क्या होता है पगड़ी किराया ? जान लीजिए इससे जुड़ी काम की बातें

जमीन-जायदाद यानी रियल एस्टेट और दुकानदारी के क्षेत्र में ’पगड़ी’ काफी प्रचलित शब्द है. यह क्या होता है, इसके नियम और कानूनी स्थिति के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल, पगड़ी सिस्टम भारत में पारंपरिक रूप से चला आ रहा सदियों पुरानी किरायेदारी की एक प्रणाली है. इसमें किरायेदार आंशिक रूप से संपत्ति का मालिक भी होता है.

आगरा:- अभी आज की ही बात है आगरा के एक एसीपी साहब से मुलाकात हुई विषय था पगड़ी की दुकान पर एक पक्ष के द्वारा कब्जा करने की कोशिश, इसी विषय में सिविल कोर्ट में भी मामला विचारधीन है अब कब्जा करने की कोशिश करने वाला पक्ष वादी पक्ष को धमका कर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बन रहा था, जब वादी पक्ष ने आगरा पुलिस डिपार्टमेंट से शिकायत की तो एसीपी साहब के पास में जांच आई, एसीपी साहब का कहना था कि रु 100- 200 किराया देने के बाद में कोई पगड़ीधारी किराएदार जो 70 वर्ष से ज्यादा समय से दुकान को चला रहा है वह कैसे प्रॉपर्टी का मालिक हो सकता है , प्रॉपर्टी का मालिक तो वही रहेगा जो किराया लेता है और वही प्रॉपर्टी को किसी और को बेच सकता है जबकि पगड़ी धारी का कोई हक नहीं बनता, जब हमने एसीपी साहब से कहा कि जानकारी में थोड़ी सी कमी है तो एसीपी साहब गुस्सा हो गए और हमें लगे कानून समझाने और हमसे कानून की धाराएं पूछने इस घटना के बाद हमारे दिल में आया कि इसके ऊपर एक आर्टिकल तो बनता ही है

देश में अंग्रेजों के टाइम से आज भी कुछ नियम चले आ रहे हैं समय-समय पर हमारे देश की पुलिस नियमों के चक्कर में उलझ जाती है जैसे कि एक नियम है पगड़ी का, पगड़ी पर आज भी हमारे देश में लाखों दुकान मौजूद हैं इसके क्या नियम होते हैं, यह किस तरह से काम करती है , आज यही हम आपको बताएंगे ।

जमीन-जायदाद यानी रियल एस्टेट और दुकानदारी के क्षेत्र में ’पगड़ी’ काफी प्रचलित शब्द है. यह क्या होता है, इसके नियम और कानूनी स्थिति के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. दरअसल, पगड़ी सिस्टम भारत में पारंपरिक रूप से चला आ रहा सदियों पुरानी किरायेदारी की एक प्रणाली है. इसमें किरायेदार आंशिक रूप से संपत्ति का मालिक भी होता है. हालांकि उसके स्वामित्व की कई सीमाएं होती हैं.

पगड़ी प्रथा मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे भारत के कई पुराने महानगरों में प्रचलित थी और कई जगह यह अबतक चली आ रही है. ज्यादातर यह दुकानों के मामले में होती है, पर कहीं-कहीं घरों के मामले में भी पगड़ी का चलन रहा है.

क्या है पगड़ी सिस्टम
यह किरायेदारी का ही एक पुराना रूप है, जो ब्रिटिश काल और उससे भी पहले से चला आ रहा है. यह इसलिए प्रचलन में आया क्योंकि पहले, संपत्तियों की कीमतें बहुत अधिक नहीं होती थीं और किराया भी बहुत ज्यादा नहीं होता था.

किराया भी साल दर साल एक जैसा ही रहता था और इस पर महंगाई का भी प्रभाव नहीं होता था.इसलिए किरायेदारी दशकों तक मालिक व किरायेदार की मौखिक सहमति से ही चलती रहती थी. मालिक और किरायेदार के बीच कानूनी कॉन्ट्रैक्ट करने की जरूरत नहीं होती थी. लिखत-पढ़त और प्रमाण के रूप में केवल किराये की रसीदों से ही काम हो जाता था.

क्या है पगड़ी की कानूनी स्थिति
महाराष्ट्र में मार्च 31 2000 को लागू हुए रेंट कंट्रोल एक्ट 1999 के तहत सदियों से चले आ रहे पगड़ी सिस्टम को कानूनी मान्यता दे दी गई. इस कानून की धारा 56 के तहत इसे कानूनी मान्यता दी गई है.

इस सिस्टम में संपत्ति का मालिक किराएदार द्वारा उसके पास एक तयशुदा रकम जमा करने के बाद किरायेदार को एक प्रकार का मालिकाना हक दे सकता है. इस आंशिक मालिकाना हक के तहत किरायेदार का संपत्ति (मकान, दुकान या परिसर) पर एक निश्चित अधिकार होता है, लेकिन जमीन पर उसका मालिकाना हक नहीं होता.

ऐसे में आंशिक मालिक होने के नाते वह किराएदार किसी और वह संपत्ति किराये पर परिसर दे सकता है. हालांकि ऐसे में जो किराया मिलेगा, वह उसे प्रॉपर्टी के असली मालिक और आंशिक मालिक यानी पहले किरायेदार है के बीच बांटा जाएगा. इससे जहां किराएदार उस संपत्ति से कमाई कर सकता है, वहीं असली मालिक को भी उस किरायेदार से मिलने वाली रकम से बढ़कर कुछ अतिरिक्त कमाई हो जाती है.

कैसे ट्रांसफर होता है मालिकाना हक
पगड़ी प्रथा के तहत संपत्ति को किराए पर लेने वाला व्यक्ति अगर उस संपत्ति को बेचना चाहता है, तो वह बिक्री से मिली रकम का एक हिस्सा मकान मालिक को दे देता है. यह आमतौर पर 33ः होता है, हालांकि स्थानीय चलन के अनुसार यह ज्यादा या कम भी हो सकता है. इसे लेकर कोई निश्चित नियम नहीं है. संपत्ति बेचने के लिए मूल मालिक की सहमति (एनओसी) लेने या उसके एवज में उसे कोई भुगतान करने का भी कोई नियम पगड़ी प्रथा में नहीं है.

क्या पगड़ी प्रॉपर्टी रेरा के तहत?
सरकार रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के तहत पगड़ी प्रॉपर्टियों को लाने पर विचार कर रही है, क्योंकि देशभर में बड़ी संख्या में पगड़ी प्रथा के तहत आने वाली ऐसी पुरानी प्रॉपर्टीज हैं, जिन्हें डेवलप किया जा सकता है. कई मामलों में तो ऐसी संपत्तियां एकदम प्राइम लोकेशन पर हैं, पर पगड़ी के विवाद में इनका सौदा नहीं हो पाता है. इसलिए सरकार कुछ खास परिस्थितियों में पगड़ी प्रणाली को रेरा के तहत लाने पर विचार कर रही है.

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