खबर शहर , UP: बारूद से खेल रहे यहां के लोग…धमाकों की दहशत, न जान जाने का डर; पुलिस प्रशासन ने मूंद रखी हैं आंखें – INA
दिवाली आते ही शहर से लेकर देहात तक आतिशबाजी का कारोबार फलने-फूलने लगता है। इसमें एत्मादपुर के गांव धाैर्रा और नगला खरगा सबसे . रहते हैं। देसी पटाखों के निर्माण के लाइसेंस धारक नियमों का पालन नहीं करते हैं। अप्रशिक्षित पुरुष ही नहीं महिलाएं तक बिना किसी सुरक्षा इंतजाम के पटाखों को तैयार कर रही हैं। इन पर पुलिस प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। यह तब है जब गांव के कई आतिशबाजों के परिवार ने धमाकों में अपनों को खोने का दर्द झेला है।
आगरा के एत्मादपुर का गांव नगला खरगा। हाईवे से 3 किलोमीटर अंदर की दूरी। गांव में खेतों के बीच एक जगह पर टिनशेड पड़ी थी। खेतों की पगडंडी से बाइक निकलने का रास्ता बना था। अमर उजाला टीम ने जैसे ही दस्तक दी, लाइसेंस धारक उदयवीर सिंह आ गए। 3 महिला और 3 पुरुष आतिशबाजी तैयार कर रहे थे।
एक युवती कागज की खोखली रील में देसी बम तैयार करने के लिए बारूद भर रही थी तो एक महिला उन्हें लेई से चिपकाकर सुखाने के लिए रख रही थी। एक और महिला अनार तैयार करने के लिए मिट्टी के सांचे रख रही थीं। बारूद भरने वाली युवती के हाथों में न ग्लब्स थे, न ही चेहरे पर मास्क।
एक तरफ बारूद का ढेर था तो दूसरी तरफ तैयार पटाखे पड़े थे। सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही थी। जिस जगह पटाखे बन रहे थे, वहां कोई अग्निशमन यंत्र नहीं था। नगला खरगा में उदयवीर, विजय पाल और दिनेश कुमार, जबकि धाैर्रा में सोमप्रकाश और नेत्रपाल के नाम आतिशबाजी बनाने का लाइसेंस हैं। इनमें से ओमप्रकाश का लाइसेंस इस साल नवीनीकृत नहीं हुआ। खेतों में ही आतिशबाजी बनाई जाती है। कई लाइसेंस धारकों के पास 600 किलोग्राम तक आतिशबाजी रखने की अनुमति है।
दिवाली पर कुछ रकम मिल जाती थी…
नगला खरगा निवासी सत्यप्रकाश सिंह के घर में 12 अप्रैल 2009 में हादसा हुआ था। उनके बड़े भाई बने सिंह और भाभी गीता देवी की माैत हुई थी। सत्यप्रकाश ने बताया कि बने सिंह के नाम पर लाइसेंस था। हादसे के बाद उन्होंने कभी पटाखे नहीं बनाए। बच्चे भी गांव छोड़ गए। रोजी-रोटी का कोई साधन न होने की वजह से गांव के ज्यादातर पुराने आतिशबाज दिवाली पर पटाखे के काम से जुड़ जाते हैं।
एक धमाके ने ली 5 लोगों की जिंदगियां
सत्यप्रकाश की तरह ही हादसे का दर्द अशोक के परिवार को भी हैं। उनके भाई मुकेश के नाम पर लाइसेंस था। वर्ष 2005 में गोदाम में आतिशबाजी बनाते समय धमाका हो गया था। इस घटना में उनके पिता प्रभुदयाल, भाई भरत सिंह, उसके साले प्रदीप, दो मजदूर विजय और राजू की माैत हो गई थी। इसके बाद परिवार ने फिर कभी इस कारोबार की तरफ मुड़कर नहीं देखा।
शहर से लेकर देहात तक है मांग
उदयवीर ने बताया कि अब आतिशबाजी का कारोबार काफी महंगा है। छत्ता क्षेत्र के बाजार से बारूद मिलता है। इसके बाद आतिशबाजी के निर्माण में भी सावधानी बरतते हैं। दावा किया कि जिस स्थान पर देसी पटाखे बनाते हैं, वहां ड्रम में पानी, अग्निशमन यंत्र रखते हैं। जो लोग इस काम में लगे हैं, उन्हें किसी तरह का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है।
पुश्तैनी वालों को ही अनुमति
मुख्य अग्निशमन अधिकारी देवेंद्र सिंह ने बताया कि नगला खरगा और धाैर्रा के लिए 4 लाइसेंस जारी किए गए हैं। पानी, बालू और अग्निशमन यंत्र जरूरी हैं। जो लोग पुश्तैनी काम करते आ रहे हैं, उनको ही निर्माण की अनुमति दी जाती है। नियमों का पालन नहीं करने पर कार्रवाई की जाएगी।