देश – घर का फोन खुद उठाते, ताज होटल में भी बिल भरते थे; रतन टाटा की बेमिसाल सादगी की 13 कहानियां – #INA
टाटा ट्रस्ट के मानद अध्यक्ष रतन नवल टाटा को मुंबई में राजकीय सम्मान के साथ गुरुवार शाम अंतिम विदाई दे दी गई। पद्म विभूषण रतन टाटा का बुधवार की रात मुंबई में निधन हो गया था। टाटा के व्यापार को ईमानदारी और नैतिकता के साथ देश-विदेश में फैलाने वाले रतन टाटा को लोग उनके सादगी भरे जीवन, भलाई करने की उनकी आदत के लिए याद कर रहे हैं। आम लोगों के दिल में जो सम्मान रतन टाटा ने पाया, उद्योग जगत में ना पहले किसी को मिला, ना आगे ऐसा कोई दिखता है। अपनी श्रद्धांजलि में रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने उनके नेतृत्व का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि 1991 में रतन टाटा ने कंपनी का चेयरमैन बनने के बाद ग्रुप को 70 गुना बड़ा कर दिया।
रतन टाटा की याद में रेडिफ डॉट कॉम के लिए पत्रकार और लेखक शैलेश कोट्टारी ने एक स्मृति लेख लिखा है। खबर और किताब के सिलसिले में रतन टाटा के साथ कई दिन और शाम बिताने वाले शैलेश कोट्टारी ने लेख में रतन टाटा के सादगी भरे जीवन की कुछ ऐसी बातें बताई हैं जो अब तक किसी को नहीं पता है। उस श्रद्धांजलि लेख से और कुछ दूसरे लोगों की बताई अनसुनी बातें।
रतन टाटा अपने घर पर लैंडलाइन फोन खुद उठाते थे। रतन टाटा से कम कारोबार और हस्ती वाले व्यापारी भी घर पर फोन उठाने के लिए सचिवालय रखते हैं। लेकिन रतन टाटा के घर का जो टेलीफोन नंबर सार्वजनिक था, उस पर आने वाले हर कॉल को यथासंभव वो खुद उठाते थे।
1991 में जब रतन टाटा को पहली बार चेयरमैन बनाया गया तो उनके लिए मुंबई का वो बंगला सजाया गया, जिसमें उनसे पहले टाटा सन्स के 53 साल चेयरमैन रहे भारत रत्न जेआरडी टाटा रहते थे। लेकिन उन्होंने कभी उस बंगले को अपना घर नहीं बनाया। कोलाबा के दो कमरे वाले फ्लैट में ही रहे। लगभग पांच-छह साल पहले रतन टाटा बढ़ती उम्र की जरूरतों के लिहाज से खुद के बनाए एक बंगले में शिफ्ट हो गए थे।
रतन टाटा पहली पारी में 21 साल चेयरमैन रहे। जब तक वो चेयरमैन रहे, जेआरडी टाटा वाले बंगले के बदले कोलाबा में बख्तावर अपार्टमेंट के अपने दो कमरे के साधारण फ्लैट में ही रहे। पहले फ्लोर पर रतन टाटा का घर था और दूसरे फ्लोर पर उनकी सौतेली मां सिमोन टाटा का। टाटा ग्रुप के वारिस के तौर पर जिन नोएल टाटा के नाम की चर्चा हो ही है वो सिमोन और नवल टाटा के बेटे हैं।
रतन टाटा के कोलाबा वाले फ्लैट में जो सबसे महंगी चीज थी वो थी बोस कंपनी का म्यूजिक सिस्टम। इसके अलावा घर में बस जरूरत की चीजें थीं। दिखावे का कोई सामान नहीं था, चाहे देश की हो या विदेश की।
रतन टाटा हवाई सफर के दौरान आम लोगों के साथ कतार में लगते थे और अपना सामान खुद ही उठाते थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इसके गवाह रहे हैं जब उनके न्योते पर रतन टाटा एक अस्पताल का उद्घाटन करने औरंगाबाद गए थे। औरंगाबाद एयरपोर्ट पर नितिन गडकरी ने रतन टाटा की आवभगत के लिए लोग लगा रखे थे लेकिन उन्होंने अपना बैग खुद उठा लिया। नितिन गडकरी से बोले- मेरा बैग है, मैं ही उठाऊंगा।
रतन टाटा जब एयर इंडिया के चेयरमैन बनाए गए तो उनको कंपनी प्रमुख के नाते अपनी कार जहाज तक ले जाने की इजाजत थी। लेकिन रतन टाटा आम लोगों की तरह हवाई सफर करते रहे। कंपनी के दूसरे डायरेक्टर इस सुविधा का नियमित इस्तेमाल करते थे, जिस पर वो चकित रहते थे।
रतन टाटा हमेशा साफ-सुथरे और ढंग से कपड़े पहनते थे। लेकिन ये कपड़े विदेश से नहीं आते थे। शैलेश कोट्टारी ने जब एक बार पूछा कि सूट कहां से सिलवाते हैं तो रतन टाटा ने बताया था कि वो कोलाबा के ही एक लोकल दर्जी से सूट सिलवाते हैं। ये सुनकर कोट्टारी चौंक गए थे।
रतन टाटा एक शाम मुंबई के ताज होटल में जोडिएक ग्रिल रेस्तरां में शैलेश कोट्टारी और एक मीडिया समूह के अध्यक्ष के साथ डिनर कर रहे थे। डिनर के बाद वेटर ने रतन टाटा को बिल पकड़ा दिया। रतन टाटा ने कार्ड से पेमेंट कर दिया। मीडिया कंपनी के प्रेसिडेंट भौंचक्के रह गए। उन्होंने रतन टाटा से पूछा कि आपके अपने ही होटल ने आपको बिल कैसे दे दिया। रतन टाटा ने उनसे कहा कि फिर कॉरपोरेट में मानक कैसे स्थापित होंगे, आपको खुद उदाहरण बन कर इसे कायम करना होगा।
शैलेश शेट्टी ने लिखा है कि जब भी रतन टाटा के साथ वो किसी रेस्तरां में डिनर करने जाते तो कुछ देर बाद मैनेजर रतन टाटा की कार की चाबी दे जाता था। जब शैलेश ने उनसे पूछा कि ये क्या माजरा है तो रतन टाटा ने कहा कि वो नहीं चाहते हैं कि उनका ड्राइवर निर्धारित समय से ज्यादा उनकी ड्यूटी में रहे। ड्राइवर का परिवार है और उसे समय पर अपने परिवार और बच्चों के साथ होना चाहिए। डिनर के बाद अक्सर वो अपनी कार खुद चलाकर घर लौटते थे।
रतन टाटा के खुद कार चलाने की कहानी नितिन गडकरी ने भी सुनाई है। गडकरी ने बताया कि एक बार रतन टाटा उनके घर आने वाले थे। उन्हें रतन टाटा का फोन आया और वो रास्ता पूछने लगे। जब नितिन गडकरी ने ड्राइवर और सुरक्षा के बारे में पूछा तो रतन टाटा ने बताया कि वो अकेले हैं और खुद गाड़ी चलाकर आ रहे हैं।
रतन टाटा की सादगी की एक कहानी उत्तर प्रदेश के मंत्री और पूर्व आईपीएस अफसर असीम अरुण ने भी साझा की है। असीम अरुण तब प्रधानमंत्री और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए बनाए गए फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप में तैनात थे। एसपीजी के एक कार्यक्रम में रतन टाटा को आमंत्रित किया गया था। असीम उन्हें रिसीव करने ताज मान सिंह होटल गए और पाया कि वहां रतन टाटा किसी सुइट के बदले एक सामान्य कमरे में रुके थे।
रतन टाटा कार और ड्राइवर के साथ निकले। असीम अरुण को भी अपनी कार में ही बिठा लिया। असीम ने पहले से एसपीजी की एक पायलट कार उनके आगे चलने के लिए लगा रखी थी। रतन टाटा ने जैसे यह नोटिस किया, उन्होंने असीम से कहा कि इसे आगे से हटवा दीजिए। जब तक वो कार आगे चलती रही, रतन टाटा बेचैन रहे। असीम अरुण ने उनसे तब पूछा था कि आपके साथ कोई सुरक्षा क्यों नहीं है तो रतन टाटा ने कहा था कि उन्हें किससे खतरा हो सकता है।
रतन टाटा ने कंपनी के लिए एक आचार संहिता बनवाई और खुद आगे बढ़कर उसका पालन किया। टाटा ग्रुप फिर से एयरलाइन बिजनेस में आना चाहती थी लेकिन कंपनी की लाइसेंस की अर्जी अटकी हुई थी तब उनसे एक बिचौलिए ने कहा कि किस आदमी को पैसा देने से काम हो जाएगा। रतन टाटा ने घूस देकर काम कराने से मना कर दिया।
रतन टाटा ने कंपनी की आचार संहिता के उल्लंघन में फंसे अपने भरोसेमंद लोगों को भी कोई रियायत नहीं दी। जब उनके प्रिय वित्तीय सलाहकार और टाटा फिनांस के प्रमुख दिलीप पेंडसे के बारे में पता चला कि बिना कंपनी को बताए उन्होंने खुद से एक कंपनी में भारी निवेश किया है तो उनकी शामत आ गई। रतन टाटा ने सुनिश्चित किया कि ना सिर्फ दिलीप बोर्ड से निकाले जाएं बल्कि उनके ऊपर आपराधिक मुकदमा भी दर्ज कराया जाए।
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