Political – महाराष्ट्र का जानें जाति समीकरण, जिसके इर्द-गिर्द सिमटा चुनाव, सत्ता बनाने और बिगाड़ने में होगा निर्णायक- #INA

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान सोमवार शाम थम जाएगा और सभी 288 सीटों पर बुधवार को एक साथ मतदान है. मराठा बनाम ओबीसी और धनगर बनाम आदिवासी आरक्षण की सियासी तपिश के बीच महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. बीजेपी नेतृत्व वाली महायुति और कांग्रेस अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी महाराष्ट्र की चुनावी बाजी जीतने के लिए जातीय की बिसात पर सियासी एजेंडा सेट कर रही है. इसके चलते पूरा चुनाव कॉस्ट पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द सिमट रहा है, जिससे साफ है कि इससे ही सत्ता की दशा और दिशा तय होनी है?

कांग्रेस और उसके सहयोगी उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) व शरद पवार की एनसीपी (एस) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित-ओबीसी वोट को अपने पक्ष में करने के लिए ‘संविधान और आरक्षण’ का नैरेटिव सेट किया था, जिसका लाभ भी उसे मिला था. विधानसभा चुनाव में भी महा विकास अघाड़ी ने अपनी पूरी सियासत इसी एजेंडे पर बिछा रखी है. कांग्रेस-उद्धव और शरद पवार की सियासी तिकड़ी को उसी के दांव से बीजेपी और महायुति के दलों ने मात देने की स्ट्रैटेजी बनाई है. इस तरह महायुति एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के जरिए महाराष्ट्र की सत्ता पर अपना दबदबा बनाए रखने में लगी है.

महाराष्ट्र का जातीय समीकरण

महाराष्ट्र के जातीय समीकरण में सबसे बड़ी आबादी मराठा समुदाय की है, जिसके चलते ही सूबे की सत्ता पर मराठा समुदाय का लंबे समय तक कब्जा रहा है. सूबे में करीब 28 फीसदी मराठा आबादी है तो दलित 12 फीसदी और मुस्लिम 12 फीसदी है. महाराष्ट्र में 8 फीसदी आदिवासी और ओबीसी की आबादी 38 फीसदी के बीच है और अलग-अलग जातियों में बंटी हुई है. ब्राह्मण और अन्य समुदाय की आबादी 8 फीसदी है.

ओबीसी में मुस्लिम ओबीसी जातियां भी शामिल हैं. इसके अलावा ओबीसी में तमाम जातियां है, जिसमें तेली, माली, लोहार, कुर्मी, धनगर, घुमंतु, कुनबी और बंजारा जैसी 356 जातियां शामिल हैं. इसी तरह दलित जातियां महार और गैर-महार के बीच बंटी हुई है. महार की जातियां नवबौद्ध धर्म के तहत आती हैं तो गैर-महार जातियां मंग, मातंग, चंभर ने भी नवबौद्ध अपना रखा है.

प्रदेश की पूरी सियासत लंबे समय से मराठा बनाम गैर-मराठा के सियासी समीकरण पर सेट की जाती रही है. राज्य में गैर-मराठा जातियों में मुख्य रूप से ब्राह्मण, दलित, ओबीसी और मुसलमान जातियां आती हैं. बीजेपी और शिवसेना के विभाजन से पहले शिवसेना का आधार गैर मराठा जाति के लोगों के बीच रहा है. ओबीसी के जरिए बीजेपी महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक आधार को बढ़ाने में जुटी थी लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगी दल की स्ट्रैटेजी दलित, मुस्लिम, मराठा और ओबीसी की कुछ जातियों को साधने की है.

मराठा वोटों की सियासी ताकत

महाराष्ट्र में 28 फीसदी के करीब मराठा समुदाय है, जो करीब डेढ़ सौ सीटों पर हार जीत तय करते हैं. राज्य में कुल 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा समुदाय के रहे हैं, जिसमें मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे भी शामिल हैं. मराठावाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ व कोंकण के कुछ इलाकों में मराठा वोटर निर्णायक भूमिका में है. 288 विधायकों में से 160 विधायक मराठा समुदाय से थे. लोकसभा चुनाव में भी आधे से ज्यादा मराठा सांसद जीतकर आए हैं. आरक्षण को लेकर मराठा समुदाय लंबे समय से आंदोलित है, जिसके चलते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था और कांग्रेस-शरद पवार को लाभ मिला था.

मराठा समाज के सबसे बड़े नेता के तौर पर शरद पवार को माना जाता है तो उद्धव ठाकरे का भी अपना सियासी आधार है. सीएम एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के पास अच्छा मराठा आधार है, लेकिन अजित पवार की एनसीपी अपना प्रभाव नहीं दिखा सकी. कांग्रेस का मराठा कोर वोटबैंक माना जाता था, लेकिन मौजूदा समय में कोई प्रभावी नेता नहीं है. कांग्रेस-उद्धव-शरद पवार की कोशिश मराठा वोटों को एकजुट रखने की है तो शिंदे और अजित पवार भी बीजेपी के साथ मिलकर मशक्कत दिखा रहे हैं. बीजेपी ने हर जिले में एक मराठा समुदाय के प्रत्याशी को उतार रखा है तो महा विकास अघाड़ी ने पूरी ताकत झोंक रखी है.

मराठा मतदाताओं के पास चुनने के लिए चार अलग-अलग पार्टियां हैं, लेकिन ज्यादातर वो जमीनी किसान समुदाय हैं, इसलिए वो कृषि संकट जैसे किसानों से जुड़े मुद्दों पर लामबंद हो सकते हैं, जो एमवीए को बढ़त दिला सकता है. हाल ही में मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के दौड़ से हटने से मराठा वोटों का और अधिक विभाजन रुक जाएगा. इसका सियासी लाभ महा विकास अघाड़ी को मिलने की संभावना है, लेकिन शिंदे और अजित पवार कुछ असर दिखाते हैं तो फिर गेम बदल सकता है.

ओबीसी पर ही टिका सत्ता का गेम

महाराष्ट्र में ओबीसी की आबादी 38 फीसदी के करीब है, जिसमें मुस्लिम ओबीसी भी शामिल हैं. इसके अलावा ओबीसी जातियां कुनबी, माली, धनगर, बंजारा, लोहार, तेली, घुमंतू, मुन्नार कापू, तेलंगी, पेंटारेड्डी और विभिन्न गुर्जर जातियां है. इस तर ओबीसी में करीब 356 जातियां है. ओबीसी जातियों के अलग-अलग उप-जातियों में बंटने के चलते वो एकमुश्त होकर वोट नहीं करते हैं, लेकिन कुनबी, माली, वंजारी और धनगर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जातियां है.

ओबीसी समुदाय का आधार कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल जिलों में हैं. महाराष्ट्र की करीब 100 विधानसभा सीट पर ओबीसी वोटों का प्रभाव है. बीजेपी ने एक समय ओबीसी की माली, धनगर और वंजारी समुदाय को एकमुश्त करके माधव फॉर्मूला बनाया था. बीजेपी में गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा बनकर महाराष्ट्र में उभरे थे, लेकिन आज बीजेपी के पास ओबीसी कैटेगरी में गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े हैं.

अजित पवार के पास छगन भुजबल तो शरद पवार के पास एकनाथ खड़से के रूप में ओबीसी चेहरा है. कांग्रेस के पास नाना पटोले ओबीसी समुदाय के कद्दावर नेता हैं. इस तरह ओबीसी वोटों में बिखराव की संभावना साफ दिख रही है तो बीजेपी ने भी पूरा फोकस कर रखा है. पीएम मोदी और बीजेपी ने पार्टी में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर उनके बीच अपना आधार बढ़ाया है. छगन भुजबल और अन्य जैसे ओबीसी नेता भी महायुति के पक्ष में ओबीसी को संगठित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं तो राहुल गांधी सामाजिक न्याय और आरक्षण की लिमिट बढ़ाने की बात करके ओबीसी को साधने में लगे हैं.

दलित वोटर किसके साथ जाएगा?

महाराष्ट्र में दलित वोटर 12 फीसदी के करीब है, लेकिन महार और गैर-महार के बीच बंटा हुआ है. राज्य में दलित समाज के लिए 29 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, लेकिन करीब 59 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां दलितों की आबादी 20 फीसदी के करीब है. विदर्भ, पुणे, नागपुर और ठाणे जिले में अनुसूचित जाति की सबसे अधिक आबादी है. संविधान खतरे वाले मुद्दे के चलते दलित समुदाय ने एकजुट होकर कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन को वोट किया था, लेकिन बीजेपी उन्हें साधने के लिए पूरी कवायद कर रही है और उसकी स्ट्रैटेजी कांग्रेस को दलित विरोधी कठघरे में खड़ा करने की है.

दलितों में महार समुदाय के महा विकास अघाड़ी के साथ जाने की ज्यादा संभावना है. महार समुदाय के लोग भीमराव अंबेडकर के दौर से ही बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए हैं और गैर-बीजेपी राजनीति दल में अपना सियासी ठिकाना तलाशते रहे हैं. आरक्षण को समाप्त करने के लिए संविधान में संशोधन किए जाने के खतरे और हिंदुत्व के प्रभुत्व का कथित डर बना हुआ है. बीजेपी दलित वोटों को साधने के लिए गैर-महार जातियों पर फोकस कर रही है और मातंग समुदाय को टारगेट करती है, जिसने आंबेडकरवादियों की तुलना में हिंदू सांस्कृतिक प्रथाओं से नजदीकी बनाए रखी है.

बीजेपी की नजर कोरी, खटीक, भेड़, ढोर, डोम जैसी दलित जातियों को लामबंद करने की है. इस तरह से गैर-महार अनुसूचित जाति समुदायों जैसे मंग, मातंग, चंभर का सवाल है, जिन्होंने बौद्ध धर्म नहीं अपनाया है, वे पिछले कुछ दशकों से राज्य में बीजेपी के वोट बेस के रूप में उभरे हैं. ऐसे में बीजेपी गैर-महार जातियों को अपने साथ जोड़े रखने की हर संभव कवायद कर रही है.

राज्य में करीब 8 आदिवासी समुदायों के लिए 25 विधानसभा सीटें आरक्षित है. आदिवासी लंबे समय से कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं, लेकिन अब यह भी आसान नहीं है क्योंकि बीजेपी की तरफ से आदिवासी विकास और पहचान (जनजातीय गौरव) पर लगातार जोर दिया जा रहा है. आरएसएस से प्रेरित वनवासी कल्याण केंद्र सामाजिक सहायता कार्यक्रमों ने आदिवासियों के एक बड़े वर्ग को बीजेपी और महायुति की तरफ आकर्षित किया है. महाराष्ट्र के उत्तरी हिस्से में खासकर गढ़ चिरौली जैसे इलाके में आदिवासी वोटर काफी अहम है, जो एमपी से सटे हुए हैं.

मुस्लिम वोट किसके साथ जाएगा?

महाराष्ट्र में 12 फीसदी मुस्लिम समुदाय की आबादी है, जो 38 विधानसभा सीटों पर हार-जीत तय करते हैं. मुस्लिम समुदाय का वोटर एमवीए की ओर जा सकता है. हालांकि, मुस्लिम बहुल कुछ सीटों पर वोटों का बंटवारा हो सकता है, जहां असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम मजबूत है. 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने एकमुश्त होकर महा विकास अघाड़ी को वोट दिया था.

विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर एक बार फिर से महा विकास अघाड़ी के साथ जा सकता है, लेकिन अजित पवार भी मुस्लिम वोटों को साधने के लिए पूरी मशक्कत कर रहे हैं और पांच प्रत्याशी उतार रखे हैं. शिवेसना के दो धड़ ने भी मुस्लिम समुदाय के लोगों को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने 9 सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे है. मुस्लिम संगठन से जुड़े हुए लोग मुस्लिम वोटों को एकमुश्त महा विकास अघाड़ी के पक्ष में रखने के लिए सियासी दांव चल रहे हैं.

रिवर्स पोलराइजेशन की भी संभावना

महाराष्ट्र में मुस्लिम मजहबी उलेमा लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों को लामबंद करने की कवायद में है. लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा था और इसका फायदा महाविकास अघाड़ी को हुआ था. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी यहीं दांव कुछ मुस्लिम उलेमा कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी भी इसका फायदा उठाने में जुटी है. बीजेपी के नेता खुलकर वोट का जिहाद जैसा नैरेविट इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि रिवर्स पोलराइजेशन किया जा सके. मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण के जवाब में हिंदू वोट भी एकजुट करने का प्लान है. इसका सीधा फायदा महायुति को होगा.

महाराष्ट्र में छाया आरक्षण का कोहरा

पिछले दो सालों से महाराष्ट्र में आरक्षण की बहस तेज ही नहीं बल्कि आंदोलन का रूप अख्तियार किए हुए है. मराठवाड़ा से शुरू हुआ मराठा आरक्षण आंदोलन एक साल के भीतर ही राज्यव्यापी हो गया. इतना ही नहीं इससे राजनीतिक दलों की टेंशन बढ़ी है. मराठों के लिए ओबीसी के तहत आरक्षण देने की मांग ने ओबीसी समुदायों को बेचैन कर दिया. शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के लिए दस फीसदी आरक्षण का ऐलान किया था लेकिन कुनबी प्रमाणपत्र के लिए विवाद बना हुआ है.

आरक्षण के छाए सियासी कोहरे के चलते महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के सामने जातीय संतुलन बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि टेंशन इस बात की है कि किसी एक समुदाय का पक्ष साधने में कहीं दूसरा समुदाय नाराज न हो जाए. इसके चलते ही कोई दल खुलकर अपनी सोशल इंजीनियरिंग का दांव नहीं खेल रहा है. बीजेपी जरूर हिंदुत्व का एजेंडा सेट करके महाराष्ट्र की सियासत पर अपने दबदबे को बनाए रखना चाहती है तो कांग्रेस की स्ट्रैटेजी जातीय बिसात पर चुनावी जंग को फतह करने की है. ऐसे में देखना है कि महाराष्ट्र की सियासी बाजी कौन जीतता है?

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button