देश- झारखंड में बीजेपी जिस ट्रिपल बी फॉर्मूले को मान रही थी विनिंग दांव, अब वो कैसे बन रहा गले की फांस?- #NA
चंपई सोरेन और अर्जुन मुंडा
झारखंड विधानसभा चुनाव की जंग जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन को मात देने के लिए बीजेपी ने चंपई सोरेन और जेएमएम के बड़े नेताओं को अपने पाले में लेकर सियासी माहौल बनाने की कवायद की थी. इतना ही नहीं बीजेपी ने ट्रिपल बी-फार्मूले के तहत कमजोर सीटें जीतने के लिए पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटा, बहू और बीबी यानी पत्नी को चुनावी मैदान में उतारकर बड़ा सियासी दांव चला, लेकिन अब उन्हीं सीटों पर जिस तरह से पार्टी नेताओं की नाराजगी सामने आ रही है, उसके चलते बीजेपी के गले की फांस बनता जा रहा है.
झारखंड चुनाव में सभी की निगाहें घाटशिला, पोटका, जमशेदपुर पूर्वी, जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर हैं, क्योंकि बीजेपी ने इन सभी चारों सीटों पर ट्रिपल-बी का दांव चला है. बीजेपी ने घाटशिला सीट पर पूर्व सीएम चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को कैंडिडेट बनाया है तो पोटका सीट पर पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट दिया है. जमशेदपुर पूर्वी सीट पर पूर्व सीएम और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास को प्रत्याशी बनाया है. इसी तरह पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को जगन्नाथपुर सीट से टिकट दिया है.
नेताओं ने इख्तियार किया बागी रुख
बीजेपी ने ट्रिपल बी फॉर्मूला का दांव उन्हीं चारों विधानसभा सीटों पर चला है, जहां पर 2019 में उसे जीत नहीं मिल सकी थी. सियासी समीकरण के लिहाज से विपक्ष खासकर जेएमएम और कांग्रेस के लिए मजबूत सीटें मानी जाती हैं, जिसके चलते ही बीजेपी ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री के बेटा, बहू और बीबी को उतारकर चुनावी जंग फतह करने की रूपरेखा बनाई है. बीजेपी इसे विनिंग फॉर्मूला मानकर चल रही थी, लेकिन पार्टी नेताओं ने जिस तरह बागी रुख इख्तियार किया है, उसके चलते सियासी टेंशन बढ़ गई है.
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जमशेदपुर पूर्वी सीट फिर बनेगी चुनौती?
जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट बीजेपी 2019 में हार गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को बीजेपी के बागी नेता सरयू राय ने हराया था. बीजेपी ने इस बार रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन राह आसान नहीं है. पूर्णिमा दास को उम्मीदवार बनाए जाने पर बीजेपी के कई नेता नाराज हो गए हैं. दिनेश कुमार से लेकर रामबाबू तिवारी, अभय सिंह और शिवशंकर सिंह सहित नेता टिकट की रेस में शामिल थे, लेकिन पार्टी ने पूर्व सीएम रघुवर दास की बहू पर भरोसा जताया है. टिकट न मिलने से नाराज नेताओं का बागी रुख चिंता बढ़ा सकता है.
पोटका सीट पर कशमकश में फंसी बीजेपी
पोटका विधानसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को प्रत्याशी बनाया है. 2019 में यह सीट जेएमएम के संजीब सरदार ने जीती थी. बीजेपी ने इस बार मीरा मुंडा को उतारा है, लेकिन उनका विरोध शुरू हो गया है. पोटका सीट से तीन बार विधायक रहीं मेनका सरदार ने टिकट न मिलने के चलते बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है. मेनका सरदार ने चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया है, जिसके चलते पोटका सीट पर बीजेपी कशमकश में फंस गई है. बीजेपी के लिए अब यह सीट नहीं रहने वाली है. बीजेपी को कांग्रेस के संजीब सरकार के साथ-साथ मेनका सरकार से भी मुकाबला करना होगा.
क्या घाटशिला सीट पर बीजेपी उलझ गई?
घाटशिला विधानसभा क्षेत्र जेएमएम की मजबूत गढ़ माना जाता है. इसीलिए बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को घाटशिला सीट से टिकट दिया है ताकि जीत का परचम फहरा सके. 2019 में जेएमएम के रामदास सोरेन ने जीत दर्ज की थी. इस बार बाबूलाल सोरेन का घाटशिला में जेएमएम के रामदास सोरेन से चुनावी मुकाबला होगा, रामदास सोरेन, हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री भी है, लेकिन बीजेपी के लिए यहां से टिकट के दावेदार माने जाने वाले कई नेता नाराज हैं. इसके चलते बीजेपी के लिए इस सीट पर कांटे का मुकाबला बन गया है.
जगन्नाथपुर सीट पर गीता कोड़ा पर दांव
जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को प्रत्याशी बनाया है. मधु कोड़ा बीजेपी और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत चुके हैं और उनकी पत्नी गीता कोड़ा भी दो बार विधायक रही हैं. 2019 में यह सीट कांग्रेस के टिकट पर सोनाराम सिंकु ने जीती थी. कांग्रेस ने फिर दांव खेला है, जिसके चलते जगन्नाथपुर सीट पर मुकाबला गीता कोड़ा बनाम सोनाराम सिंकु का है.
संताल से कोल्हान तक उलझी बीजेपी
झारखंड में सियासी नजरिए से देखें तो 18 सीटें संताल और 14 सीटें कोल्हान इलाके में आती हैं. बीजेपी इन्हीं दोनों इलाकों में जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन को चुनावी मात देकर सत्ता में वापसी करना चाहती है, लेकिन जिस तरह से उम्मीदवारों की लिस्ट आने के बाद इन दोनों इलाकों में उथल-पुथल मची है, उससे बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ गई है. टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व मंत्री लुईस मरांडी और राज पलिवार समेत कई नेता छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार हैं या जेएमएम का दामन थाम रहे हैं. लुईस मरांडी और राज पलिवार ही नहीं नाला सीट से बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत चुके सत्यानंद झा बाटुल ने पार्टी छोड़ दी है.
विनिंग फॉर्मूला बना सियासी टेंशन
2019 के विधानसभा चुनाव में संताल परगना की 18 में से 14 सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. कोल्हान की स्थिति संताल से भी बदतर थी. वहां बीजेपी अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. जेएमएम ने सफाया कर दिया था. कोल्हान इलाके के तहत आने वाली कई सीटों पर बीजेपी से जुड़े नेताओं ने बागी रुख इख्तियार कर लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू को टिकट देने का विरोध हो रहा है तो चंपई सोरेन और उनके बेटे को टिकट देने से नाराजगी सामने आई है. ऐसे में बीजेपी झारखंड में जिस फार्मूले को विनिंग मानी रही थी, वो ही पार्टी के लिए सियासी टेंशन बनता जा रहा है.
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