दुनियां – ईरान और भारत के रिश्तों का दिया जाता है उदाहरण फिर क्यों सुप्रीम लीडर ने ‘लाइन क्रॉस’ की? – #INA
आजादी के बाद से ही भारत और ईरान के रिश्ते हमेशा से मजबूत रहे हैं. देश आजाद होने के बाद भारत और ईरान ने 15 मार्च 1950 को एक मैत्री संधि पर साइन किए थे. 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की छवि कट्टर इस्लामिक देश की बनने लगी. ईरानी हुकूमत ने खुद को दुनियाभर के मुसलमानों का अगुवा साबित करने की कोशिश की. यही वजह रही कि इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ने कश्मीर का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया. कश्मीर को लेकर ईरान के रुख ने थोड़ा तनाव पैदा किया लेकिन दोनों देशों ने इस मुद्दे से अपने संबंधों को प्रभावित नहीं होने दिया.
पीएम मोदी के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच चाबहार पोर्ट जैसा अहम समझौता हुआ जो पाकिस्तान और चीन को चिढ़ाने वाला था. बीते वर्षों में ईरान पर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने कई प्रतिबंध लगाए बावजूद इसके भारत हमेशा ईरान के साथ खड़ा रहा है. बावजूद इसके ईरानी सुप्रीम लीडर बार-बार भारत के मुसलमानों को लेकर विवादित टिप्पणी करते रहे हैं. ताजा बयान में उन्होंने भारत के मुसलमानों की तुलना गाजा और म्यांमार के मुसलमानों से की है. यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम लीडर ने भारत के मुसलमानों को लेकर ऐसा बयान दिया हो इससे पहले भी वह विवादित टिप्पणी कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि इतने मजबूत संबंधों के बावजूद ईरान ‘लाइन क्रॉस’ करता रहा है?
पहले दोनों देशों के रिश्तों के समझिए
भारत और ईरान के रिश्ते दशकों पुराने हैं, दोनों देशों के बीच की घनिष्ठता इस बात से समझी जा सकती है कि 15 मार्च 1950 को ही भारत और ईरान ने एक मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किए थे. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सितंबर 1959 में ईरान का द्विपक्षीय दौरा किया था. इससे पहले फरवरी 1956 में ईरान के शाह मोहम्मद रेजा पहलवी भारत दौरे पर आए थे.
बदलते वक्त के साथ दोनों देशों के बीच संबंध गहरे और मजबूत होते गए. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी ने भी ईरान का द्विपक्षीय दौरा किया. UPA सरकार में पीएम डॉ. मनमोहन सिंह 16वें NAM समिट में हिस्सा लेने ईरान पहुंचे थे.
वहीं ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसंजानी, महमूद अहमदीनेजाद और डॉ. हसन रूहानी भी भारत का द्विपक्षीय दौरा कर चुके हैं. साल 2003 में ईरान के राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि रहे. वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने पहले कार्यकाल में ही ईरान का द्विपक्षीय दौरा किया. दोनों देशों के इन लीडर्स की यात्राएं दिखाती हैं कि भारत और ईरान के बीच हमेशा से मजबूत और अच्छे संबंध रहे हैं.
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मोदी युग में भारत-ईरान के मजबूत संबंध
ईरान एक शिया बहुल मुल्क है और ईरान के बाद दुनिया की सबसे बड़ी शिया आबादी भारत में रहती है. पीएम मोदी के कार्यकाल की सबसे बड़ी बात यह है कि ईरान के साथ भारत के रिश्ते विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छे रहे हैं. ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते भले ही भारत ने ईरान से तेल निर्यात रोक दिया हो लेकिन इससे पहले तक ईरान भारत को तेल निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश था.
अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के बावजूद भारत ने ईरान के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश की और काफी हद तक इसमें कामयाब भी रहा. ईरान और भारत एक-दूसरे के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं. बीते कुछ सालों में भारत, ईरान के 5 बड़े ट्रेड पार्टनर्स में शामिल रहा है. भारत से चावल, चायपत्ती, शक्कर, दवाइयां, इलेक्ट्रिक मशीनरी समेत कई वस्तुएं ईरान को निर्यात की जाती हैं. वहीं ईरान से ड्राई फ्रूट्स, केमिकल्स और ग्लासवेयर आयात किया जाता है.
साल 2016 के मई महीने में जब पीएम मोदी ने ईरान का दौरा किया था, तो यह 15 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का द्विपक्षीय दौरा था. इस दौरान दोनों देशों के बीच 12 MoU साइन किए गए. वहीं फरवरी 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रूहानी ने भारत का दौरा किया था, रूहानी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 13 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.
हालांकि भारत और ईरान के बीच सबसे बड़ी डील इसी साल मई में हुई, जब भारत और ईरान ने चाबहार पोर्ट के संचालन से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे पाकिस्तान और चीन के लिए बड़ा झटका माना गया. दरअसल चीन और पाकिस्तान मिलकर ग्वादर पोर्ट का निर्माण कर रहे हैं, चाबहार पोर्ट जो भारत, ईरान और अफगानिस्तान को जोड़ता है उसे इस ग्वादर पोर्ट के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है.
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सुप्रीम लीडर खामेनेई का विवादत पोस्ट
ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई ने भारत के मुसलमानों को लेकर विवादित पोस्ट किया है. खामेनेई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक के बाद एक दो पोस्ट इस्लामिक उम्माह (दुनियाभर के मुसलमानों) के नाम किए और गाजा-म्यांमार के मुसलमानों के साथ-साथ भारत के मुसलमानों को भी पीड़ित बता दिया.
खामेनेई ने 16 सितंबर को किए पोस्ट में लिखा है कि, ‘इस्लामिक उम्माह’ की अवधारणा को कभी नहीं भूलना चाहिए. ‘इस्लामिक उम्माह’ की पहचान की रक्षा करना जरूरी है. यह एक बुनियादी मुद्दा है जो राष्ट्रीयता से परे है और भौगोलिक सीमाएं ‘इस्लामिक उम्माह’ की वास्तविकता और पहचान को नहीं बदल सकती.
The concept of an “Islamic Ummah” must never be forgotten. Protecting the identity of the “Islamic Ummah” is essential. It is a fundamental issue that transcends nationality, and geographical borders dont change the reality & identity of the Islamic Ummah.
— Khamenei.ir (@khamenei_ir) September 16, 2024
उन्होंने इसके बाद एक और पोस्ट किया और लिखा, ‘इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा हमें इस्लामिक उम्माह के रूप में हमारी साझा पहचान के संबंध में उदासीन बनाने की कोशिश की है. हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते अगर हम #म्यांमार, #गाजा, #भारत या किसी अन्य स्थान के मुसलमानों के दर्द से अनजान हैं.
The enemies of Islam have always tried to make us indifferent with regard to our shared identity as an Islamic Ummah. We cannot consider ourselves to be Muslims if we are oblivious to the suffering that a Muslim is enduring in #Myanmar, #Gaza, #India, or any other place.
— Khamenei.ir (@khamenei_ir) September 16, 2024
पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं खामेनेई
ईरानी सुप्रीम लीडर इससे पहले भी कई बार विवादित टिप्पणी कर चुके हैं. उन्होंने साल 2019 में भी कश्मीर को लेकर विवादित पोस्ट कर लिखा था कि, ‘हम कश्मीर के मुसलमानों की स्थिति से वो चिंतित हैं.’ इसके बाद मार्च 2020 में दिल्ली दंगों के बाद भी उन्होंने भारत पर सवाल उठाए. खामेनेई ने दिल्ली दंगों को मुसलमानों का नरसंहार बताया था और लिखा था कि अगर भारत सरकार ने इस नरसंहार को बंद नहीं कराया तो दुनियाभर के इस्लामी मुल्क भारत का साथ छोड़ देंगे.
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भारत सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया
खामेनेई के विवादित पोस्ट को लेकर भारत सरकार की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए खामेनेई के बयान की निंदा की है. भारत ने इसे भ्रामक बताते हुए ईरान को अपने गिरेबां में झांकने की सलाह दी है कि उसे दूसरों पर टिप्पणी करने से पहले अपने रिकॉर्ड देखना चाहिए.
खामेनेई ने क्यों क्रॉस की लाइन?
ईरान इस वक्त कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध झेल रहा है, इसके चलते इसकी आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है. अर्थव्यवस्था को उबारना ईरान के लिए एक बड़ी चुनौती है. इस बीच ईरान दुनियाभर के मुसलमानों का मसीहा बनने का भी ख्वाब देखता है. गाजा युद्ध के बाद भले ही ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा हो लेकिन इस्लामिक वर्ल्ड में उनकी छवि सुधरी है. जिस शिया बहुल ईरान को सुन्नी मुल्कों के प्रभुत्व वाले अरब वर्ल्ड में साइडलाइन रखा जाता था, वहां भी अब ईरान की पूछ होने लगी है. साथ ही दुनियाभर के मुसलमानों में ईरान के प्रति एक पॉजिटिव परसेप्शन भी देखा गया है. यही वजह मानी जा रही है कि खामेनेई हर उस मुल्क के मुसलमानों का मुद्दा उठा रहे हैं जहां उन्हें उत्पीड़न नजर आ रहा है. खामेनेई का भारत को लेकर दिया गया ताजा बयान भी ईरान की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा मालूम पड़ता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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