Technology, Social Media: युवाओं का मानिसक स्वास्थ्य बिगाड़ रहा सोशल मीडिया, एक घंटे का ब्रेक करेगा रिफ्रेश — INA

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सोशल मीडिया का इस्तेमाल देश-दुनिया के अरबों लोग कर रहे हैं। हो सकता है कि आप इस खबर को सोशल मीडिया के जरिए ही पढ़ रहे हों, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया आपकी सेहत को कैसे प्रभावित कर रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सोशल मीडिया के कारण दुनियाभर के युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य खराब हो रहा है।


पॉपुलर मीडिया जर्नल psycnet में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि युवा वयस्क अपने सोशल मीडिया के इस्तेमाल को सीमित करके अपने मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने उन लोगों को ध्यान में रखते हुए यह अध्ययन किया जो भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ गए थे। अध्ययन से पता चला कि तीन सप्ताह तक स्क्रीन समय को प्रतिदिन एक घंटे तक कम करने से अवसाद, चिंता और कुछ छूट जाने का डर कम हो गया।


किशोरावस्था और युवा वयस्कता के दौरान, व्यक्ति बड़े सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों से गुजरते हैं। यह उन्हें विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाता है। आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग 20% युवाओं में मानसिक विकार का पता चलता है, जिनमें अवसाद और चिंता सबसे आम है। 
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किशोरावस्था और युवा वयस्कता के दौरान, व्यक्ति बड़े सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों से गुजरते हैं। यह उन्हें विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाता है। आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग 20% युवाओं में मानसिक विकार का पता चलता है, जिनमें अवसाद और चिंता सबसे आम है। 


इस अध्ययन को कार्लटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 220 ऐसे स्नातक छात्रों के साथ पूरा किया है जो नियमित सोशल मीडिया इस्तेमालस करते थे। अध्ययन की शुरुआत एक सप्ताह की सामान्य सोशल मीडिया गतिविधि से हुई, जिसके बाद तीन सप्ताह तक प्रतिभागियों को दो समूहों में विभाजित किया गया। एक समूह को अपने सोशल मीडिया के इस्तेमाल को प्रतिदिन एक घंटे से अधिक नहीं करने के लिए कहा गया था।
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अध्ययन के नतीजे हैरान करने वाले थे। जिन प्रतिभागियों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम किया उनमें अवसाद और चिंता के लक्षण कम दिखे। उन्हें खो जाने का डर भी कम महसूस हुआ और उनकी रात की नींद लगभग 30 मिनट बढ़ गई। प्रयोग से पता चला कि सोशल मीडिया के समय में थोड़ी-सी कमी से भी मानसिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।

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