Political – Haryana Assembly Election: हरियाणा में 5 साल पहले किंगमेकर बनी JJP, दुष्यंत चौटाला के 5 कदमों से कैसे बिखर गई, वजूद बचाए रखने की चुनौती- #INA

JJP नेता दुष्यंत चौटाला.

हरियाणा की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले चौधरी देवीलाल की बुधवार को 111वीं जयंती है. उनकी सियासी विरासत चौटाला परिवार में पांच साल पहले मचे सियासी घमासान में इनेलो दो धड़ों में बंट गई. सियासी महत्वाकांक्षा में इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन किया था. दुष्यंत चौटाला जेजेपी का चेहरा बनकर उभरे और दस सीटें जीतकर किंगमेकर बने और बीजेपी को समर्थन देकर डिप्टी सीएम की कुर्सी भी अपने नाम कर ली. मगर, पांच साल बाद जेजेपी को सियासी वजूद बचाए रखने की चुनौती है?

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में दस सीटें जीतकर उपमुख्यमंत्री बनने वाले दुष्यंत चौटाला की जेजेपी 2024 के विधानसभा चुनाव तक आते-आते आकर बिखर सी गई है. दुष्यंत के सात विधायक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेजेपी का साथ छोड़कर बीजेपी और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. ऐसे में जेजेपी ने दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है. जेजेपी राज्य की 69 और आजाद समाज पार्टी 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. दुष्यंत ने पांच साल पहले किंगमेकर बने लेकिन पांच गलतियों की वजह से पार्टी को सियासी हशिए पर पहुंचा दिया है.

बीजेपी से दोस्ती जेजेपी को महंगी पड़ी?

हरियाणा में जेजेपी को 2019 में जो जनादेश मिला था, वो बीजेपी के खिलाफ था. दुष्यंत पूरा चुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़े थे और इनेलो के विकल्प के रूप में लोगों ने जेजेपी को 10 सीटें जिताई और 14.8 प्रतिशत वोट मिले थे. चुनाव के बाद जेजेपी ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और दुष्यंत उपमुख्यमंत्री बन गए थे. बीजेपी के साथ जाने के चलते जेजेपी को भी अब सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. जेजेपी का सियासी आधार जाट समुदाय के बीच है, जो फिलहाल कांग्रेस के साथ खड़ा नजर आ रहा है. यही नहीं इनेलो का साथ छोड़कर जेजेपी में गए कई नेताओं ने वापसी कर ली है. लोकसभा चुनाव में इनेलो की स्थिति पहले से मजबूत हुई है. यही वजह है कि जेजेपी के लिए 2024 का विधानसभा चुनाव काफी मुश्किलों भरा हो गया है. दुष्यंत चौटाला को अपने ही क्षेत्र में कई जगह विरोध का सामना करना पड़ा है.

किसान आंदोलन ने बिगाड़ा जेजेपी का गेम

चौधरी देवीलाल का सबसे बड़ा वोटबैंक किसान रहा है. तीन कृषि कानूनों के लेकर मोदी सरकार से किसान नाराज होकर सड़क पर उतर गए थे. पंजाब से लेकर हरियाणा तक किसानों ने एक साल से ज्यादा दिल्ली की सीमा पर धरना दिया था. ऐसे में किसानों की नाराजगी बीजेपी के साथ दुष्यंत चौटाला से रही है. किसान इस बात से गुस्सा हैं कि बीजेपी से गठबंधन में रहते हुए दुष्यंत एक बार भी उनकी आवाज सुनने नहीं आए और न समर्थन दिया. किसान आंदोलन के समय दुष्यंत के बीजेपी के साथ खड़े रहने से किसानों में जजपा के प्रति नाराजगी है. बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद दुष्यंत ने भी माना है कि किसान आंदोलन के समय बीजेपी के सुर में सुर मिलाकर उन्होंने बड़ी गलती की थी. यही गलती जेजेपी के लिए अब चुनाव में महंगी पड़ रही है.

पहलवानों के आंदोलन पर दुष्यंत की चुप्पी

बीजेपी के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ देश की महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाकर धरना प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में ज्यादातर हरियाणा के पहलवान शामिल थे, जिसमें महिला पहलवान भी थीं. साक्षी मलिक और विनेश फोगाट जैसी पहलवान भी सड़क पर उतरी थीं और उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा था. महिला पहलवानों के समर्थन में हरियाणा के लोग उतर गए थे और खाप पंचायतें भी हो रही थीं. इसके बावजूद दुष्यंत चौटाला ने चुप्पी साध रखी थी जबकि कांग्रेस नेता खुलकर उनके समर्थन में खड़े थे. यही वजह है कि हरियाणा के चुनाव में दुष्यंत चौटाला के लिए सियासी मुश्किलें बढ़ गई हैं.

जाट समुदाय का जेजेपी से मोहभंग

हरियाणा में करीब 25 से 27 फीसदी जाट समुदाय के वोटर हैं, जो राज्य की सत्ता की किस्मत का फैसला करते हैं. जाट समाज का सियासी दबदबा रहा है. जाट वोटों के सहारे ही दुष्यंत 2019 में किंगमेकर बनकर उभरे थे. जाट समुदाय से 20 साल से 40 साल के युवाओं के बीच जेजेपी ने मजबूत पकड़ बनाई थी, लेकिन किसान आंदोलन से लेकर महिला पहलवानों का धरना प्रदर्शन और जाट समुदाय के आरक्षण की मांग ने दुष्यंत से निराश कर दिया है. लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय का 80 फीसदी से ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला है. जेजेपी का साथ छोड़कर कुछ नेता इनेलो में वापस लौट गए हैं. इसके चलते ही जेजेपी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

दुष्यंत को अपनों से लड़ना पड़ रहा है

जेजेपी के टिकट पर विधायक बनने वाले ज्यादातर नेता कांग्रेस और बीजेपी से चुनाव लड़ रहे हैं. जेजेपी के बागी विधायकों में से कांग्रेस ने सिर्फ रामकरण काला को शाहाबाद से प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा तीन बागी विधायक रामकुमार गौतम सफीदों, देवेंद्र बबली टोहाना व अनूप धानक को उकलाना सीट से बीजेपी ने उतारा है. बरवाला विधायक जोगीराम सिहाग, नरवाना विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा और गुहला विधायक ईश्वर सिंह जेजेपी छोड़ चुके हैं. इसके अलावा झज्जर जिलाध्यक्ष रहे संजय कबलाना भी बेरी से भाजपा प्रत्याशी हैं. इस तरह से जेजेपी के अपने ही नेता साथ छोड़ गए हैं.

दुष्यंत चौटाला फिर उचाना कलां सीट से मैदान में उतरे हैं. उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह से है. बृजेंद्र कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के पुत्र हैं. उचाना सीट पर कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह, बीजेपी से देवेंद्र अन्नी और बसपा से सुबे सिंह लोहाना है, जिन्हें इनेलो का समर्थन प्राप्त है. इस बार दुष्यंत चौटाली की स्थिति उचाना में 2019 जैसी नहीं है. इसी तरह दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय को इस बार डबवाली सीट पर अपनों से ही मुकाबला करना पड़ रहा है. उनके सामने इनेलो से आदित्य चौटाला और कांग्रेस से अमित सिहाग ने ताल ठोक रखी है. ये दोनों दिग्विजय के चाचा लगते हैं. ऐसे में दुष्यंत और दिग्विजय दोनों ही भाइयों की सीट फंस गई है.

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