देश- हरियाणा विधानसभा की वो 5 सीटें, जहां जाटों ने ही कर दिया कांग्रेस का खेल- #NA
भूपिंदर सिंह हुड्डा और राहुल गांधी
हरियाणा में क्यों हारे, चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस इसकी समीक्षा करने में जुट गई है. कांग्रेस के एक धड़े का कहना है कि जाट बनाम गैर-जाट चुनाव होने की वजह से कांग्रेस सत्ता से दूर हो गई. हालांकि, चुनाव परिणाम के जो आकड़ें हैं, उसकी मानें तो हार की एक वजह जाटों का वोटिंग पैटर्न भी है.
कांग्रेस हरियाणा चुनाव में कम से कम 5 सीटों पर जाटों की वजह से हारी है. कहा जा रहा है कि अगर इन 5 सीटों पर जाटों ने एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया होता तो चुनाव का सिनेरियो ही बदल जाता.
किन सीटों पर जाटों की वजह से हारी कांग्रेस?
उचाना कलां- जींद जिले की उचाना कलां विधानसभा सीट को जाटों का गढ़ माना जाता है. यहां से कांग्रेस ने चौधरी छोटूराम और चौधरी बीरेंद्र सिंह के सियासी वारिस बृजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा था. चौधरी छोटूराम जाटों के बड़े नेता माने जाते थे.
उचाना कलां में बृजेंद्र का मुकाबला जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला से था. दुष्यंत इस सीट से विधायक थे, लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तो चौधरी बृजेंद्र सिंह 32 वोटों से हार गए. यहां से चुनाव जीत गए बीजेपी के देवेंद्र अत्री. अत्री ब्राह्मण समुदाय से आते हैं.
बृजेंद्र की हार की वजह यहां जाट समुदाय के प्रत्याशियों का वोटकटवा होना है. बृजेंद्र सिंह ने भी अपने हार के लिए छोटे नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराया है. बृजेंद्र का कहना है कि छोटे नेताओं ने वोट काट लिए, जिसके कारण मैं 32 वोटों से हार गया.
तोशम- भिवानी जिले की तोशम विधानसभा सीट भी जाट बाहुल्य है. यह सीट हरियाणा के पूर्व सीएम बंसीलाल की वजह से देश की सियासत में सुर्खियों में रहती है. तोशम में इस बार का मुकाबला बंसीलाल के पोती श्रुति और पोते अनिरुद्ध के बीच था.
श्रुति बीजेपी के सिंबल से मैदान में थी, जबकि अनिरुद्ध कांग्रेस के सिंबल पर. अनिरुद्ध के लिए भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कैंपेन की थी. हुड्डा ने तोशम में वादा किया था कि सरकार बनने पर अनिरुद्ध को मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन तोशम में अनिरुद्ध के साथ खेल हो गया.
तोशम के चुनाव में श्रुति ने एकतरफा जीत हासिल की है. श्रुति की जीत के बाद कहा जा रहा है कि जाटों ने बंसीलाल के उत्तराधिकारी के रूप में अनिरुद्ध के मुकाबले श्रुति को चुना है.
दादरी- दादरी सीट भी हरियाणा का जाट बाहुल्य माना जाता है. यहां बीजेपी के सुनील सांगवान के मुकाबले कांग्रेस ने मनिषा सांगवान को मैदान में उतारा था. कांग्रेस को जाटलैंड होने की वजह से दादरी में जीत की उम्मीद थी, लेकिन मनीषा चुनाव में 1957 वोटों से हार गई.
यहां से मैदान में उतरे कई छोटे-छोटे जाट समुदाय के उम्मीदवारों ने इससे ज्यादा वोट काट लिए. इनमें निर्दलीय अजित सिंह (3369 वोट) और बीएसपी के आनंद शेरौन (1036 वोट) प्रमुख हैं.
पानीपत ग्रामीण- करनाल जिले की पानीपत ग्रामीण सीट जाट बाहुल्य है. यहां से बीजेपी ने महिपाल ढांढा को मैदान में उतारा था. कांग्रेस ने सचिन कुंडू को टिकट दिया. कांग्रेस को उम्मीद थी कि पानीपत के जाट उसका समर्थन करेंगे, लेकिन दांव उलटा पड़ गया.
पानीपत ग्रामीण सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सचिन कुंडू करीब 50 हजार वोटों से चुनाव हारे हैं. यहां से जाट समुदाय के बीजेपी उम्मीदवार महिपाल ढांढा ने जीत हासिल की है.
बाढ़रा- हरियाणा की बाढ़रा विधानसभा सीट पर भी जाटों का दबदबा है. 2019 में दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला ने यहां से जीत हासिल की थी. कांग्रेस ने इस बार यहां से सोमवीर सिंह को मैदान में उतारा था.
बीजेपी की तरफ से मैदान में थे- उम्मेद सिंह. जाट बाहुल्य होने की वजह से कांग्रेस को यहां से जीतने की उम्मीद थी, लेकिन निर्दलीय जाट प्रत्याशी सोमवीर घोसला ने कांग्रेस उम्मीदवार का खेल खराब कर दिया.
कांग्रेस उम्मीदवार इस सीट से 7585 वोट से हारे. निर्दलीय सोमवीर घोसला को 26730 वोट मिले.
जाटों में बढ़ी बीजेपी की लोकप्रियता, कांग्रेस में घटी
सीएसडीएस के मुताबिक 2024 के विधानसभा चुनाव में 53 प्रतिशत जाटों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है. 4 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में 61 प्रतिशत जाटों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था.
इसी तरह बीजेपी के पक्ष में 28 प्रतिशत जाटों ने मतदान किया है. लोकसभा चुनाव के दौरान 27 प्रतिशत था. इन आंकड़ों को देखने के बाद कहा जा रहा है लोकसभा की तुलना में विधानसभा चुनाव में जाटों के बीच बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी है.
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