देश- पप्पू-लालू की दुश्मनी पर मीसा ने मरहम लगाने का किया काम, मगर दुश्मनी क्यों है?- #NA
मीसा भारती और पप्पू यादव
पप्पू यादव और लालू यादव की राजनीतिक अदावत किसी से छुपी नहीं है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में यह खुलकर सामने भी आया. जिस तरह तेजस्वी यादव ने पूर्णियां में अपने सभी सांसदों, विधायक, एमएलसी के साथ 7 दिनों तक पप्पू यादव को हराने के लिए डेरा डाल दिया था, उससे ऐसा लगता था कि लालू यादव के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव अब पप्पू यादव से दुश्मनी को आगे बढ़ाएंगे. लेकिन पप्पू यादव के पिता की मृत्यु में बाद लालू यादव की बेटी सांसद मीसा भारती श्रद्धांजलि सभा में पहुंचकर सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है.
अब लग रहा है कि दोनों परिवार के बीच की दूरियां कम होंगी. मगर श्रद्धांजलि सभा में तेजस्वी के बजाय मीसा भारती के जाने का प्लान लालू के मास्टरस्ट्रोक का हिस्सा माना जा रहा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लालू यादव अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य के लिए पप्पू यादव से कभी समझौता नहीं कर सकते. बताया जाता है कि पप्पू यादव और लालू यादव के बीच अदावत 1988 से चली आ रही है, जब लालू यादव बिहार के नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे.
पप्पू के इरादों को भांप गए थे लालू
पप्पू यादव ने तो कई मंच से कहा कि उन्होंने ही लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया था. पप्पू यादव का कहना था कि जब विधायकों की संख्या कम पड़ गई थी तब उन्होंने विधायक अनूप लाल यादव को लालू यादव गुट में शामिल करवाकर लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया था. जब लालू यादव नेता प्रतिपक्ष बने थे उस वक्त बिहार में लगातार जातीय हिंसा हो रही थी. यादव गुट का प्रतिनिधित्व पप्पू यादव करते थे, वहीं राजपूत गुट की कमान आनंद मोहन सिंह ने संभाल रखी थी. मगर पप्पू यादव की उस वक्त राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी थी.
ये भी पढ़ें
इस बात को लालू प्रसाद यादव भांप गए थे. लालू यादव के नेता प्रतिपक्ष बनते ही दूसरे दिन से पप्पू यादव की गिरफ्तारी के लिए पुलिस उन्हें ढूंढने लगी थी. यहां तक कि उनके घर की कुर्की हो गई थी, उनपर टाडा लग गया था, जिसके बाद पप्पू यादव को गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया था. उस वक्तत बिहार के सभी अखबारों में कांग्रेस नेता शिवचंद्र झा की हत्या की साजिश रचने का आरोप पप्पू यादव पर लगने की खबर छपी थीं.
जब पप्पू को पड़ी लालू से डांट
बताया जाता है कि जहां-जहां यादवों पर जुल्म होता था, पप्पू यादव वहां पहुंच जाते थे. 1990 में जब नौगछिया में यादवों का नरसंहार हुआ था, वहां भी पप्पू यादव पहुंच गए थे, जिसके बाद लालू यादव से उन्हें डांट पड़ी थी. लालू यादव ने तो यहां तक कह दिया था कि यादव का नेता मत बनो. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बिहार में यादव का नेता सिर्फ लालू यादव बने रहना चाहते थे, इसलिए उन्होंने पप्पू यादव के पर कतरना शुरू कर दिया था.
यही वजह है कि जब पप्पू यादव ने मधेपुरा से विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया तो लालू यादव ने उन्हें टिकट नहीं दिया. फिर भी पप्पू यादव सिंहेश्वर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत गए. अब ऐसे हालात में पप्पू यादव लगातार लालू यादव के लिए चुनौती बनते जा रहे थे. वहीं दूसरी ओर शिवहर विधानसभा सीट से आनंद मोहन सिंह भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए थे. जब लालू यादव मंडल कमीशन का समर्थन कर रहे थे तब आनंद मोहन सिंह इसका विरोध कर रहे थे. जिसकी काट के लिए लालू यादव ने आनंद मोहन सिंह की काट के लिए पप्पू यादव को सामने कर दिया.
बताया जाता है कि 90 के दशक में आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव की लड़ाई में दर्जनों लोग मारे गए थे. वहीं पप्पू यादव लालू यादव के करीबी थे ही इस वजह से वे अब लोकसभा चुनाव की तैयारी करने लगे थे. इसके लिए उन्होंने पूर्णियां लोकसभा सीट को चुना था. पप्पू यादव को यकीन था कि लालू यादव उन्हें अवश्य टिकट देंगे. मगर हुआ इसका उल्टा. लालू यादव ने 1991 में भी पप्पू यादव को टिकट नहीं दिया. जिसके बाद पप्पू यादव ने पूर्णियां से निर्दलीय चुनाव लड़ा. बताया जाता है कि उस समय काफी हिंसा हुई थी, उस वक़्त बिहार में बूथ कैप्चरिंग का काफी बोलबाला था.
नहीं घोषित हुए नतीजे
उस समय के तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने धांधली का आरोप लगाकर पूर्णियां लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषणा नहीं किया था. जिसको लेकर पप्पू यादव को काफी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी. कोर्ट के आदेश के बाद उपचुनाव हुए और पप्पू यादव ने निर्दलीय जीत हासिल की. इसके बाद पप्पू यादव लालू यादव से दूर होते चले गए और समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली.
सपा के टिकट से ही वे फिर 1996 में पूर्णियां से लोकसभा चुनाव जीते और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी बने थे. मगर पप्पू यादव के बढ़ते कद को लालू यादव नहीं पचा पा रहे थे, जिसके बाद बिहार में लालू-मुलायम की दोस्ती ऐसी हुई कि उसके बाद आज तक समाजवादी पार्टी राजद को फायदा पहुंचाने के लिए चुनाव नहीं लड़ी. दोनों की दोस्ती को देखते हुए एक बार फिर 1999 में हुए चुनाव में पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे.
लालू ने मिलाया पप्पू से हाथ
मगर इसी बीच लालू यादव चारा घोटाला में जेल गए फिर वापस भी आए, मगर इस बीच उनकी पार्टी राजद बहुत कमजोर हो गई थी. लालू यादव फिर एकबार अटल बिहारी वाजपेयी की लहर से अपनी पार्टी को बचाने में लगे हुए थे. उन्होंने एकबार फिर पप्पू यादव से हाथ मिलाया. पप्पू यादव ने तो उसी वक़्त अपने आप को लालू यादव के वारिस होने की घोषणा कर दी थी. बिहार में भी सभी को लगने लगा था कि लालू यादव के बाद राजद का वारिस पप्पू यादव ही होंगे.
पप्पू यादव ने भी मधेपुरा लोकसभा चुनाव में लालू यादव की काफी मदद की थी और उन्हें जिताया था. उस वक़्त लालू यादव मधेपुरा और छपरा दोनों सीट से लड़ रहे थे. जिसके बाद उन्होंने दोनों सीट से जितने के बाद मधेपुरा सीट छोड़ दी थी. वहां से लालू यादव ने पप्पू यादव को जितवा दिया. मगर इसी बीच लालू यादव के सभी बच्चे बड़े होने लगे थे और लालू यादव अपने बच्चों के लिए राजनीतिक फील्ड तैयार करने लगे थे.
तेजस्वी ने संभाली कमान
वहीं पप्पू यादव धीरे धीरे साइड होने लगे थे. काफी दिनों तक राजद में घुटन महसूस करने के बाद उन्होंने राजद को छोड़कर खुद अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी बना ली. पप्पू यादव ने तो तेजस्वी और तेजप्रताप यादव के चुनाव लड़ने पर यह घोषणा कर दी थी कि अगर दोनों चुनाव जीत गए तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे, लेकिन दोनों चुनाव जीत गए और मंत्री भी बन गए.
वहीं चुनाव जीतने के बाद तेजस्वी यादव ने अपने पिता से दुश्मनी की कमान खुद संभाल ली और 2020 के विधानसभा चुनाव में मधेपुरा आकर बैठ गए और पप्पू यादव को चुनाव हरवा दिया. फिर यही कहानी जून 2024 में पूर्णियां लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने दोहराई और पूर्णियां लोकसभा चुनाव में बीमा भारती को पप्पू यादव के सामने खड़ा करके दुश्मनी निभाई.
अब मीसा भारती की पप्पू यादव से मुलाकात को एकबार फिर दुश्मनी की खाई को पाटने की दिशा में देखा जा रहा है. देखना यह होगा कि लालू-पप्पू की दुश्मनी कब खत्म होती है, क्योंकि पप्पू यादव का भी दूसरा जेनरेशन अब तैयार हो चुका है.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link