देश- कहां रियाज करती थीं शारदा सिन्हा? जिनकी आवाज की खनक दुनिया में छाई; गाए एक से एक फेमस छठ गीत- #NA
शारदा सिन्हा
छठी मइया के गीतों में रस घोल देने वाली भोजपुरिया समाज की बेहद प्रिय बिहार कोकिला शारदा सिन्हा अब नहीं रहीं. उनके निधन की खबर से सुपौल बिहार स्थित उनके पैत्रिक गांव हुलास में तो मातम है ही, उनके रियाज स्थल समस्तीपुर के लगुनिया गांव के लोग भी शोक में डूब गए हैं. शारदा सिन्हा यहां प्रसिद्ध तबला वादक सरयू राय के साथ घंटों रियाज करती थीं. शारदा सिन्हा ने यहां महिलाओं की एक मंडली भी बनाई थी, जिनके बीच में बैठकर वह महफिल जमाती थीं.
शारदा सिन्हा की पहली छठ गीत ‘उग उग हे सूरुज देव…’ को रिकार्ड कराने का आइडिया भी इसी गांव में रियाज के दौरान आया था. देश ही नहीं, दुनिया भर में मैथिली और भोजपुरी गीतों को पहचान दिलाने वाली शारदा सिन्हा लगुनिया गांव में रहने वाले तबला वादक सरयू राय को अपना गार्जियन मानती थीं. सरयू राय के साथ रियाज करते हुए उन्होंने समस्तीपुर को ही अपना प्रारंभिक कार्यक्षेत्र बना लिया था. कहते हैं कि वैसे तो लगुनिया गांव में चाहे महिला हो या पुरूष, हरेक आदमी की रूचि संगीत में है.
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शारदा सिन्हा की वजह से आते थे बड़े कलाकार
हालांकि शारदा सिन्हा के यहां आने से पहले लोग व्यवसायिक तौर पर संगीत को नहीं अपनाते थे. वहीं जब शारदा सिन्हा यहां आई और उनके साथ यहां के लोग रियाज करने लगे तो गांव से बाहर होने वाले कार्यक्रमों में उनकी डिमांड होने लगी. लगुनिया गांव के बुजुर्गों के मुताबिक शारदा सिन्हा की वजह से देश के तमाम बड़े कलाकारों का यहां आना जाना लगा रहता था. कई बार तो नामी कलाकार यहां आते और 15-15 दिन तक रूक कर शारदा सिन्हा के साथ रियाज करते थे.
साल 2000 के बाद कम हुआ गांव में आना जाना
स्थानीय लोगों के मुताबिक शारदा सिन्हा जब इस गांव में आईं तो उन्होंने यहां की महिलाओं के साथ शादी विवाह और त्योहारों की गीतों से रियाज किया. बाद में उन्होंने छठी मइया की गीतों पर फोकस किया. तबला वादक सूरज राय के छोटे बेटे राजीव राय कहते हैं कि वह नए कलाकारों को प्रोत्साहित करती थीं.राजीव के मुताबिक उनके पिता का निधन 28 मई 2000 को हो गया. उसके बाद श्रद्धांजलि देने के लिए शारदा सिन्हा यहां आई थीं. हालांकि इसके बाद उनका यहां आना बहुत कम हो गया.
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बात-बात में बना गाना रिकार्ड कराने का विचार
राजीव राय कहते हैं कि एक बार शारदा सिन्हा उनके पिता के साथ गाने का रियाज कर रही थीं. जिस गाने पर रियाज हो रहा था, वह गाना भी छठी मइया का था. जैसे ही गाना खत्म हुआ, उनके पिता ने जोर का जयकारा लगाया और शारदा सिन्हा को इस गाने को रिकार्ड कराने की सलाह दी. वह साल 1978 का था. उस समय शारदा सिन्हा अपने कई गानों को रिकार्ड करा चुकी थीं, बावजूद इसके वह छठी मइया के इस गीत को रिकार्ड कराने के लिए तैयार नहीं थी. उस समय उनके पिता ने हौसला दिया और रिकार्डिंग के बाद यह गाना हिट हो गया.
एक के बाद एक गाने हिट हुए
छठी मइया का पहला गीत हिट होने के बाद शारदा सिन्हा ने एक के बाद कई गाने दिए और यह सभी गाने हिट हो गए. राजीव राय के मुताबिक किसी भी गाने को स्टूडियो में रिकार्ड कराने से पहले शारदा सिन्हा यहां उनके घर पर उसका रियाज करती थी. उनके गानों के पहले श्रोता उनके पिता होते थे. जब उनके पिता गानों का पास कर देते तो शारदा सिन्हा उन्हीं गानों को गांव की महिलाओं के साथ गाती और फिर आखिर में गाने को रिकार्ड कराया जाता था. उनके गाने रिकार्ड होने के तत्काल बाद हिट हो जाते थे.
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