धर्म-कर्म-ज्योतिष – Ratan Tata's Last Rites: रतन टाटा के अंतिम संस्कार, पारसी परंपरा से हटकर एक नई दिशा #INA
Ratan Tata’s Last Rites: भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपति रतन टाटा को आज पूरा देश श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. उनके जीवन के साथ ही उनके निधन के बाद भी उनके अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपराओं पर गहरा ध्यान दिया जा रहा है. रतन टाटा पारसी समुदाय से संबंध रखते हैं. पारसी धर्म में अंतिम संस्कार के लिए एक विशेष और पारंपरिक रीति-रिवाज का पालन किया जाता है जिसे ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ (धख्मा) के नाम से जाना जाता है. लेकिन उनका अंतिम संस्कार भी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इस तरह से किया जाएगा.
टॉवर ऑफ साइलेंस क्या है?
पारसी समुदाय में मृत्यु के बाद शरीर को जलाना या दफनाना नहीं होता है. इसके बजाय उन्हें ‘धख्मा’ यानी टॉवर ऑफ साइलेंस (Tower of Silence) में रखा जाता है. यह एक गोलाकार ढांचा होता है जहां मृत शरीरों को छोड़ दिया जाता है ताकि गिद्ध और अन्य पक्षी उनका उपभोग कर सकें. इस प्रक्रिया का उद्देश्य प्रकृति को बिना किसी प्रदूषण के शरीर लौटाना होता है. पारसी धर्म के अनुसार शरीर को जलाने या दफनाने से धरती, अग्नि, जल और वायु जैसे तत्व दूषित हो सकते हैं इसलिए इसे टॉवर ऑफ साइलेंस में छोड़कर प्रकृति के चक्र का हिस्सा बनने दिया जाता है.
रतन टाटा का अंतिम संस्कार इस रीति-रिवाज से नहीं होगा
हालांकि, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारंपरिक टॉवर ऑफ साइलेंस से नहीं होगा. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. मुंबई और अन्य महानगरों में तेजी से हो रहे शहरीकरण और पर्यावरणीय बदलावों के कारण गिद्धों की संख्या में कमी आई है जिसके चलते पारसी समुदाय की इस परंपरा का पालन करना कठिन हो गया है. इसके साथ ही पारसी समुदाय के कई सदस्य अब आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपना रहे हैं जैसे कि विद्युत शवदाहगृह का उपयोग.
रतन टाटा (Ratan Tata) जो अपने जीवनकाल में पर्यावरण और समाज के प्रति जागरूकता के लिए जाने जाते थे उनके लिए भी यह संभव है कि उनका अंतिम संस्कार (Ratan Tata Last Rites) एक पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सही और आधुनिक विधि से किया जाएगा.
विद्युत शवदाहगृह: एक पर्यावरणीय विकल्प
आजकल पारसी समुदाय के कुछ लोग और अन्य धर्मों के अनुयायी पारंपरिक अंतिम संस्कार (antim sanskar) विधियों के बजाय विद्युत शवदाहगृह का उपयोग करने लगे हैं. यह विधि पर्यावरण के अनुकूल है और इसमें न तो पृथ्वी का अतिक्रमण होता है और न ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. शव को बिजली के माध्यम से जलाने की प्रक्रिया को तेजी से अपनाया जा रहा है. यह माना जा रहा है कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार भी इसी विधि से किया जा सकता है.
रतन टाटा का पर्यावरणीय दृष्टिकोण
रतन टाटा ने अपने पूरे जीवन में उद्योग और समाज के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की. वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद सजग थे और हमेशा प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रयासरत रहे. ऐसे में यह संभव है कि उनके परिवार द्वारा उनका अंतिम संस्कार भी इसी दृष्टिकोण से किया जाएगा जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो और प्रकृति के प्रति उनका सम्मान बना रहे.
रतन टाटा का अंतिम संस्कार उनकी जिंदगी की तरह ही एक महत्वपूर्ण घटना होगी. जबकि पारसी परंपरा के अनुसार ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ का उपयोग होता रहा है, लेकिन बदलते समय और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण रतन टाटा का अंतिम संस्कार (Ratan Tata antim sanskar) विद्युत शवदाहगृह में किया जा सकता है. यह निर्णय न केवल एक व्यक्तिगत और पारिवारिक प्राथमिकता हो सकती है, बल्कि यह पर्यावरण और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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