यूपी – Exclusive: मंदी से जूझ रहे यूरोपीय देश, 25 फीसदी घटा शहर से होने वाला निर्यात, व्यापारी बोले- स्थितियां विपरीत – INA

अमेरिका के बाद कानपुर के निर्यातकों का सबसे बड़ा बाजार यूरोप मंदी से जूझ रहा है। वहां के बड़े खरीदार वित्तीय संकट में हैं, जिसका असर शहर के निर्यात पर पड़ा है। पिछले साल की तुलना में करीब 25 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। क्रिसमस के पहले ही सबसे ज्यादा ऑर्डर मिलते हैं, लेकिन इस बार स्थितियां विपरीत हैं। जानकारों का कहना है कि विश्व में अलग-अलग देशों के बीच चल रहे युद्ध और उसके कारण महंगाई बढ़ने से बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

शहर से यूरोप के अलग-अलग देशों को मशीनरी, बॉयलर, मोती, कीमती पत्थर, मेटल, सिक्के, आयरन एंड स्टील, फुटवियर, लेदर गारमेंट, जैकेट, बेल्ट, शू अपर, सैडलरी, हारनेस, ट्रैवल बैग, फिलामेंट, टेक्सटाइल, फैब्रिक्स, फर्टिलाइजर, मीट आदि का निर्यात होता है। पिछले साल शहर से यूरोप को करीब दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निर्यात किया गया था।

वहीं, शहर से कुल 8990 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था। चालू वित्तीय वर्ष में अप्रैल से जुलाई के दौरान शहर से कुल 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निर्यात हो चुका है। वित्तीय वर्ष की शुरुआत में यूरोपीय देशों को अच्छा निर्यात हो रहा था, लेकिन अचानक इन देशों में कारोबारी गतिविधियां धीमी पड़ती जा रही हैं। यूरोप के जर्मनी, फ्रांस, इटली कानपुर के उत्पादों के बड़े बड़े खरीदार हैं।


यूरोप के देश जहां होता है निर्यात
ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस गणराज्य, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आयरलैंड, इटली, लात्विया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन और स्वीडन।


निर्यात मांग में कमी के कारण
विकसित देशों में लगातार मुद्रास्फीति की दर ऊंची चल रही है और आर्थिक विकास दर निचले स्तर पर है। जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम में तो लगभग शून्य की दर से विकास दर्ज किया गया है। इस वजह से महंगाई बढ़ी है और मांग घटती जा रही है। यही वजह है कि निर्यात कम हुआ है। रूस व यूक्रेन और इस्राइल के साथ ईरान व लेबनान के युद्ध के अलावा अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर चल रही तनातनी के कारण पूरी दुनिया में विकास को प्रभावित किया है।


कंटेनरों की उपलब्धता का संकट भी बना
फ्रांस समेत कई देशों में राजनीतिक बदलाव और हाल ही में ईस्ट कोस्टगार्ड में हड़ताल से आयात-निर्यात गतिविधियां भी घटी हैं। लाल सागर संकट अभी भी बना हुआ है। शिपिंग की बढ़ती लागत से और परेशानी बढ़ी है। माल भाड़ा बढ़ गया है। चीन में कंटेनरों की भारी मांग के चलते कंटेनरों की उपलब्धता का संकट भी बना हुआ है।


यूरोप के बड़े खरीदार व ब्रांड दिवालिया हो रहे हैं। इसके चलते कानपुर के निर्यातकों के दूसरे सबसे बड़े बाजार पर बहुत बुरा असर पड़ा है। नए निर्यात आर्डर नहीं मिल रहे हैं, जबकि यूरोपीय देशों से क्रिसमस के पहले अक्तूबर में ही सबसे ज्यादा आर्डर जाते थे।  -आलोक श्रीवास्तव, संयोजक, फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशन फियो


शहर से औसतन 5500 से 6000 कंटेनर जाते थे। अब इनकी संख्या घटकर 4500 के करीब रह गई है। मालवाहक जहाजों का भाड़ा पहले ही बढ़ गया था। अब हवाई मार्ग का माल भाड़ा भी 500 रुपये किलो हो गया है, जो पहले 200 से 230 रुपये किलो होता था।  -मोहनीश डबली, मैनेजर ऑपरेशंस, लॉजीट्रस्ट एक्सप्रेस, प्राइवेट लिमिटेड


Credit By Amar Ujala

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