दुनियां – इजराइल के खिलाफ क्या भारत की मदद चाहता है ईरान? अरब देशों को छोड़ एशिया पर कर रहा फोकस – #INA
इजराइल के खिलाफ बढ़ते तनाव के बीच ईरान के राष्ट्रपति एशियाई देशों की मदद चाहते हैं. पेजेश्कियान ने थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न शिनावात्रा से मुलाकात के दौरान इजराइल के खिलाफ एशियाई देशों के एकजुट होने की अपील की है. दरअसल इजराइल पर ईरान के जवाबी हमले के बाद क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया है, माना जा रहा है कि ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम इजराइल के निशाने पर है. ऐसे में यह तनाव मिडिल ईस्ट में एक और भीषण संघर्ष को जन्म दे सकता है.
लिहाजा गुरुवार को थाईलैंड की प्रधानमंत्री शिनावात्रा से मुलाकात में ईरान के राष्ट्रपति ने एशियाई देशों से सहयोग की अपील की है, पेजेश्कियान ने कहा है कि एशियाई देशों को क्षेत्र में विदेशी हस्तक्षेप और इजराइली अत्याचारों को रोकने के लिए एशिया सहयोग वार्ता जैसे क्षेत्रीय संगठनों का लाभ उठाना चाहिए. पेजेश्कियान ने कहा कि इजराइल आत्मरक्षा के बहाने महिलाओं और बच्चों को मार रहा है और अस्पतालों, स्कूलों और नागरिक ठिकानों पर बमबारी कर रहा है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी के बीच ऐसी घटनाएं शर्मनाक हैं.
ईरान के साथ नहीं अरब देश!
पेजेश्कियान अच्छी तरह जानते हैं कि अरब देशों की नजदीकी अमेरिका और इजराइल के साथ है, वहीं क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई और शिया-सुन्नी विवाद के चलते भी ज्यादातर अरब मुल्क ईरान का साथ नहीं देंगे. गाजा में एक साल से जारी जंग के बीच ईरान कई बार अरब देशों समेत तमाम इस्लामिक मुल्कों से इजराइल से व्यापार खत्म करने की अपील करता रहा है लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ. जबकि गाजा में एक साल की जंग में करीब 41 हजार लोग मारे जा चुके हैं.
दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी समेत कई पश्चिमी देश इजराइल के साथ मजबूती से खड़े हैं, लिहाजा पेजेश्कियान इस संघर्ष में मजबूत और भरोसेमंद साथ के लिए एशिया के बड़े प्लेयर्स की ओर रुख कर रहे हैं. रूस और चीन पहले से ईरान के साथ हैं ऐसे में अगर ईरान को भारत का साथ मिल जाए तो वह इस तनाव को बढ़ने से रोकने में कामयाब हो सकता है.
ईरान को भारत से बड़ी उम्मीद?
बड़ी बात ये है कि भारत की साख न केवल एशिया बल्कि पश्चिमी देशों के बीच भी मजबूत है. रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए भारत की भूमिका कितनी अहम हो सकती है ये बात अमेरिका जानता है, ऐसे में अगर भारत मिडिल-ईस्ट में बढ़ते तनाव को रोकने में आगे आता है तो मुमकिन होगा अमेरिका समेत पश्चिमी देश उसका साथ दें.
इसके अलावा ईरान और इजराइल दोनों के साथ भारत के मजबूत संबंध हैं, भारत इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में भी ‘टू नेशन समाधान’ यानी इजराइल के अस्तित्व के साथ-साथ आजाद फिलिस्तीन का समर्थन करता है. भारत ग्लोबल साउथ की मजबूत आवाज और एशिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है, ऐसे में इस टकराव को कम करने में भारत की भूमिका काफी अहम साबित हो सकती है. यही वजह है कि ईरान के राष्ट्रपति एशियाई देशों से साथ आने की अपील कर रहे हैं.
टकराव बढ़ा तो ईरान के लिए बड़ा खतरा?
ईरानी राष्ट्रपति पेजेश्कियान उदारवादी विचारधारा वाले माने जाते हैं और शुरुआत में वह इजराइल के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ थे. इसे लेकर उनके और सुप्रीम लीडर खामेनेई के बीच तनातनी की खबरें भी सामने आईं थीं, लेकिन इजराइल ने हमास चीफ हानिया के बाद हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह को भी खत्म कर दिया. ईरान में विरोध और बढ़ते दबाव के चलते पेजेश्कियान को जवाबी कार्रवाई का फैसला करना पड़ा. लेकिन अब वह जानते हैं कि अगर ये टकराव बढ़ता है तो इसका नतीजा क्या हो सकता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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