देश – पुलिस तो आई मगर हमलावरों की संख्या देख भाग गई, नवादा कांड के चश्मदीदों ने बताया क्या और कैसे हुआ? – #INA
बिहार के नवादा जिला मुख्यालय से बमुश्किल दो किलोमीटर दूर, कृष्णा नगर दलितों की वही बस्ती है, जहां बुधवार की शाम अपराधियों ने भीषण तांडव मचाया और पूरे गांव को जलाकर राख कर दिया। इस गांव में अधिकांश मांझी समदाय के महादलित परिवार रहते थे, जो खुरी नदी के किनारे खाली पड़ी जमीन पर पीढ़ियों से रहते आए हैं और खेती करते रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि यह जमीन किसकी है, लेकिन वे इसे अपनी ही जमीन कहते हैं क्योंकि उन्होंने कई पीढ़ियों से यहीं रहकर खेती की है और अपना गुजर-बसर किया है।
लेकिन अब कृष्णा नगर में सिर्फ़ राख और झुलसकर ठूंठ हो चुके पेड़ बचे हैं, जो बुधवार की शाम हुई त्रासदी की कहानी यां कर रहे हैं। बुधवार की शाम हथियारबंद लोगों के एक समूह ने उस गांव में अग्निकांड कर भारी तबाही मचाई थी, जिसका एक ही मकसद था – शहर के इतने नज़दीक स्थित बेशकीमती जमीन को उन दलित परिवारों से जबरन खाली कराना। ग्रामीण बताते हैं कि गांव पहुंचते ही दबंगों ने गोलियां चलाईं, धमकी दीं और फिर घरों को आग लगाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कृष्णा नगर में चीख पुकार मच गई। आग की लपटों ने 30 से अधिक फूंस से बने मकानों को तुरंत अपना शिकार बना लिया।
जैसे ही इस कांड की भनक मीडिया को लगी, प्रशासन का अमली जामा बुधवार को ही रात में पहुंच गया। अगले दिन यानी गुरुवार की सुबह से ही वहां का नजारा बदल गया। भारी सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए। पूरा जिला प्रशासन मुआवज़े के वादे के साथ वहाँ पहुँच गया। राख में तब्दील हो चुके महादलित परिवारों के इस गांव के चारों ओर वाहनों की कतार खड़ी हो गई। इस हादसे में मारे गए अनिल मांझी का शव करीब 80 परिवारों वाले गांव की ओर जाने वाली सड़क पर रखा हुआ था। जिला मुख्यालय से इतने करीब होने और बिजली के खंभे गड़े होने के बावजूद गांव में गरीबों के लिए बिजली नहीं है।
ग्रामीण इस कांड से गुस्से में हैं। उनके अंदर आक्रोश समाया हुआ है। हालात ऐसे हैं कि जिला प्रशासन के खिलाफ ग्रामीणों ने जमकर नारेबाजी की। एक ग्रामीण ने बताया कि जिस अनिल अनिल मांझी की मौत हुई है, वह महज 40 साल का था। उसे इतना सदमा लगा कि वह बेहोश हो गया। फिर पता नहीं उसके साथ क्या हुआ। ग्रामीण कहते हैं कि जब दबंगों ने हमला बोला तो हमने 112 नंबर डायल कर पुलिस को इस बारे में बताया। इसके बाद वहां पुलिस महकमे की गाड़ी भी आई और उस पर पुलिस बल भी सवार थे लेकिन हमलावरों की भीड़ को देखकर वह दबे पांव वहां से भाग गए। वो आए तो थे हमें बचाने लेकिन खुद भाग गए। एक ग्रामीण ने कहा कि अगर पुलिस गांव में रुक जाती तो हमलावर शांत हो जाते, और जानमाल का ये नुकसान नहीं होता, हमारी पीढ़ियों की यादें राख नहीं होतीं।
ग्रामीणों ने कहा कि हम पर गांव छोड़ने का जबाव बनाया जा रहा है। वे चाहते हैं कि हम यहां से चले जाएं लेकिन हम कहां जाएं। यहां तो हमारे दादा-परदादा की यादें हैं। उन्होंने खून-पसीना बहाकर इस जमीन को खेती लायक बनाया है, जहां खेती कर हम गुजारा कर रहे हैं। हालांकि, उनके सामने अब बड़ा संकट है। मुर्गी और बकरी भी जल गई। घर में रखे सारे सामान जल गए। अब प्रशासन ने मुरही उपलब्ध कराया है, बच्चे वही फांक रहे हैं।
60 वर्षीय रामबृक्ष दास ने कहा, “हम दूसरी जगह नहीं जा सकते। हम दशकों से यहां शांति से रह रहे हैं। कभी किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। हमने अपने खून-पसीने से इस इलाके को हरा-भरा बनाया है। हम जानते हैं कि यह ‘सरकारी जमीन’ है। हम नहीं जानते कि कौन किससे लड़ रहा है, क्योंकि हम पीढ़ियों से इस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं। हम कहीं नहीं जा सकते।” उधर, जिला मजिस्ट्रेट आशुतोष कुमार वर्मा ने कहा कि इस पर 1995 से टाइटल सूट चल रहा है और अदालत ने पिछले 29 मई को भूमि के निरीक्षण का आदेश दिया था। बहरहाल पुलिस ने इस मामले के मुख्य आरोपी और बिहार पुलिस के रिटायर्ड जवान नंदू पासवान समेत 15 लोगों को गिरफ्तार किया है। कुल 28 लोगों को नामजद किया गया है।
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