Crime – पढ़ाकू बच्चे उदयभान करवरिया को पसंद नहीं था पुश्तैनी धंधा, कैसे बना अतीक अहमद का दुश्मन नंबर 1? | Udaybhan Karwaria Bhukkal Maharaj Allahabad former MLA released from jail sentence waived profile Atiq Ahmed- #INA
बाहुबली उदयभान करवरिया और माफिया डॉन अतीक अहमद
प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के करवरिया बंधुओं के लिए अवैध शराब, रेत खनन का धंधा पुश्तैनी था. इस धंधे की शुरुआत इलाहाबाद के कुख्यात माफिया भूक्कल महाराज के पिता जगत नारायण करवरिया ने की थी. इस धंधे में राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए जगत नारायण करवरिया ने राजनीति में भी उतरने की कोशिश की, लेकिन वह ना तो अपने धंधे को बहुत आगे बढ़ा पाया और ना ही राजनीति में ही अपना करियर बना पाया. ऐसे में 70 के दशक में उसने अपने बेटे वशिष्ठ नारायण करवरिया उर्फ भूक्कल महाराज को आगे किया.भूक्कल महाराज अपने पिता की अपेक्षा काफी शातिर था.
अपनी चालाकी से वह धंधे को तो आगे बढ़ाया ही, राजनीति में भी पहचान बनाई. हालांकि वह चुनावी राजनीति में फेल हो गया. भूक्कल महाराज की तरह ही उसके अगली पीढ़ी में उसके बड़े बेटे सूरजभान करवरिया और छोटे बेटे कपिल मुनि करवरिया को पुश्तैनी धंधे में रुचि थी. वह शुरू से भूक्कल महाराज के साथ धंधे में शामिल भी थे. यह अलग बात है कि वह कुछ खास नहीं कर पाए. अब बचा मंझला बेटा उदयभान करवरिया. उसकी तो बचपन से ही मार कुटाई में रुचि नहीं थी. पढ़ने में होशियार था. उसके पिता ने भी उसकी पढ़ाई में बाधा नहीं डाली. इसलिए उदयभान करवरिया ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से पास हो गया.
अच्छी मेरिट की वजह से मिला था इंजीनियरिंग में दाखिला
चूंकि इंटरमीडिएट में उसकी मेरिट अच्छी थी, इसलिए इलाहाबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईईआरटी में उसका आसानी से दाखिला भी हो गया. यहां से उदयभान करवरिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिंग की और अपने बैच में तीसरे स्थान पर रहा था. इस परीक्षा को पास करने के बाद उदयभान करवरिया को दिल्ली की एक प्रतिष्ठित कंपनी से अच्छे पैकेज पर नौकरी का ऑफर भी आया. इसलिए उदयभान करवरिया ने भी हमेशा हमेशा के लिए अपने खानदान में मार कुटाई वाला पुश्तैनी धंधा छोड़ कर दिल्ली आने का फैसला कर लिया था.
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अतीक अहमद ने की थी भूक्कल महाराज की हत्या
घर से निकलने की वह तैयारी कर ही रहा था कि एक दिन उसके पिता भूक्कल महाराज की हत्या की खबर आई. पता चला कि भूक्कल महाराज के चेले अतीक अहमद ने ही उसे गोली मारी है. यह घटना उदयभान करवरिया के जीवन का टर्निंग पॉइंट था. उसने तत्काल फैसला लिया कि अब वह नौकरी नहीं करेगा. बल्कि अतीक को उसके ही तरीके से सबक सिखाएगा. इस प्रकार उदयभान ना केवल पूरे दमखम के साथ अपने पुश्तैनी धंधे में उतरा, बल्कि साल 1996 से राजनीति की भी शुरूआत कर दी. उस समय वह पहली बार कौशाम्बी में जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष चुना गया था.
मुरली मनोहर जोशी का खास था उदयभान
जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहते हुए वह इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद मुरली मनोहर जोशी के संपर्क में आया. चूंकि उसकी संगठन क्षमता काफी अच्छी थी इसलिए वह बीजेपी सांसद का बेहद खास हो गया. उदयभान करवरिया अपने को पाकसाफ दिखाने की भरपूर कोशिश करता. इसके लिए वह सांसद मुरली मनोहर जोशी की छत्रछाया तो ओढ़ ही रखी थी, हमेशा जनता के बीच बना रहता. हालांकि समानांतर तरीके से वह रेत खनन, अवैध शराब और रियल एस्टेट का धंधा भी जारी रखे हुए था . इसी धंधे में प्रतिद्वंदिता बढ़ने पर उसने झूंसी से सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की सिविल लाइंस चौराहे पर सरेआम हत्या की थी.
2012 में हार गया था चुनाव
राजनीति में होने की ही वजह से ही इस तिहरे हत्याकांड में लंबे समय तक किसी पुलिस अफसर ने इसे छेड़ने की कोशिश नहीं की. इसी दौरान वह पहली बार साल 2002 में बीजेपी के ही झंडे तले बारा विधानसभा सीट से चुनाव भी जीत गया. उसने साल 2007 में भी यह सीट जीती, लेकिन साल 2012 में यह सीट आरक्षित (एससी) हो गई तो इलाहाबाद (उत्तर) विधानसभा सीट से पर्चा भर दिया. इस चुनाव में उदयभान को कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह ने शिकस्त दी थी. साल 2013 में जब उदयभान जेल चला गया तो उसने साल 2017 के चुनाव में बीजेपी के ही टिकट पर अपनी पत्नी नीलम करवरिया को मैदान में उतारा. जेल में बैठकर खुद फील्डिंग सजाई और नीलम को विधायक भी बनवा दिया. संयोग से साल 2019 के चुनाव में उदयभान को सजा हो गई. इसका असर साल 2022 के विधानसभा चुनावों पर पड़ा. इसमें उदयभान की लाख कोशिशों के बावजूद उसकी पत्नी नीलम चुनाव हार गई.
भाइयों को दिलाया बसपा से टिकट
साल 2007 का चुनाव जीतने के बाद उदयभान करवरिया ने अपने मूल लक्ष्य अतीक अहमद की ओर फोकस किया. इसके लिए साल 2007 में ही उदयभान ने मायावती से सेटिंग की और अपने बड़े भाई सूरजभान करवरिया को बीएसपी से एमएलसी बनवाया. इसके बाद बीएसपी से ही साल 2009 के चुनाव में उसने अपने छोटे भाई कपिल मुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट दिलाया. उस समय तक अतीक अहमद फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ता था, लेकिन माहौल देखकर उस चुनाव में वह प्रतापगढ़ भाग गया.
पहली बार अतीक को दी राजनीतिक शिकस्त
इस चुनाव में कपिल मुनि करवरिया सपा के उम्मीदवार श्यामाचरण गुप्ता को हराकर चुनाव जीत गए. वहीं इलाहाबाद छोड़ कर पहली बार प्रतापगढ़ पहुंचे अतीक अहमद को राजनीतिक शिकस्त मिली थी. इसके बाद तो इलाहाबाद में उदयभान करवरिया की हनक ऐसी हो गई कि अतीक अहमद को दोबारा कभी और किसी चुनाव में जीत नहीं मिली. यहां तक कि रेत खनन और रियल एस्टेट जैसे अपराध के क्षेत्र में भी जगह जगह टकराव होने लगा. नौबत यहां तक आ गई कि अतीक और उसके गुर्गे उदयभान करवरिया को देख अपना रास्ता बदलने लगे थे.
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