देश- बसपा की हार दर हार से मायावती बेचैन, कभी मुस्लिम तो कभी जाट पर क्यों फोड़तीं ठीकरा- #NA
बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है, जिसे लेकर पार्टी प्रमुख मायावती बेचैन हैं. हरियाणा में इनेलो के साथ मिलकर लड़ने के बाद भी बसपा सबसे बड़ी ‘लूजर’ कही जा रही है. सूबे में बसपा का खाता भी नहीं खुला और वोट शेयर भी घट गया है. मायावती ने हरियाणा चुनाव में मिली शिकस्त का ठीकरा जाट समुदाय पर फोड़ा है. मायावती ने इसी तरह यूपी के 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली हार का दोष मुसलमानों को दिया था. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती अपने कोर वोटबैंक के बजाय कभी जाट, तो कभी मुसलमानों पर का ठीकरा क्यों फोड़ती है.
हरियाणा में जाट और दलित समीकरण बनाने के लिए बसपा और इनेलो मिलकर चुनाव लड़ी थीं. राज्य की 90 सीटों में से 53 सीट पर इनेलो और 37 सीट पर बसपा ने किस्मत आजमाया था. इनेलो दो सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन बसपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी. ऐसे में मायावती ने कहा कि जाट समाज के जातिवादी लोगों ने बसपा को वोट नहीं दिया, जिसके चलते बसपा के उम्मीदवार कुछ सीटों पर थोड़े वोटों के अंतर से हार गए. साथ ही उन्होंने कहा कि यूपी के जाट समाज के लोगों ने अपनी जातिवादी मानसिकता काफी हद तक बदली है. वे बसपा से विधायक और सरकार में मंत्री भी बने हैं, लेकिन हरियाणा के जाट समाज की जातिवादी सोच नहीं बदली है.
मायवाती ने हरियाणा की हार के लिए जाटों को जिम्मेदार ठहराया, तो यूपी में बसपा की हार के लिए मुसलमानों पर दोष मढ़ा था. इतना ही नहीं, उत्तराखंड के नतीजों के लिए भी बसपा ने मुस्लिम समाज के वोटरों को जिम्मेदार बताया था. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को एक सीट मिली थी और 2024 लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला. बसपा का सियासी आधार दिन ब दिन घटता जा रहा है. यूपी में बसपा का वोट शेयर 10 फीसदी से कम हो गया है, तो हरियाणा में पार्टी का वोट शेयर एक फीसदी के करीब रहा.
दोष जाट समुदाय पर मढ़ रही हैं मायावती
बसपा को मिल रही चुनावी हार और सिमटते सियासी आधार के चलते मायावती बेचैन हैं. हरियाणा में इनेलो के साथ गठबंधन करने के बाद भी बसपा को राजनीतिक संजीवनी नहीं मिल सकी. ऐसे में बसपा हार के लिए मायावती अपने कोर वोटबैंक दलित समुदाय को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती हैं. बसपा की हार के लिए किसी न किसी को तो जिम्मेदार ठहराना ही था, जिसके लिए कभी मुस्लिम तो कभी जाट समुदाय के जिम्मे मढ़ देती हैं. हरियाणा में दलित वोटों को मायावती अपने साथ नहीं जोड़ सकीं, लेकिन हार का दोष जाट समुदाय पर मढ़ रही हैं. इनेलो से जाट समुदाय ने 2019 में ही मुंह मोड़ लिया था और कांग्रेस के साथ खड़ा है. ऐसे में हरियाणा चुनाव का मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहा, तो जाट कैसे बसपा के साथ जाता.
हरियाणा का विधानसभा चुनाव दो ध्रुवी था और जाट बनाम गैर-जाट में बंटा हुआ नजर आ रहा था. ऐसे में इनेलो और बसपा की स्ट्रैटेजी जाट-दलित समीकरण बनाने की स्ट्रैटेजी थी. राज्य में 21 फीसदी दलित और 25 फीसदी से ज्यादा जाट समुदाय है. मायावती से लेकर आकाश आनंद तक ने हरियाणा में जमकर मेहनत की, लेकिन नतीजे उनके खिलाफ रहे. इनेलो-बसपा गठबंधन के साथ न दलित का समर्थन मिला और न ही जाट साथ खड़े नजर आए. चौटाला परिवार की सीटों पर जरूर जाट समुदाय ने वोट दिया, लेकिन बाकी सीट पर कांग्रेस के साथ खड़ा नजर आया. इसी तरह दलित समुदाय का बड़ा झुकाव बीजेपी और फिर कांग्रेस की तरफ रहा. इसका ही नतीजा है कि बसपा को 1.82 फीसदी ही वोट मिल सका, जबकि 2019 में 4.21 फीसदी था. इससे साफ है कि बसपा के साथ दलित समुदाय नहीं जुट सके.
कोर वोट बैंक बचाए रखना चाहती हैं मायावती
राजनीतिक विश्लेषक फिरोज नकवी मानते हैं कि दलित समुदाय पर से बसपा की पकड़ लगातार कमजोर होती जा रही है. उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक बसपा का कोर वोटर खासकर जाटव समुदाय उनसे छिटककर बीजेपी के साथ चला गया, जिस पर उनका सियासी असर था. जाट और मुस्लिम समुदाय न तो कभी बसपाके एजेंडे में रहा और न ही उन्हें जोड़ने के लिए किसी तरह की पहल मायावती ने की. मायावती को दूसरे समाज पर दोष मढ़ने के बजाय अपने कोर वोट बैंक को संभालने की कोशिश करनी चाहिए.
जाट और मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराकर मायावती दलितों के बीच अपने सियासी आधार को बचाए रखना चाहती हैं, जबकि हकीकत यह है कि बसपा का कोर वोटर जाटव है और वो बीजेपी में चला गया. मायावती को अपनी सियासत को जिंदा रखना है तो अपने कोर वोट बैंक पर काम करना होगा क्योंकि उस पर कांग्रेस से लेकर बीजेपी की नजर है. इतना ही नहीं, मायावती को अब समीकरण के बजाय जमीनी स्तर पर काम करना चाहिए, खासकर दलित समुदाय को अपने साथ जोड़े रखने के लिए.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link