सीजी- नवरात्र पर्व शुरू: बालोद में मां गंगा मैया में जलाए गए आस्था के 900 दीप, भक्तों की उमड़ी भीड़ – INA
बालोद जिले की विख्यात शक्तिपीठ मां गंगा मैया मंदिर में आज से शारदीय नवरात्र पर्व का शुरुआत हो चुका है। आज आस्था के 900 दीप प्रज्वलित किए गए। प्रतिवर्ष की भांति ईश्वर से भी भक्तों की सुविधाओं को देखते हुए न्यूनतम दरों पर डाल भारत सेवा और पूरी सब्जी सेवा आरंभ कर दी गई है। वहीं, ज्योति कलश की स्थापना भी मां गंगा मैया मंदिर में की गई। सेवा गीत में भक्तों और पुजारी के माध्यम से ज्योत प्रज्वलित किए गए हैं। वहीं, सुबह से ही मां गंगा मैया मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है।
बालोद जिले के निवासी सीमा ने बताया कि वह बचपन से इस मंदिर में आ रहे हैं और जो यहां पर मनोकामना द्वीप प्रज्वलित करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हमने अपने पूर्वजों से सुना है कि मां गंगा मैया का इतिहास 100 वर्षों पुराना है। यहां माता की चमत्कारिक मूर्ति एक तालाब से निकली हुई थी, जिसके पीछे यह कथा है कि केवट उसे मूर्ति को सामान्य समझकर वापस बांध में फेंक दिया करता था, जिसके बाद एक पुजारी को सपना आया और उसे मूर्ति को निकालकर एक वृक्ष के नीचे स्थापित किया गया था और आज यह चमत्कारिक मूर्ति मां गंगा मैया के नाम से भव्य मंदिर यहां स्थापित है और हम दोनों नवरात्र यहां पर दर्शन के लिए आते हैं आज भी पहुंचे हुए हैं।
135 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
झलमला स्थित मां गंगा मईया मंदिर की स्थापना का इतिहास अंग्रेजी शासन काल से जुड़ा हुआ है। लगभग 135 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था। सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था। बाजार में दूर-दराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे। पशुओं की संख्या अधिक होने की वजह से पानी की कमी महसूस होती थी। पानी की कमी को दूर करने के लिए बांधा तालाब की खुदाई कराई गई। गंगा मैया के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
जाल में फंसी थी प्रतिमा
मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया, “एक दिन ग्राम सिवनी का एक केंवट मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया। जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई। केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया, लेकिन अगली बार जाल में फिर वहीं प्रतिमा फंस गई। केंवट ने फिर मूर्ति को तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केंवट जाल लेकर अपने घर चला गया।
सपने में केंवट को हुआ माता का अहसास
देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा, ‘मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ। स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा। केंवट ने फिर जाल फेंका, जिसमें वही प्रतिमा फिर फंस गई। इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। जल से प्रतिमा के निकलने की वजह से यह धाम मां गंगा मैया के नाम से विख्यात हुई।