Political – महाराष्ट्र में बीजेपी क्यों नहीं बन पा रही आत्मनिर्भर, 40 साल से कोई भी दल अकेले नहीं दिखा सका सियासी दम- #INA
पीएम मोदी, अमित शाह, देवेंद्र फडवीस
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस का एक बयान चर्चा के केंद्र में है. फडणवीस ने कहा कि हमें जमीनी हकीकत को लेकर व्यावहारिक होना पड़ेगा. बीजेपी अकेले दम पर महाराष्ट्र चुनाव नहीं जीत सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी जरूर होगी. उन्होंने विश्वास जताया कि बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी और आरपीआई मिलकर सरकार बनाएंगी.
महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटें है, जिसके लिहाज से बहुमत के लिए 145 विधायकों का समर्थन चाहिए. 1985 में आखिरी बार बहुमत का आंकड़ा कांग्रेस को मिला था, उसके बाद से करीब 40 साल हो रहे हैं, राज्य में किसी भी एक दल को 145 विधानसभा सीटों पर जीत नहीं मिली. इस तरह चार दशक महाराष्ट्र की राजनीति गठबंधन के सहारे चल रही है. बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल अपने दम पर सियासी आत्मनिर्भर नहीं है बल्कि छत्रपों से गठबंधन या फिर समर्थन से सरकार बनाई है. कांग्रेस से शिवसेना और बीजेपी तक ने सरकार बनाई तो बैसाखी के सहारे. इस जमीनी हकीकत को फडणवीस बखूबी समझ रहे हैं.
BJP-शिवसेना का गठबंधन
बीजेपी ने उस जमाने में शिवसेना के साथ गठबंधन बनाया था, जब दोनों ही पार्टियों की न सिर्फ राष्ट्रीय फलक पर बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी कोई खास हैसियत नहीं थी. उस समय शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ही गैर-कांग्रेसवाद का चेहरा थे. वे हिंदुत्व और मराठी मानुष दोनों को एक साथ लेकर राजनीति कर रहे थे. उस जमाने की बीजेपी ने ठाकरे की बनाई जमीन पर ही अपनी राजनीति शुरू की और शिवसेना की सहयोगी के तौर पर महाराष्ट्र में पांव जमाए, लेकिन आत्मनिर्भर नहीं बन सकी.
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2014 में मिली सबसे ज्यादा सीटें
महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2014 में रहा था, जब वह अकेले चुनाव लड़ी थी और 122 सीटें जीती थी. बीजेपी ने पहला चुनाव 1980 में महाराष्ट्र विधानसभा का लड़ा था. इस चुनाव में बीजेपी ने 145 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 14 ही जीत सकी थी. इसके बाद से बीजेपी महाराष्ट्र के हर चुनाव में किस्मत आजमाती रही, लेकिन बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी है. शिवसेना और एनसीपी के रूप में दो क्षेत्रीय दल भी उभरे, जिनमें शिवसेना ने बीजेपी से दोस्ती बनाए रखी तो एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही.
छोटे भाई की भूमिका में बीजेपी
बीजेपी ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 122 सीटें 2014 के चुनाव में जीती थी और वो पहली बार सूबे में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन अपने दम पर राज्य में सरकार नहीं बना सकी. बीजेपी को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी. इससे पहले तक बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है. शिवसेना बड़े भाई तो बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में थी.
गठबंधन की राजनीति का दौर
80 के दशक में जब कोई भी पार्टी बीजेपी से हाथ मिलाने में कतराती थी. देश में गठबंधन की राजनीति का दौर भी शुरू नहीं हुआ था, तब शिवसेना वह पार्टी थी, जिसने बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन किया था. 1989 में बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन पर फाइनल मुहर लगी थी. इसमें प्रमोद महाजन का बड़ा योगदान था. करीब 3 दशक तक बीजेपी-शिवसेना मिलकर महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ती रही है. शिवसेना को बड़े भाई की भूमिका मिली और मुख्यमंत्री का पद भी उसी पार्टी का बना. शिवसेना महाराष्ट्र में बीजेपी को छोटा भाई या पिछलग्गू ही समझती रही.
2014 के बाद बदली सियासी तस्वीर
महाराष्ट्र के 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना 288 में से 183 सीटों पर लड़ी. छोटे सहयोगियों को शिवसेना ने अपने कोटे से सीट दी थीं. 1995 के चुनाव में यही फॉर्मूला कायम रहा था, जब बीजेपी-शिवसेना सत्ता में आए थे. इस फॉमूर्ले में थोड़ा बदलाव 1999 और 2004 के चुनाव में किया गया था. शिवसेना 171 और बीजेपी 117 सीटों पर चुनाव लड़ी. इस नंबर में एक मामूली बदलाव 2009 के विधानसभा चुनाव में हुआ, जिसके बाद शिवसेना 169 और बीजेपी 119 सीट पर लड़ी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद सियासी तस्वीर बदल गई.
राजनीति में नरेंद्र मोदी युग शुरू
बीजेपी की राजनीति में नरेंद्र मोदी युग शुरू होने के बाद स्थितियां बदलने लगीं. नरेंद्र मोदी एक ऐसी राष्ट्रीय ताकत के तौर पर उभरे, जिन्होंने न सिर्फ बीजेपी विरोधी दलों की जमीन अपने नाम की, बल्कि बीजेपी के सहयोगियों की जमीन को भी सिकोड़ दिया. सियासी प्रवाह कुछ ऐसा हुआ कि बीजेपी महाराष्ट्र की राजनीति में आत्मनिर्भर बनने की कवायद में शिवसेना से अलग हुई.
जब पड़ी दलों की दोस्ती में दरार
2014 में अलग-अलग दोनों पार्टियां चुनाव लड़ी, लेकिन बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई. इसके बाद बीजेपी इस बात को समझ गई कि वो चाहकर भी महाराष्ट्र की राजनीति में आत्मनिर्भर नहीं बन सकती. बीजेपी ने 2014 में फिर से शिवसेना के साथ हाथ मिला लिया और 2019 का चुनाव साथ लड़े, बहुमत भी मिला, लेकिन मुख्यमंत्री पद की लड़ाई ने दोनों ही दलों की दोस्ती में दरार डाल दिया.
एनसीपी दो टुकड़ों में बंट गई
शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. उद्धव ठाकरे सीएम बने. लेकिन ढाई साल के बाद शिवसेना दो धड़ों में बंट गई और उसके बाद एनसीपी के दो टुकड़े हो गए. उद्धव ठाकरे का तख्तापलट करने वाले एकनाथ शिंदे की शिवसेना और शरद पवार से एनसीपी छीनकर अपने हाथ में लेने वाले अजीत पवार के साथ बीजेपी ने गठबंधन कर रखा है तो कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी है. ऐसे में किसी एक दल के लिए बहुमत का नंबर जुटाना आसान नहीं है.
अकेले दम पर बहुमत नहीं मिली
महाराष्ट्र की सियासत अलग-अलग छह क्षेत्रों में बटी हुई है, जहां के सियासी समीकरण भी अलग-अलग तरीके से हैं. विदर्भ में 62 सीटें, मराठवाड़ा में 46 सीटें, पश्चिमी महाराष्ट्र में 70 सीटें, मुंबई क्षेत्र में 36 सीटें ठाणे-कोंकण में 39 सीटें और उत्तरी महाराष्ट्र में 35 सीटें. प्रदेश में किसी कोई एक पार्टी का पूरे राज्य में सियासी प्रभावी नहीं है बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग पार्टियों का प्रभाव नहीं है. इसीलिए पिछले 40 सालों में कोई भी पार्टी अकेले दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई है.
ऐसा है महाराष्ट्र का वोटिंग पैटर्न
महाराष्ट्र का वोटिंग पैटर्न देखें तो अलग-अलग पॉकेट में अलग-अलग तरीके से वोटिंग रही है. महाराष्ट्र में हर इलाका अलग तरीके से सोचता है, क्योंकि जाति और सियासी समीकरण भी अलग-अलग हैं. विदर्भ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सियासत सिमटी हुई है तो पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में एनसीपी की अपनी ताकत रही है. कोंकण और मुंबई बेल्ट में शिवसेना और कांग्रेस के बीच फाइट होती रही है. उत्तर महाराष्ट्र में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है. इसकी वजह से किसी एक पार्टी की सरकार अब तक नहीं बन पाई है.
हमेशा बनीं गठबंधन की सरकारें
कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले शरद पवार ने कई बार प्रयास के बावजूद 74 से ज्यादा सीटें जीत नहीं पाए थे. इसी तरह बालासाहेब ठाकरे जैसे नेता भी कभी अपने बलबूते पर सरकार बना नहीं पाए थे. बीजेपी की भी यही रियलिटी है कि बीजेपी ने भी कभी अपने बलबूते पर महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनाई. इसलिए हमेशा गठबंधन की सरकारें बनती रही हैं. एक विशिष्ट स्थिति में अगर सरकार बनानी है तो गठबंधन की राह चलना होगा. इसीलिए कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों नें महाराष्ट्र में गठबंधन के सहारे सत्ता में आने का सपना देख रही है.
2024 में लगा बीजेपी को झटका
2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने बीजेपी के महाराष्ट्र की राजनीति में आत्म निर्भर बनने की उम्मीदों पर बड़ा झटका दिया था. कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने सूबे की 48 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीती तो बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए सिर्फ 17 सीटों पर सिमट गया. लोकसभा के चुनावी नतीजों को विधानसभा क्षेत्रों के लिहाज से देखें तो इंडिया गठबंधन 153 सीटों (कांग्रेस 63, उद्धव की शिवसेना 57, पवार की एनसीपी 33 सीटें) तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 126 सीटें (बीजेपी 79, शिंदे की शिवसेना 40, अजीत पवार की एनसीपी को पवार छह) पर आगे रही थी.
महाराष्ट्र में शरद पवार का दबदबा
बीजेपी उत्तर महाराष्ट्र में सबसे अधिक विधानसभा क्षेत्रों (35 में से 20 सीटें) में बढ़त हासिल की थी तो कांग्रेस पार्टी विदर्भ और मराठवाड़ा में आगे रही, शिवसेना (यूबीटी) मुंबई में, शिवसेना (शिंदे) ठाणे-कोंकण में और एनसीपी (एसपी) पश्चिमी महाराष्ट्र में आगे रही. इंडिया गठबंधन ने ठाणे-कोंकण और उत्तरी महाराष्ट्र को छोड़कर सभी क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी. कांग्रेस विदर्भ में बीजेपी को शिकस्त देने में सफल रही थी, जिसमें 62 में से 29 सीटों पर बढ़त मिली थी. मराठवाड़ा में आरक्षण की मांग पूरी न होने पर मराठाओं में गुस्सा था. इसके परिणामस्वरूप इंडिया गठबंधन 46 में से 32 सीटों पर आगे रही है. पश्चिमी महाराष्ट्र में शरद पवार अपना दबदबा कायम रखा था.
बीजेपी कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला
विदर्भ बेल्ट में इस बार बीजेपी बनाम कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है. ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रहे विदर्भ में 1999 से 2009 तक भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर के दम पर बीजेपी इस क्षेत्र में कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया था. 2024 के आम चुनावों में कांग्रेस अपना गढ़ बचाए रखने में कामयाब रही. मराठवाड़ा में कांग्रेस और सेना (यूबीटी) बनाम भाजपा और सेना (शिंदे)की लड़ाई देखने को मिल सकती है. ऐसे पश्चिमी महाराष्ट्र में बीजेपी और एनसीपी (अजित पवार) बनाम कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) की टक्कर देखने को मिल सकती है. ठाणे-कोंकण में बीजेपी-शिवसेना (शिंदे) का कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी) के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है.
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