सेहत – जेन्डर रेनवेट, मानसिक रोग क्या है? तस्वीरें कहलाते हैं ये ट्रांसमैन-ट्रांसवूमन, जानें माता-पिता बन सकते हैं ये लोग?
पूर्व भारतीय क्रिकेटर टीम और भारत के बैटलमैन कोच रहे संजय बांगर के बेटे आर्यन से अनाया बन गई हैं। आर्यन खुद एक क्रिकेटर रह रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर यह बात खुद बताई। 10 महीने पहिले तो वह लड़का था, परन्तु अब वह लड़की बन गया। वे सेक्स कॉम्प्लेक्स ऑपरेशन लॉज हैं। उन्होंने अपने इस 10 महीने के कठिन सफर को साझा किया. एक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि ‘इस फैसले के बाद अब उन्हें हमेशा के लिए क्रिकेट खेलना होगा। ‘लड़का से लड़की बनाना कोई आसान नहीं है।’ री असाइन्मेंट सर्जरी से पहले व्यक्ति को समाज से ही मानसिक और शारीरिक रूप से सेक्स सहना होता है। कुछ लोग इसे मानसिक बीमारी कहते हैं जबकि ऐसा नहीं है। मेडिकल की भाषा में इसे जेंडर डिसफोरिया कहते हैं और यह मानसिक बीमारी नहीं है।
जेंडर डिस्फोरिया को समाज स्वीकार नहीं करता
हम अपने शरीर को लेकर खुश रहते हैं। उसकी ग्रूमिंग करते हैं, सजते संवरते हैं। लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका शरीर और आत्मा दोनों अलग-अलग हैं। उनका जन्म तो एक लड़के के रूप में हुआ लेकिन उनका मन-सोच लड़कियाँ जैसा है। उन्हें लड़कियों की तरह पसंद होता है. हमारी सोसायटी में ऐसे लोगों को मेंटल डिसीज का शिकार समझा जाता है। उन्हें अपशब्द कहा जाता है और उन्हें अपमानित किया जाता है। लेकिन मनोचिकित्सक मुस्कान यादव कहा जा रहा है कि जेंडर डिसफोरिया को कोई मानसिक बीमारी नहीं है। जो लोग ट्रांसमैन या ट्रांसवुमनहुड चाहते हैं, उनसे कुछ सवाल पूछे जाते हैं। यह एक स्कोरिंग सिस्टम होता है जिसमें जांच की जाती है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है तो नहीं।
कई सेशन के बाद होती है डिस्फोरिया की पहचान
जिस व्यक्ति को जेंडर डिसफोरिया होता है, उसके कई सत्रों के बाद पहचान की जाती है। इसमें 6 महीने भी लग सकते हैं और 1 साल भी. यदि किसी व्यक्ति में जेंडर डिस्फोरिया दिखाई देता है, तो उसका जेंडर बदला जा सकता है। जब मनोचिकित्सक से क्लीयरेंस मिलता है तो एंडोक्राइनास्थिन सेक्स रीअसाइन्मेंट सर्जरी से पहले की प्रक्रिया शुरू की जाती है। सर्जरी से पहले ऐसे वैयक्तिक से फैमिली क्लोजर का विवरण दिया जाता है। उनका लिवर, किडनी फंक्शनिंग टेस्ट किया जाता है। ब्लड ग्लूकोज़, ग्लूकोज़ टेस्ट के साथ-साथ क्रोम ग्लूकोज़ का अध्ययन किया जाता है।
अगर समय पर हार्मोन इंजेक्शन ना लें तो शरीर पहले जैसा बन सकता है (छवि-कैनवा)
बचपन में ही हो सकती है इसकी पहचान
जिन लोगों को जेंडर डिसफोरिया होता है, उनकी पहचान 2-3 साल की उम्र में ही हो सकती है लेकिन माता-पिता इन जेंडर डिसफोरिया को नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे बच्चे बचपन से ही अपनी सेक्सुअल आइडेंटिटी को लेकर खुश नहीं रहते। अगर कोई लड़का ऐसा हो तो बचपन में अपनी माँ की मूर्ति, नेल पेंटिंग का अंदाज़ा लगता है, रोज़गार के कपड़े ले जाता है, वहीं लड़कियाँ फ्रॉक की दोस्ती हो जाती है। वह पापा की तरह के चेहरे पर लाई-मुंह बनवा रहे हैं। जब ऐसे बच्चे टीनेज़ में आते हैं तो हार्मोनल बदलावों से परेशान हो जाते हैं। लड़के होने-मुंछ को देखकर परेशान हो जाते हैं और लड़कियां हॉस्टल से घबराने लगती हैं। ऐसे में जब माता-पिता उन्हें डांटते हैं तो उन्हें अकेलेपन या अवसाद का शिकार होना पड़ता है। ऐसे बच्चे स्कूल जाने से भी बचते हैं।
हर महीने का उदाहरण लगता है
जो लोग लड़के से लड़की बनना चाहते हैं, उन्हें एस्ट्रोजन का इंजेक्शन दिया जाता है। वहीं जो लड़की से लड़का बनना चाहते हैं, उनमें टेस्टोस्टेरोन के इंजेक्शन दिए गए हैं। इसमें स्टूडियो स्टूडियो और फास्ट दोनों पोजीशन मौजूद है। यदि किसी को जल्दी बदलाव करना चाहिए तो उन्हें एक सप्ताह या 10 दिन में 1 इंजेक्शन लगता है और धीरे-धीरे बदलाव करते हुए उन्हें महीने में 1 बार इसकी खुराक दी जाती है। इंजेक्शन के बाद फॉलोअप किया जाता है। कुछ लोगों में 3 महीने में तो कुछ में 1 साल में बदलाव दिखाई देते हैं।
ट्रांसवुमन या ट्रांसमैन LGBTQ समुदाय का हिस्सा होता है (छवि-कैनवा)
बेहतर के बाद होते हैं शारीरिक बदलाव
दिल्ली में स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल में प्लास्टिक और प्लास्टिक सर्जन डॉक्टर ललित चौधरी कहते हैं कि जो लोग ट्रांसमैन या ट्रांसवुमन बनते हैं, उनकी पसंद के अनुसार उनके शरीर के बाहरी अंग बदल जाते हैं। जैसे अगर कोई लड़की ट्रांसमैन बन रही है तो उनके अवशेष और यूट्रस को खत्म कर दिया जाएगा। इसी तरह की ट्रांसमैन की सर्जरी और फ़ेशियल सर्जरी होती है। यह सभी मल्टीपल सर्जरी होती हैं और अंत में जेनिटल सर्जरी में बदलाव होता है लेकिन यह बहुत ही कठिन सर्जरी है और अधिकांश ट्रांसमैन और ट्रांसवुमन इसे नहीं करवाते। इन सभी सर्जरी में 1 से 2 साल लग सकते हैं।
हार्मोन्स के इंजेक्शन जिंदगी भर की फिल्में हैं
सेक्स रीअसाइन सर्जरी के बाद भले ही लड़का या लड़की बॉडी मिल जाए लेकिन यह खरीदारी नहीं होती। इसलिए शरीर में कृत्रिम तरीकों से हार्मोन्स को शामिल करना शामिल है। जो लोग इस सर्जरी से मिलते हैं तो हर 3 महीने में 1 हार्मोन इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। ऐसा जीवन भर देखने को मिलता है ताकि उनका शरीर उनकी मनमुताबिक तस्वीरें देख सके। ऐसे लोग कभी भी माता-पिता नहीं बन सकते। इसके अलावा इन लोगों की मूर्तियां भी चलती रहती हैं लेकिन भले ही ऐसे लोग ट्रांसवुमन या ट्रांसमैन बन जाते हैं, अक्सर सोसायटी उन्हें सपोर्ट नहीं करती है।
पहले प्रकाशित : 12 नवंबर, 2024, 17:46 IST
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