Nation- बीजेपी, कांग्रेस और AAP… जानें दिल्ली चुनाव में किसका क्या दांव पर लगा- #NA

राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी, अर‍व‍ि‍ंंद केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव अब अपने पूरे शबाब पर पहुंच गया है. बीजेपी 27 साल के सियासी वनवास को खत्म करने की कवायद में है तो आम आदमी पार्टी अपने कब्जे को बनाए रखने की पूरा जी जान लगा रखा है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सीधी लड़ाई को कांग्रेस त्रिकोणीय बनाने की हर संभव कोशिश में है. इसके लिए असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और मायावती की बसपा दिल्ली चुनाव में किस्मत आजमा रही है, जिसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है.

राजधानी में 2015 और 2020 की चुनावी लड़ाई आम आदमी पार्टी ने एकतरफा जीती थी. केजरीवाल के सामने बीजेपी चंद सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. ऐसे में दिल्ली का विधानसभा चुनाव राजनीतिक तौर पर काफी अहम माना जा रहा है. कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी तीनों ही दलों की साख दांव पर लगी है. देखना है कि दिल्ली की सियासी बाजी कौन मारता है?

केजरीवाल के सियासी वजूद का चुनाव

अन्ना आंदोलन से निकलकर सियासी पिच पर उतरे अरविंद केजरीवाल के लिए इस बार दिल्ली का चुनाव काफी चुनौती पूर्ण माना जा रहा है. बीजेपी और कांग्रेस आक्रामक तरीके चुनाव मैदान में उतरी है, उसके चलते AAP के लिए सियासी वजूद को बचाए रखने से कम नहीं है.

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केजरीवाल ने दिल्ली के विकास मॉडल को लेकर पंजाब में सरकार बनाई, गोवा और गुजरात जैसे राज्य में खाता खोला. इस बार कई लोकलुभाने वादे और मुफ्त की योजनाओं का ऐलान कर दिल्ली की चुनावी जंग फतह करने के लिए उतरे हैं, लेकिन अगर सत्ता में वापसी नहीं कर पाते हैं तो केजरीवाल के लिए आगे की सियासी राह काफी मुश्किल भरी हो जाएगी.

अरविंद केजरीवाल अगर दिल्ली का चुनाव जीतते हैं तो बीजेपी से सीधा मुकाबला करने में विपक्षी दलों में सबसे आगे कतार में खड़े नजर आएंगे. इस तरह विपक्षी दलों के बीच उनकी सियासी अहमियत बढ़ेगी. केजरीवाल अगर दिल्ली का चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो आगे की राह मुश्किल ही नहीं बल्कि काफी कांटो भरी हो जाएगी.

आम आदमी पार्टी का सियासी आधार और केजरीवाल की लोकप्रियता देश भर दिल्ली के विकास मॉडल के चलते बढ़ी है. दिल्ली हारते हैं तो उस पर ही सबसे गहरी चोट लगेगी. जिसका असर पंजाब से लेकर गुजरात और गोवा तक में उसके बढ़ते सियासी ग्राफ पर होगा. केजरीवाल इस बात को बाखूबी समझ रहे हैं. जिसके चलते ही अपने पूरे दमखम और जोश के साथ किस्मत आजमा रहे हैं.

दिल्ली चुनाव बीजेपी के लिए कितना अहम?

दिल्ली विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है. दिल्ली के सियासी इतिहास में बीजेपी सिर्फ एक बार 1993 में ही जीत सकी है. 1998 में सत्ता से बाहर होने के बाद आजतक वापसी नहीं कर सकती है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी भले ही देश की सत्ता पर तीसरी बार काबिज हो, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी जंग अभी तक फतह नहीं कर सकी. पार्टी 27 सालों से दिल्ली में सत्ता का वनवास झेल रही है.

मोदी-शाह के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद दो बार दिल्ली विधानसभा हो चुके हैं. दोनों ही बार बीजेपी को करारी शिकस्त खानी पड़ी है. 2015 में बीजेपी सिर्फ 3 सीटें और 2020 में महज 7 सीटें जीतने में सफल रही थी. इस तरह केजरीवाल के सामने बीजेपी पस्त नजर आई थी. ऐसे में अगर तीसरी बार भी बीजेपी दिल्ली चुनाव नहीं जीत पाती है तो उसके लिए दिल्ली की राह फिर काफी मुश्किल भरी हो जाएगी, क्योंकि पार्टी ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं को चुनावी रण में उतार रखा है.

दिल्ली में कई दिग्गजों की साख दांव पर

बीजेपी ने दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली और AAP के पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान, कैलाश गहलोत और राज कुमार आनंद व तेजंदर सिंह मारवा जैसे कई हाई-प्रोफाइल नाम शामिल हैं. ये सभी हाल ही में पार्टी में शामिल हुए हैं. इसके अलावा बीजेपी ने दक्षिणी दिल्ली के पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी भी कालकाजी सीट से आतिशी के खिलाफ उतार रखा है तो केजरीवाल के खिलाफ पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इसके लिए फ्री बिजली-पानी से लेकर महिलाओं को 2500 रुपये देने जैसे वादे कर रखे हैं. ऐसे में अगर बीजेपी चुनाव हार जाती है तो उसके दिल्ली की सियासत में फिर उभरना मुश्किल होगा.

दिल्ली में कांग्रेस बचा पाएगी वजूद

कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा का चुनाव सियासी वजूद को बचाए रखने का है. 2015 और 2020 के चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. इस बार कांग्रेस अपना खाता खोलने के साथ-साथ दिल्ली में खिसके हुए अपने सियासी आधार को वापस पाने की जंग लड़ रही है. इसीलिए कांग्रेस ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं को दिल्ली के चुनाव में उतार रखा है. पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ तो अलका लांबा को कालकाजी सीट पर आतिशी के खिलाफ उतारा है. इसके अलावा भी कई सीटों पर कांग्रेस ने अपने तमाम नेताओं पर दांव खेला है.

दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर एक समय 45 फीसदी से ऊपर हुआ करता था, लेकिन मौजूदा समय में वोट शेयर गिरकर 4 फीसदी पर पहुंच गया है. इतना ही नहीं दिल्ली में कांग्रेस का सियासी आधार रहे मुस्लिम, दलित, पंजाबी, ब्राह्मण और सिख वोट आम आदमी पार्टी का कोर वोट बैंक बना चुका है. इसीलिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना रखा है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी को एक ही सिक्के के दो पहलू बता रही है. पीएम मोदी और केजरीवाल को कांग्रेस दलित, ओबीसी और मुस्लिम विरोधी कटघरे में खड़ी करने में जुटी है. इसे समझा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए दिल्ली चुनाव कितना अहम है?

बीजेपी, कांग्रेस और AAP… जानें दिल्ली चुनाव में किसका क्या दांव पर लगा


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