देश- UP उपचुनाव को नाक का सवाल बनाकर लड़ी बीजेपी, मिली दोगुनी सफलता- #NA
सीएम योगी और अखिलेश यादव.
उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन ने सात सीटें जीतने में कामयाब रही तो सपा को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा है. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद यूपी उपचुनाव को बीजेपी ने अपने नाक का सवाल बनाकर लड़ी थी. उपचुनाव में बीजेपी को सिर्फ सत्ता पर रहने ही लाभ नहीं मिला बल्कि पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने का भी लाभ मिला है.
सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी के तमाम दिग्गज नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी थी. इसी का नतीजा है कि बीजेपी को दोगुना सफलता उपचुनाव में मिली है.
सपा को बड़ा झटका
यूपी की 9 विधानसभा सीटों में से बीजेपी गाजियाबाद, कुंदरकी, खैर, मझवां, फूलपुर और कटेहरी सीट जीतने में कामयाब रही. मीरापुर सीट को आरएलडी ने बीजेपी के समर्थन से जीत दर्ज किया है. सपा सिर्फ करहल और सीसामऊ सीट ही जीत सकी है. 2022 में इन 9 सीटों में से सपा ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी और बीजेपी के पास सिर्फ तीन सीटें थी. इसके अलावा आरएलडी और निषाद पार्टी के पास एक-एक सीटें थी.
मुस्लिम बहुल कुंदरकी में खिला कमल
उपचुनाव में बीजेपी ने सपा के कब्जे वाली दो सीटों पर कमल खिलाने में कामयाब हो गई है. चुनाव से पूर्व यह दोनों ही सीटें बीजेपी के लिए काफी मुश्किल भरी नजर आ रही थी जबकि सपा के लिए सियासी मुफीद मानी जा रही थी. इसके बावजूद बीजेपी ने मुस्लिम बहुल कुंदरकी और ओबीसी बहुल कटेहरी विधानसभा सीट पर ‘कमल’ खिलाकर 2024 लोकसभा चुनाव की हार का हिसाब बराबर कर लिया है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा नुकसान
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अपने पीडीए फॉर्मूला (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के दम पर बीजेपी को उत्तर प्रदेश में तगड़ा झटका दिया था. लोकसभा की 80 में से सपा ने 37 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि बीजेपी 62 सीटों से घटकर 33 सीट पर पहुंच गई. लोकसभा चुनाव की हार ने बीजेपी को अंदर तक हिलाकर रख दिया था. सूबे के 9 विधायकों के सांसद बन जाने के चलते 9 विधानसभा सीटें रिक्त हुईं तो सीसामऊ सीट से सपा के विधायक रहे इरफान सोलंकी को 7 सजा होने के चलते खाली हुईं.
सीएम योगी के साख का सवाल बना उपचुनाव
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी उपचुनाव को अपने साख का सवाल बना लिया था तो बीजेपी के प्रतिष्ठा का सवाल था. योगी ने अपने 30 नेताओं की एक टीम उपचुनाव के लिए लगाई. सीट के सियासी मिजाज के हिसाब से नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई थी. सीएम खुद एक-एक सीट का फीडबैक लिया और उसके बाद उपचुनाव वाले जिलों का दौरा करके बीजेपी के लिए सियासी जमीन तैयार करनी शुरू की. इसके लिए सीएम योगी विकास, रोजगार और संवाद के जरिए उपचुनाव की सियासी बिसात बिछाने का काम किया.
लोकसभा में मिली हार का हिसाब बराबर
बीजेपी की रणनीति उपचुनाव में अपनी तीन सीट को बचाने के साथ-साथ सपा के दबदबे वाली सीटें जीतकर 2024 के लोकसभा में मिली हार के हिसाब को बराबर करने की है. इन 10 सीटों को लेकर बीजेपी की चिंता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को छह सीटों पर सपा से कम वोट मिले थे. 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है, जिसके चलते सीएम योगी ने जमीन पर उतरकर सियासी माहौल बनाने का मिशन शुरू कर दिया है.
रोजगार मेले का दांव
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 अगस्त के बाद से अलग-अलग जिलों का दौरा करके बीजेपी को जिताने की पठकथा लिखनी शुरू किया. उपचुनाव वाली सीटों पर बीजेपी रोजगार मेले और सीएम योगी के दौरा वाले फॉर्मूले से सियासी माहौल को अपनी तरफ मोड़ना शुरू किया, क्योंकि बीजेपी के लिए उपचुनाव नाक का सवाल बना था.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हुए नुकसान का कारण रोजगार का मुद्दा था. युवाओं की नाराजगी बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह बनी थी. इसी के चलते सीएम योगी ने युवाओं को साधने के लिए रोजगार मेले का दांव चला है. इस तरह तरह सीएम योगी उपचुनाव वाले जिलों में रोजगार मेला लगाकर सिर्फ नियुक्त पत्र ही वितरित नहीं कर रहे हैं बल्कि विकास और संवाद का भी दांव चल रहे थे.
टॉप नेताओं को दो-दो सीटों की जिम्मेदारी
योगी आदित्यनाथ, बृजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य, भूपेंद्र चौधरी और धर्मपाल सैनी के बीच दो-दो सीटों की जिम्मेदारी संभाली. सीएम योगी ने उपचुनाव वाली हर सीट पर दो-दो बार जनसभाएं की. जातियों में हिंदुत्व एजेंडे को सियासी धार देकर जातियों में बिखरे हिंदू वोटों को एकजुट करने का भी दांव सफल रहा. इस तरह से सीएम योगी ने उपचुनाव वाली सीटों पर जीत की कमान खुद संभाल रखी थी.
निषाद पार्टी को नहीं दी सीट
यूपी उपचुनाव वाली सीटों में से पांच सीटें ऐसी थी, जो सपा की मजबूत सीटें मानी जाती है. करहल, कुंदरकी, कटेहरी, मिल्कीपुर और सीसामऊ सीटें बीजेपी के लिए काफी चुनौती पूर्ण मानी जा रही है. लोकसभा चुनाव नतीजे के चलते भी मझवां, मीरापुर और फूलपुर सीट भी बीजेपी के लिए आसान नहीं दिख रही थी. बीजेपी ने मझवां और कटेहरी सीट अपने सहयोगी निषाद पार्टी को देने के बजाय खुद चुनाव लड़ना बेहतर समझा.
लोकसभा चुनाव से इतर इस बार बीजेपी के जमीनी प्रचार में संघ भी साथ है. उपचुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा बाकी सभी नेता जमीन पर उतरकर समीकरणों और समाजों को एक करने और बंटने नहीं देने की कवायद में पूरी तरह से सफल रहे.
अवध-पूर्वांचल बेल्ट में बीजेपी का सफाया
सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले के जरिए ओबीसी के बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करने में कामयाब रही थी, खासकर कुर्मी, मौर्य और निषाद समुदाय के वोटों को अपने पक्ष में किया था. इसके चलते ही यूपी के अवध और पूर्वांचल के बेल्ट में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था. अखिलेश यादव इस बात को समझ चुके हैं कि बीजेपी को मात देनी है तो सिर्फ यादव और मुस्लिम वोटों से काम नहीं चलने वाला, जब तक ओबीसी और दलित समुदाय की जातियां नहीं जुड़ेंगी. इसीलिए लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव में ओबीसी की तीन बड़ी जातियों से प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें यादव, कुर्मी और निषाद हैं, लेकिन बीजेपी ने इसी समीकरण को तोड़ने के लिए बड़ा दांव चला.
कुर्मी और निषाद का समीकरण
बीजेपी ने कटेहरी सीट पर बीजेपी धर्मराज निषाद को उतारकर जीत दर्ज की, जिनका मुकाबला सपा की शोभावती वर्मा से था. कुर्मी और निषाद जाति के मतदाता लगभग बराबर की संख्या में थे. सपा ने कुर्मी पर दांव खेला तो बीजेपी ने निषाद समाज पर दांव खेलकर कुर्मी और निषाद के समीकरण को बिगाड़ दिया. मझवां सीट पर बीजेपी ने मौर्य समाज से प्रत्याशी उतारा है, जिनके सामने बीजेपी से निषाद प्रत्याशी है. इस तरह मौर्या बनाम निषाद का दांव चलना सफल रही. बीजेपी ने फूलपुर सीट पर कुर्मी समुदाय से आने वाले दीपक पटेल को उतारा है.
ओबीसी जातियों में गठजोड़
बीजेपी ने सोची-समझी रणनीति के तहत प्रत्याशी उतारे थे. दो ओबीसी जातियों में गठजोड़ न हो इसलिए सपा ने कुर्मी के सामने निषाद तो निषाद के सामने मौर्य समाज के जरिए जीत की इबारत लिखी थी. इतना ही नहीं कुंदरकी सीट पर बीजेपी ने ठाकुर रामवीर सिंह को उतारकर मुस्लिम वोटों को अपने साथ जोड़ने में सफल रही, खासकर मुस्लिम राजपूत वोटों को. ऐसी मीरापुर सीट पर आरएलडी ने मिथिलेश पाल को उतारकर सपा से लेकर बसपा के समीकरण को पूरी तरह फेल कर दिया.
बीजेपी के नेता और कार्यकर्ताओं ने अपने वोटों को बूथ तक पहुंचने में जान लगा दिया था जबकि सपा और विपक्षी वोटर उतनी संख्या में वोटिंग नहीं कर सके. इसके चलते ही बीजेपी अपने कब्जे वाली सीटों के साथ-साथ सपा की 2022 में जीती हुई दो सीटों पर परचम फहरा दिया. इसके अलावा निषाद पार्टी के कब्जे वाली सीट पर भी बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही.
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