देश- हरियाणा में हार के साइड इफैक्ट्स… हुड्डा ही नहीं सैलजा और सुरजेवाला का भी चैप्टर होगा क्लोज!- #NA

भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला और कुमारी सैलजा

हरियाणा का चुनाव परिणाम आ गया है. कांग्रेस को लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. इस हार ने हरियाणा कांग्रेस के तीन नेताओं के सियासी भविष्य को संकट में डाल दिया है. ये तीन नेता हैं- भूपिंदर सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला.

कहा जा रहा है कि हरियाणा में हार के बाद अब इन तीनों की पॉलिटिक्स आगे शायद ही परवान चढ़ पाए. आखिर ऐसा क्यों, आइए इसे विस्तार से समझते हैं

भूपिंदर हुड्डा का चैप्टर क्लोज क्यों?

भूपिंदर सिंह हुड्डा 77 साल के हो गए हैं. हाल ही में उन्होंने एक रैली में कहा था कि मैं आखिरी बार बीजेपी से मजबूती से लड़ना चाहता हूं. हुड्डा अब अगले चुनाव में 82 साल के हो जाएंगे. ऐसे में अब इस बात की संभावनाएं कम ही दिख रही हैं कि हुड्डा राजनीति में सक्रिय रहे. हालांकि, गढ़ी-सांपला-किलोई सीट से हुड्डा विधायक चुने गए हैं.

कहा जा रहा है कि हुड्डा अब आधिकारिक तौर पर अपनी विरासत बेटे दीपेंद्र को सौंप सकते हैं. दीपेंद्र ने इस बार के चुनाव में औसतन 6-7 रैली की है. दीपेंद्र के सीएम बनने की चर्चा भी हरियाणा के सियासी गलियारों में जोरों पर थी.

अब हाईकमान में भी हुड्डा की पैरवी ज्यादा नहीं चलेगी. वजह उनका परफॉर्मेंस है. हुड्डा ने अपने समर्थकों के लिए 72 टिकट लिए थे, जिसमें से सिर्फ 32 जीत पाए. हुड्डा के गढ़ सोनीपत और पानीपत में कांग्रेस बुरी तरह हारी है.

हुड्डा की पैरवी से नियुक्त कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान भी अपना चुनाव हार गए हैं. उदयभान होडल सीट से चुनाव लड़ रहे थे.

सैलजा का भी सियासी खेल खत्म

भूपिंदर सिंह हुड्डा के बाद हरियाणा कांग्रेस में कुमारी सैलजा को सबसे मजबूत नेता माना जाता है. सैलजा 5 बार की सांसद हैं और दलितों के बीच मजबूत पकड़ रखती हैं. सैलजा की सिरसा, अंबाला और यमुनानगर में दबदबा है.

इस चुनाव में सैलजा ने खुलकर हुड्डा गुट के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. सैलजा को इसका फायदा भी मिला और उनके 9 समर्थकों को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया. दिलचस्प बात है कि हुड्डा के 1-2 समर्थक ही चुनाव जीत पाए.

सैलजा के समर्थक प्रदीप चौधरी कालका से, शमशेर सिंह गोगी असंध से चुनाव हार गए हैं. सिरसा में भी उन सीटों पर ही कांग्रेस को जीत मिली है, जिन सीटों पर सैलजा के समर्थक उम्मीदवार नहीं थे.

कांग्रेस का एक धड़ा हार के लिए सैलजा की मुखरता को वजह मान रही है. सैलजा लगातार अपनी ही पार्टी पर सवाल उठा रही थीं. अब चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह से उनके इलाके में पार्टी का प्रदर्शन रहा है, उससे आने वाले वक्त में उन्हें पार्टी के भीतर तरजीह मिले, इसकी गुंजाइश कम ही है.

सैलजा अभी महासचिव और उत्तराखंड की प्रभारी हैं. छत्तीसगढ़ में हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें उत्तराखंड भेज दिया था. उस वक्त कहा गया था कि हरियाणा में शांति बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने यह फैसला किया है. अब कांग्रेस उनको लेकर सख्त फैसला भी ले सकती है.

हरियाणा से सुरजेवाला भी आउट

हुड्डा और सैलजा के बाद हरियाणा कांग्रेस के भीतर रणदीप सिंह सुरजेवाला को मजबूत नेता माना जाता है. सुरजेवाला अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं. हरियाणा में चुनाव से पहले सुरजेवाला ने सीएम पद पर दावेदारी की थी. हालांकि, पार्टी ने सुरजेवाला की जगह उनके बेटे आदित्य को कैथल से उम्मीदवार बनाया था.

आदित्य कैथल की सीट जीतने में भी कामयाब रहे. अब कहा जा रहा है कि हरियाणा की राजनीति आदित्य ही देखेंगे. सुरजेवाला पहले की तरह राष्ट्रीय राजनीति में रहेंगे. सुरजेवाला अभी कर्नाटक के प्रभारी महासचिव हैं. उन्हें राहुल गांधी का भी करीबी माना जाता है.

उदयभान-कैप्टन अजय का क्या होगा?

इन तीन नेताओं के अलावा चौधरी उदयभान और कैप्टन अजय यादव को लेकर भी सवाल उठ रहा है. चौधरी उदयभान हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और होडल सीट से चुनाव हार गए हैं. चुनाव हारने की वजह से उनकी कुर्सी खतरे में आ गई है.

उदयभान का आगे क्या होगा, यह हुड्डा के रूख पर निर्भर करेगा. वहीं हरियाणा कांग्रेस के एक और नेता कैप्टन अजय यादव भी चर्चा में हैं. अजय यादव के बेटे चिरंजीव राव रेवाड़ी से चुनाव हार गए हैं.

कैप्टन अजय कांग्रेस के ओबीसी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. चिरंजीव और कैप्टन अजय के अगले कदम का इंतजार रहेगा.

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