Political – हरियाणा के रण में आज क्यों उतर रहीं मायावती, देवीलाल की विरासत पर चौटाला को दिला पाएंगी जीत?- #INA

बसपा प्रमुख मायावती और ओम प्रकाश चौटाला

लोकसभा चुनाव में सब कुछ गंवा चुकी बसपा के लिए हरियाणा का विधानसभा चुनाव अपने सियासी वजूद को बचाए रखने का है. बसपा के लिए ही नहीं हरियाणा की सियासत की कभी बेताज बादशाह रही इनेलो के लिए भी यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. ऐसे में बसपा और इनेलो मिलकर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है और अब बसपा प्रमुख मायावती बुधवार को चौधरी देवीलाल की जयंती से चुनावी प्रचार के लिए उतर रही हैं.

मायावती बुधवार को जींद जिले के उचाना में जनसभा को संबोधित करेंगी. उचाना में मायावती के साथ पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और अभय चौटाला भी मंच साझा करेंगे. मायावती की रैली के बहाने बसपा-इनेलो अपना शक्ति प्रदर्शन करेंगे. मायावती हरियाणा के चुनावी रण में उतरने के लिए चौधरी देवीलाल की जयंती का दिन चुना है. उचाना चौटाला परिवार का पुराना सियासी गढ़ रहा है. इनेलो ने उचाना में मायावती की रैली एक खास रणनीति के तहत रखी है.

जननायक जनता पार्टी का गठन

चौटाला परिवार में सियासी टकराव के चलते पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाले के बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ इनेलो से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया था. इसके बाद दुष्यंत चौटाला ने उचाना सीट को अपने कर्मभूमि बनाई और 2019 में जीतकर विधायक बने. एक बार फिर से दुष्यंत चौटाला उचाना सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. उचाना कलां सीट पर इनेलो-बसपा के उम्मीदवार के तौर पर सूबे सिंह लोहान किस्मत आजमा रहे हैं.

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एक तीर से कई निशाने

उचाना विधानसभा क्षेत्र से इनेलो नेता अभय चौटाला ने मायावती की रैली कराकर एक तीर से कई शिकार करने का दांव चला है. एक तरफ तो दुष्यंत चौटाला को मात देकर हिसाबर बराबर करने स्टैटेजी है तो दूसरे तरफ हरियाणा के दलित वोटों को साधने का दांव है. इसके लिए चौधरी देवीलाल की 111वीं जयंती का दिन चुना है. इस तरह ताऊ देवीलाल की सियासी विरासत को इनेलो को नाम करने की है, क्योंकि पिछले चुनाव में जेजेपी उसे अपने नाम करने में कामयाब रही थी. इसके चलते इनेलो सिर्फ एक ही सीट पर सिमट गई थी.

मायावती की उचाना में रैली

दुष्यंत चौटाला इस बार उचाना सीट पर काफी मुश्किलों में फंसे हुए है. उचाना सीट पर कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह, बीजेपी से देवेंद्र अन्नी और बसपा से सुबे सिंह लोहाना है, जिन्हें इनेलो का समर्थन प्राप्त है. इस बार दुष्यंत चौटाला की स्थिति उचाना में 2019 जैसी नहीं है. जेजेपी का साथ काफी लोग छोड़ चुके हैं और दुष्यंत चौटाला को कई गांवों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में ओम प्रकाश चौटाला ने मायावती की उचाना में रैली कराकर दुष्यंत चौटाला की सियासी राह को ओर भी मुश्किल बना देने का प्लान है.

कुमारी सैलजा को बसपा का ऑफर

मायावती हरियाणा के रण में ऐसे समय उतरी हैं, जब दलित वोटों को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. इनेलो ने बसपा के साथ दलित वोटों के लिए ही गठबंधन किया है. कुमारी सैलजा के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखने के मुद्दे को बसपा ने काफी अच्छे तरीके से उठाया है. आकाश आनंद ने सैलजा को बसपा में आने का खुला ऑफर दे चुके हैं तो मायावती ने भी उन्हें बाबा साहेब अंबेडकर के नक्शेकदम पर चलते हुए कांग्रेस छोड़ देने की नसीहत दी थी.

मायावती यहां भी करेंगी चुनाव प्रचार

बसपा प्रमुख दलितों को साधने में कोई भी दल कसर नहीं छोड़ रही है. मायावती हरियाणा में उचाना से चुनावी अभियान शुरू करके दलितों को सियासी संदेश देती नजर आएंगी. दलित मतदाताओं को लामबंद करने के लिए मायावती उचाना के बाद 27 सितंबर को फरीदाबाद की पृथला सीट पर और 30 सितंबर को करनाल की असंध और यमुनागर की छछरौली में चुनाव प्रचार करेंगी.

चुनाव में दलितों की भूमिका

हरियाणा में दलित समुदाय के मतदाता 21 फीसदी हैं. दलितों के लिए 17 विधानसभा सीटें सुरक्षित हैं लेकिन सियासी प्रभाव करीब 30 से 35 सीटों पर है. ऐसे में दलित वोटर काफी अहम और निर्णायक भूमिका हैं, लेकिन कोई भी दलित हरियाणा का सीएम नहीं बना सका. बसपा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में भले ही हरियाणा में एक सीट नहीं जीत पाई हो, लेकिन उसे 4.21 फीसदी वोट मिला था.

बसपा-इनेलो का वोट आधार

बसपा का सूबे में साढ़े चार से पांच फीसदी के करीब वोट शेयर 1989 से है. इनेलो को पिछले चुनाव में 2.44 फीसदी वोट मिला था लेकिन उससे पहले 24 फीसदी वोट था. कांग्रेस 2024 में दलित और जाट वोटों के दम पर ही 5 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही है. इसी दांव से कांग्रेस विधानसभा चुनाव की जंग फतह करना चाहती है, लेकिन सैलजा की नाराजगी बड़ा मुद्दा बन गया है. बसपा और इनेलो के सियासी आधार जाट-दलित है. बसपा-इनेलो की कोशिश जाट और दलित वोटों को ही जोड़ने की है.

बसपा का दांव करेगा काम?

हरियाणा की सियासत में बसपा ने 1998 के लोकसभा चुनाव में इनेलो के साथ गठबंधन किया और तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और एक सीट जीतने में कामयाब रही. इनेलो-बसपा ने फिर से हाथ मिलाया है. ऐसे में बसपा की नजर दलित बहुल सीटों पर है, जहां जीत हार का अंतर सिर्फ ढाई हजार था. ऐसे में देखना है कि बसपा को हरियाणा के चुनाव रण में उतारने का दांव इनेलो के लिए कितना कारगर होता है?

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