देश – डोनाल्ड ट्रंप की सीधी धमकी, डॉलर छोड़ा तो भुगतना होगा अंजाम; भारत पर क्या असर? – #INA
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर के देशों को खुली धमकी दी है। विस्कॉन्सिन राज्य में एक रैली के दौरान ट्रंप ने कहा कि यदि आप ‘डॉलर’ छोड़ रहे हैं तो फिर आप ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ के साथ व्यापार को भूल जाइए क्योंकि हम आपके ऊपर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे। ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों के ऊपर हमला समझा जा रहा है, जो डॉलर की जगह किसी और मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाना चाहते हैं। ब्रिक्स देशों के अलावा कई और देश हैं जो कि आपसी व्यापार के समय डॉलर को बायपास करने का सोचते हैं।
अपने पिछले कार्यकाल के दौर में ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति लेकर संरक्षणवादी रवैया रखने वाले ट्रंप ने रैली के दौरान कहा कि पिछले आठ सालों में डॉलर लगातार एक बड़ी घेराबंदी का शिकार हुआ है, पिछले साल एक समूह के सम्मेलन में डी-डॉलरीकरण को लेकर भी चर्चा हुई। ट्रंप ने कहा कि मैं चाहता हूं कि डॉलर दुनिया की आरक्षित मुद्रा बनी रहे और इस काम के लिए में कुछ भी करने को तैयार हूं। आईएमएफ के अनुसार, 2024 की पहली तिमाही में अमेरिकी मुद्रा अभी भी विदेशी मुद्रा भंडार का 59 प्रतिशत है, जबकि यूरो लगभग 20 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है।
क्या भारत के लिए है खतरे की घंटी?
डोनाल्ड ट्रंप को एक भारत समर्थक राष्ट्रपति के रूप में देखा जाता है। हालांकि ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान लागू की गई संरक्षणवादी नीतियों से भारत को भी घाटा हुआ था। टैरिफ की सीधी लड़ाई भले ही चीन और अमेरिका के बीच में हुई हो लेकिन इसमें भारत की कंपनियों को भी नुकसान हुआ था। भारत ब्रिक्स समूह का हिस्सा है, जो कि डी-डॉलरीकरण की बात करता है। भारत भी लगताार अपने व्यापार को डॉलर से अलग करके अपने रुपए में करने की इच्छा रखता है। यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने रूस से जितना भी व्यापार किया है वह मुद्रा विनिमय या फिर किसी और मुद्रा के रूप में किया है। इसके अलावा भारत कच्चे तेल का बहुत बड़ा आयातक देश है, हमनें सऊदी समेत कई देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाया है और उन देशों के साथ अपनी मुद्रा में व्यापार को आगे बढ़ाया है।
इसके अलावा भारत का रिजर्व बैंक भी भारतीय यूपीआई को अमेरिका पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट की जगह स्थापित करना चाहता है। इसलिए ट्रंप की इस धमकी को भारत से भी जोड़ कर देखा जा रहा है, क्योंकि अगर ट्रंप यह करते हैं तो भारत के व्यापार पर इसका असर पड़ना तय है। भारत के अलावा अन्य देश भी डॉलर पर अपनी निर्भरता को खत्म करना चाहते हैं, सऊदी अरब, चीन और रूस इसमें सबसे बड़े खिलाड़ी साबित हुऐ हैं।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर दुनिया का भरोसा डगमगाया
दरअसल, डॉलर के खिलाफ दुनियाभर में बढ़ती विरोध की आवाज ने अमेरिका को परेशान कर रखा है। ट्रंप ने अपने आर्थिक सलाहकारों से चर्चा के बाद ही यह बयान दिया है। ट्रंप या कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉलर के प्रभुत्व को दुनिया पर से कम नहीं होने देना चाहेगा, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो दुनिया पर से उनका प्रभाव कम हो जाएगा। अमेरिका की अर्थव्यवस्था को डॉलर के वैश्विक मुद्रा होने का बहुत फायदा होता है। इससे अमेरिका को मिलने वाले लोन में आसानी होती है। अमेरिका हर साल अपने बॉन्ड जारी करता है और लोगों से करेंसी उठाता है। इससे अमेरिका का अर्थव्यवस्था को लगातार बढ़ते रहने में आसानी होती है। जापान ने अमेरिका के करीब 1 ट्रिलियन डॉलर के बॉन्ड खरीद रखे हैं तो वहीं चीन ने करीब 750 बिलियन डॉलर के, लेकिन पिछले कुछ सालों से अमेरिका की आर्थिक हालत को देखते लोग डॉलर की जगह किसी और मुद्रा को नई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बनाना चाहते हैं। चीन का युआन इस दौड़ में सबसे आगे हैं।
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