र के बड़े ओबीसी नेता रहे हैं, लेकिन उनकी विरासत उनकी बेटी पंकजा मुंडे संभाल रही हैं. पंकजा के चचेरे भाई धनंजय मुंडे अब पंकजा के साथ आ चुके हैं. विजयदशमी के दिन 11 साल बाद दोनों बहन-भाई एक साथ एक मंच पर नजर आए. मराठवाड़ा में ओबीसी वोटों का आधार इन्हीं दोनों नेताओं पर टिका है.
सबसे बड़े मराठा नेता शरद पवार
मनोज जरांगे पाटिल के मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण सबसे ज्यादा असुरक्षित ओबीसी समाज ही महसूस कर रहा है. वह नहीं चाहता कि उसके आरक्षण कोटे में कोई और आकर सेंध लगाए. मराठा आंदोलन ने पिछले एक साल में खासतौर से मराठवाड़ा के गांव-गांव में ऐसी दरार डाली है कि दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा लेना भी बंद कर दिया है. यह बात वरिष्ठ ओबीसी नेता छगन भुजबल खुद जाकर सबसे बड़े मराठा नेता शरद पवार को बता चुके हैं.
मराठा और ओबीसी ध्रुवीकरण के साथ-साथ मराठवाड़ा की 15 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी अपना असर दिखाने से नहीं चूकेगी. खासतौर से असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम इस क्षेत्र में अपना अच्छा असर रखती है. इम्तियाज जलील कुछ ही दिन पहले छत्रपति संभाजी महाराज नगर से मुंबई तक एक बड़ी कार रैली निकालकर शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं की भांति ही दलितों की भी बड़ी आबादी मराठवाड़ा में है. इस तरह दलित, मुस्लिम, मराठा और ओबीसी मतदाता मराठवाड़ा की सियासत पर असर रखते हैं, इनमें से जो भी इन्हें साध लेगा, उसकी सियासी नैया पार है.
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