देश- ये हैं यूपी की ‘गीता-बबीता’, पिता की अधूरी रह गई पहलवानी की कसक… बेटियां दंगल में कर रहीं पूरी- #NA
महावीर फोगाट की तरह है यूपी के सहारनपुर की गजेंद्र तोमर की फेमिली
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में महावीर फोगाट की पहलवान बेटियों गीता-बबीता फोगाट पर बनी फिल्म दंगल तो आपने देखी होगी. फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे महावीर फोगाट अपनी सभी बेटियों को खुद ट्रेनिंग देकर पहलवान बनाते हैं. महावीर फोगाट और उनकी बेटियां गीता और बबीता जैसी कहानी सहारनपुर से भी निकलकर सामने आई है. ये कहानी है पहलवान गजेंद्र तोमर और उनकी दो बेटियों की जिनका नाम है आरोही और पूर्वी तोमर.
गीता और बबीता की तरह आरोही और पूर्वी अपने घर के अंदर बने अखाड़े में कुश्ती की ट्रेनिंग ले रही हैं. ये ट्रेनिंग खुद उनके पिता गजेंद्र तोमर उन्हें दे रहे हैं. पूरे परिवार की कहनी दंगल फिल्म से काफी मिलती-जुलती है. गजेंद्र तोमर की तीन बेटियां हैं और एक बेटा भी है. हालांकि उनका बेटा दिव्यांग है. गजेंद्र तोमर अपनी तीसरी बेटी जो कि अभी काफी छोटी है उसको भी पहलवान बनाना चाहते है.
कई पहलवान कर चुके ट्रेंड
सहारनपुर के दिल्ली रोड स्थित श्री राम वाटिका के रहने वाले गजेंद्र तोमर एक स्कूली वाहन चलाते हैं. उनका परिवार यूपी के बागपत जिले के लायन मलकपुर गांव के रहने वाले हैं. बागपत का लायन मलकपुर वो गांव है जिसने देश ओर प्रदेश को कई पहलवान दिए हैं. गजेंद्र तोमर खुद पहलवान रह चुके हैं और उनका दावा है कि उन्होंने कई पहलवान ट्रेंड किए हैं. 2004 में बागपत का अपना गांव छोड़कर परिवार के साथ सहारनपुर आ बसे गजेंद्र तोमर का जीवन भी काफी संघर्ष भरा रहा है.
ताकि बेटियां देश के लिए लाएं मेडल
गजेंद्र को पहलवानी करने का शौक था लेकिन पारिवारिक कारणों के चलते वो अपने शौक को पूरा नहीं कर सके. गजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने कई दंगल खेले हैं और इनाम भी जीते हैं . गजेंद्र का कहना है कि वो अपना सपना पूरा नहीं कर सके लेकिन वो अब अपनी दोनों बेटियों को खुद ट्रेनिंग देकर उन्हें एक अच्छा पहलवान बनाना चाहते हैं. ताकि वो विदेश जाकर देश के लिए गोल्ड जीत सकें. गजेन्द्र तोमर अपनी तीसरी बेटी को भी पहलवान बनाना चाहते हैं. गजेंद्र तोमर की पत्नी रूपा भी अपनी दोनों बेटियों पर काफी गर्व करती हैं. दोनो बेटियों को ट्रेनिंग देने में काफी खर्चा आता है इस पर गजेंद्र बताते है कि कुछ अधिकारी उनकी मदद करते है ताकि बेटियों का सपना पूरा हो सके.
सख्ती के साथ देते हैं ट्रेनिंग
आरोही और पूर्वी तोमर बताती हैं कि उनके पिता उनके लिए काफी संघर्ष करते हैं. उन्होंने कई बार दंगल फिल्म देखी है और उसी फिल्म की तरह हमारे पिता हमें ट्रेनिंग देते हैं. सुबह पांच बजे उठना, छोटे बाल रखना, घर के अखाड़े में रोजाना प्रैक्टिस करना, फिर स्कूल जाना और स्कूल के बाद स्टेडियम जाकर फिर प्रैक्टिस करना… ये सब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है. दोनों बहने ओलंपिक खेलना चाहती हैं. देश के लिए गोल्ड लाकर देश का नाम रोशन करना चाहती हैं. आरोही और पूर्वी में अक्सर पहलवानी के दांव पेंच को लेकर झगड़ा भी होता है. वो फिर से एक दूसरे को पटखनी देकर अपना गुस्सा उतार लेती हैं. पिता गजेंद्र तोमर भी उन्हें सख्त ट्रेनिंग देते हैं और उन्हें डांट भी पड़ती है.
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