देश- रीजेंट या कोई हॉल नहीं… इस जगह शुरू हुआ बिहार में सिनेमा हॉल का कल्चर- #NA
फिल्मी दुनिया में बिहार का अहम रोल है. कई बिहारी कलाकार बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुए हैं. बिहार में फिल्म प्रेमियों की भी कमी नहीं है. फिल्म को दिखाने के लिए बिहार में सिनेमा हॉल की भी कमी नहीं थी लेकिन वक्त बदला, फिल्म देखने को लेकर सोच बदली. जिस सिंगल स्क्रीन थियेटर पर फिल्म लगने के साथ ही लोगों की भीड उमडती थी. वो अब दर्शकों की बेरूखी से धीरे-धीरे बंद हो गयी. दिलचस्प है कि बिहार में सबसे पहली बार किसी सिनेमा हॉल में फिल्म देखने की शुरुआत नहीं हुई थी. दरअसल यह एक जगह थी, जहां जाने के बाद लोगों ने समझा कि सिनेमा क्या होता है? इसके बाद तब अविभाजित बिहार में पहले सिनेमा हॉल की नींव पडी.
राजधानी में थे बड़ी संख्या में हॉल
राजधानी में कभी सिंगल स्क्रीन थियेटर का जलवा हुआ करता था. अप्सरा, मोना, उमा, एलिफिंस्टन, वीणा, अशोक, रूपक, पर्ल, चाणक्य, रीजेंट और अल्पना नाम से सिनेमा हॉल हुआ करते थे. इसके अलावा दानापुर में आम्रपाली और डायना तथा पटना सिटी इलाके में भी दो सिनेमा हॉल थे. इन सभी सिनेमा हॉल में फिल्म रिलीज होने के साथ ही लोग उमड पडते थे. सिने प्रेमियों की माने तो रीजेंट सिनेमा हॉल की आवाज और मोना सिनेमा हॉल की स्क्रीन सबसे शानदार मानी जाती थी.
सबसे पहले फिल्म दिखाने की शुरुआत
बिहार में सिनेमा हॉल का प्रचलन 1930 के दशक में हुआ था. हालांकि दिलचस्प यह है कि बिहार में सिनेमा हॉल की शुरुआत किसी हॉल से नहीं बल्कि एक ऐसी जगह से हुई थी, जिस जगह के बारे में लोग जानते तो हैं लेकिन उनकी संख्या ऊंगली पर गिने जाने योग्य है. दरअसल तब के अविभाजित बिहार में बिहार के साथ उडीसा और बंगााल राज्य भी शामिल थे. देश में तब मूक फिल्मों का दौर था. लोगों के बीच फिल्में एक कौतूहल का विषय हुआ करती थी.
लेडी स्टींफेंसन हॉल के नाम दर्ज है गौरव
सुमन बताते हैं कि एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि वर्तमान में राजधानी में पुराने म्यूजियम के पास स्थित लेडी स्टीफेंसन हॉल वह जगह है, जहां सबसे पहले बिहार में सिनेमा हॉल दिखाने की शुरुआत की गई थी. इसे शुरू करने वाले कोई और नहीं बल्कि उनके दादा कैलाश बिहारी सिन्हा थे. जब लेडी स्टींफेसन हाल में सिनेमा दिखाने की शुरुआत की थी तब व्यापक व्यवस्था की जाती थी. इस हॉल में मूक फिल्मों से सिनेमा दिखाने की शुरुआत की गई थी. साथ ही साथ म्यूजिक कॉन्फ्रेंस भी कराया जाता था. जब उनके दादाजी को यह महसूस हुआ है कि यह काम ठीक है और इसमें आगे बढ़ा जा सकता है. तब उन्होंने एक जमीन खरीदी और उस पर रीजेंट सिनेमा हॉल बनाने की नींव रखी गयी.
कोलकाता से आते थे लोग
सुमन बताते हैं, इस प्लेस ऑफ वैरायटी में स्टेज और पर्दे भी थे. जब फिल्म दिखाने की बारी आती थी तो पर्दे लगा दिए जाते थे. साथ ही साथ दोनों तरफ ग्रीन रूम भी हुआ करते थे. तब कोलकाता और अनेक दूसरे शहरों से लोग आते थे और कई सांस्कृतिक प्रोग्राम भी हुआ करते थे. तब मूक फिल्में हुआ करती थी. जब फिल्म दिखाने के लिए मिल जाती थी तो फिल्म दिखाई जाती थी और जो फिल्में नहीं होती थी तो इन कार्यक्रमों का आयोजन हुआ करते थे.
रीजेंट में बदल गया प्लेस ऑफ वैरायटी
सिनेमा के पुराने दौर पर सुमन कहते हैं, पैलेस का वैरायटी अविभाजित बिहार का सबसे पुराना सिनेमा हॉल है. उसका नाम कालांतर में बदलकर रीजेंट सिनेमा हो गया था. यह सिनेमा हॉल 1928 में बनना शुरू हुआ था और 1929 में बनकर तैयार हो गया था और इसी साल इसका शुभारंभ हो गया था.
जमींदार ने बनाया था पैलेस ऑफ वैरायटी
सुमन बताते हैं, इसे बनाने वाला कोई और नहीं बल्कि उनके दादा कैलाश बिहारी सिन्हा थे. वो अपने जमाने के जमींदार थे. मूलरूप से राजस्थान के रहने वाली कैलाश बिहारी सिन्हा के पूर्वज तब बिहार के मुजफ्फरपुर के पास बरियारपुर में बस गये थे. इसके बाद वह फिर पटना में आ कर बस गए थे. सुमन कहते हैं, जब यह सिनेमा हॉल बन कर तैयार हुआ था, उस समय देश में गिने-चुने जगहों पर ही सिनेमा हॉल हुआ करते थे. इस सिनेमा हॉल की शुरुआत के वक्त बंगाल, बिहार उड़ीसा और असम एक थे. इन सभी राज्यों में यह सबसे पहले सिनेमा हॉल था.
तब एक आने का भी टिकट
सुमन बताते हैं, प्लेस ऑफ वैरायटी यानि रीजेंट में तब 750 दर्शकों की क्षमता होती थी. 2011 में जब रिजल्ट सिनेमा हॉल को री-न्यू किया गया और उसके बाद जब इसे दर्शकों के लिए ओपन किया गया तब 1152 स्टिंग हुआ करती थी. वह कहते हैं, जब 1929 में रीजेंट सिनेमा हॉल शुरू हुआ था तब इसकी टिकट का दर कई श्रेणी में हुआ करता था. तब सबसे महंगा टिकट दस आने का हुआ करता था. इसके बाद छह आना, दो आना और फिर एक आने की टिकट हुआ करती थी. उस दौर में जितने फिल्में बनती थी, वह सभी रीजेंट में लगती थी. सुमन बताते हैं कि तब अंग्रेजी में फिल्में बनती थी और ब्रिटेन से आती थी. लोग उनको देखते थे. चार्ली चैप्लिन की फिल्मों को लोग बहुत पसंद करते थे. वह कहते हैं, तब हरिश्चंद्र तारामती, राम राज्य और आलम आरा जैसी फिल्में भी पटना में चली थी.
मुंबई से आती थी रील
सुमन बताते हैं, पहले फिल्मों की रील को मुंबई में बॉक्स में भरकर के सिनेमा हॉलको भेज दिया जाता था. यह दो-दो हिस्से में हुआ करती थी. तब 20 या 22 रील की फिल्में भी बनती थी. एक बॉक्स में 10 रील होते थे और एक रील में दो पार्ट होते थे. अगर 22 रील की फिल्म है तो उसकी 11 हिस्से हुआ करते थे.
प्रचलन में था प्लेस ऑफ भरभराइटी
एक और दिलचस्प बात बताते हुए सुमन कहते हैं, प्लेस ऑफ वैरायटी से एक और दिलचस्प वाक्यात जुडा हुआ है. वह कहते हैं, तब जब लोग किसी रिक्शेवाले या किसी अन्य से प्लेस ऑफ वैरायटी के बारे में पूछते थे, तो लोग उसे प्लेस ऑफ भरभरायटी कहते थे. आम लोग प्लेस ऑफ वैरायटी को बोल ही नहीं पाते थे तब ज्यादातर लोग इसे पहले प्लेस ऑफ भरभराइटी ही कहते थे.
कोलकाता के व्यक्ति से बनाया था एलिफिंस्टन
रीजेंट सिनेमा के बाद अविभाजित बिहार का दूसरा सबसे पुराना सिनेमा हॉल एलिफिंस्टन है. इस सिनेमा हॉल को भी बनाने वाले बिहार के नहीं थे. सुमन बताते हैं, एलिफिंस्टन सिनेमा हॉल को तब के कलकत्ता के नरेंद्र नाम के एक व्यक्ति ने बनवाया था. उन दिनों में ही उनकी देश भर में सिनेमा हॉल की चेन हुआ करती थी. इस सिनेमा हॉल का नाम पहले नरेंद्र थिएटर हुआ करता था. एलिफिंस्टन सिनेमा हॉल 1933 में बन कर तैयार हो गया था. जब नरेंद्र जी पटना से जाने लगे तो उन्होंने इसे दूसरे व्यक्ति को बेच दिया. इसके बाद उस व्यक्ति ने भी इसे किसी तीसरे से बेच दिया. वर्तमान में इस सिनेमा हॉल के मालिक वही तीसरे खरीदार हैं.
इन दोनों के बाद के हैं सभी सिनेमा हॉल
प्रख्यात फिल्म समीक्षक और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता विनोद अनुपम कहते हैं, बिहार में सिनेमा के कद्रदानों की कमी पहले भी नहीं थी और आज भी नहीं है. बिहार में सिनेमा हॉल का इतिहास भी वर्षों पुराना है. पटना में इन दोनों सिनेमा हॉल के बाद ही अन्य सिनेमा हॉल बने. रीजेंट 1929 में बना जबकि एलिफिंस्टन 1933 में बना. इसके बाद 1940 और 1950 के दशक में संभवत: अन्य कोई सिनेमा हॉल नहीं बने. 1960 के दशक में पटना में बनने वाले सिनेमा हॉल में वीणा, अशोक जैसे हॉल थे वहीं 1970 के दशक में वैशाली, मोना और चाणक्य थे. अन्य सभी सिनेमा हॉल इनके बाद ही बने थे. वर्तमान में मोना, एलिफिंस्टन मल्टी प्लेक्स में तब्दील हो चुके हैं, जबकि रीजेंट सिंगल भी सिंगल थियेटर के रूप में ही आधुनिक सुविधा के साथ लगातार चल रहा है. वीणा सिनेमा हॉल में ज्यादातर भोजपुरी फिल्में लगती हैं. जबकि अन्य सिनेमा हॉल मल्टी प्लेक्स की बदलाव को नहीं सह पाये और बंद हो गए.
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