देश – टीका लाल टपलू कौन थे? हत्या के बाद कश्मीरी पंडितों के खिलाफ उठी हिंसा की लहर, PM मोदी ने किया याद – #INA
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं। अलग-अलग पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के प्रयास में हैं। इसी कड़ी में बीजेपी ने टीका लाल टपलू विस्थापित समाज पुनर्वास योजना (TLTVSPY) पेश की है जिसके जरिए कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का वादा किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू के डोडा में शनिवार को चुनावी सभा में टीका लाल टपलू को याद किया। उन्होंने कहा,’जम्मू-कश्मीर भाजपा ने कश्मीरी हिंदुओ की वापसी और पुनर्वास के लिए टीका लाल टपलू योजना बनाने का ऐलान किया है। इससे कश्मीरी हिंदुओं को उनका हक दिलाने में तेजी आएगी।’ क्या आप जानते हैं कि टीका लाल टपलू कौन थे? अगर नहीं तो, चलिए हम आपको बताते हैं…
टीका लाल टपलू स्कीम से होगी कश्मीरी हिंदुओं की वापसी? BJP का चुनावी दांव समझिए
टीका लाल टपलू कश्मीरी पंडितों के जाने-माने नेता थे, जो भाजपा से जुड़े हुए थे। टपलू वकील थे और कश्मीरी पंडितों के लिए लगातार आवाज उठाते रहे। टीका लाल टपलू का जन्म श्रीनगर में हुआ था। उन्होंने पंजाब और उत्तर प्रदेश से पढ़ाई-लिखाई पूरी की। जम्मू-कश्मीर लौटते ही उन्होंने वकालत शुरू कर दी। धीरे-धीरे कश्मीरी पंडित समुदाय के नेता के तौर पर उनकी पहचान बन गई। आपातकाल के दौरान वह कई बार जेल गए। भाजपा के शुरुआती सदस्यों में उनकी गिनती होती है। वह जम्मू-कश्मीर में पार्टी के उपाध्यक्ष भी रहे। टपलू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से भी जुड़े थे और इससे जुड़े आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।
जब टपलू के घर आतंकियों ने बोल दिया हमला
ऐसा कहा जाता है कि टीका लाल टपलू जन नेता थे जो लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। कश्मीरी पंडितों के बीच टपलू की लोकप्रियता और भाजपा व आरएसएस से जुड़ाव के चलते वह दहशतगर्दों के निशाना पर आ गए। 12 सितंबर 1989 को उनके घर पर आतंकियों ने हमला बोल दिया, मगर वह वहां से बच निकले। इसके दो दिन बाद ही (14 सितंबर, 1989) जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी। इस हत्याकांड के बाद घाटी में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा की भयानक लहर चली। कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाने लगा। उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं। इसके चलते हजारों पंडितों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। वे मजबूरन दूसरे राज्यों में जाकर रहने लगे। टपलू हत्याकांड आज भी कश्मीरी पंडितों के खिलाफ अत्याचारों की याद दिलाता है।
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