एमपी- दुर्गम पहाड़ी, सीधी चढ़ाई और बूंद-बूंद पानी की दरकार… MP में जल संकट की कहानी – INA
भीषण गर्मी के दौरान में मध्य प्रदेश में अब जल संकट से नई परेशानी खड़ी हो गई है. कई जगहों पर स्थिति ऐसी है कि लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे है. वहीं राज्य सरकार के सारे दावे फेल दिखाई दे रहे हैं. बुंदेलखंड से लेकर मालवा निमाड़ तक जल संकट की समस्या लोगों को सता रही है. लोग कई किलोमीटर चल कर जंगलों से पानी ला रहे है. आधुनिक दौर में भी देश के एक हिस्से में जल संकट से ऐसी भयावह स्थिति बनी हुई है.
‘जल ही जीवन है’, ‘जल-जीवन मिशन’, ‘हर घर नल, हर घर जल’, ये तमाम योजनाएं सरकार लंबे वक्त से चला रही है. मगर मध्य प्रदेश की ये तस्वीरें कुछ और ही बयां कर रही हैं. मध्य प्रदेश के छतरपुर में जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर किशनगढ़ के आदिवासी अंचल पाठापुर गांव के 100 से अधिक आदिवासी परिवार इन दिनों भीषण जलसंकट से जूझ रहे हैं. यहां के लोग पन्ना टाइगर रिजर्व के दुर्गम जंगलों में पहाड़ी के नीचे उतरकर प्राकृतिक स्रोतों से पानी लाने को मजबूर हैं.
टाइगर रिजर्व से ला रहे पानी
खतरनाक पथरीले रास्तों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच जान को जोखिम में डालकर ग्रामीण पहाड़ी से रिसने वाले पानी को अपने घर तक ला रहे हैं. पाठापुर गांव के लोगों को पानी भरना मानो किसी जंग जीतने जैसा है, पानी के लिए ग्रामीण गांव से 2 से 3 किलोमीटर की दूरी तय करके जंगल पहुंचते और खतरनाक पहाड़ी से नीचे उतरकर कुप्पों में पानी भरते और रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ाते हैं. कुछ लोग पथरीले रास्तों और सीढ़ीनुमा रास्ते से होकर गांव तक पहुचंते. पानी के लिए मशक्कत करने वाले लोगों को पहाड़ी से गिरने का खतरा तो है ही साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व होने की वजह से हिंसक वन्य जीवों से भी बचना किसी चुनौती से कम नहीं है.
गुफा के अंदर से ला रहे पानी
विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मांडू की हालत भी कुछ ऐसी है, जहां पर रह रहे लोगों को गहरी खाई में गुफा के अंदर से बूंद-बूंद टपकते मटमैले पानी को कई किलोमीटर दूर से लाना पड़ रहा है. मांडू नगर के झाबरी क्षेत्र में करीब 1000 लोग रहते हैं. इन लोगों को भी पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है और उसके बाद भी गुफा से रिसता मटमैला पानी ही इन्हे मिल पाता है. वहीं जंगली जानवरों का डर और जंगल के खतरनाक उतार-चढ़ाव भी लोगों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकते हैं. सैकड़ों फीट नीचे गुफा में टिबकीया नामक स्थान पर पहुंचने के लिए ग्रामीणों को सकरे पथरीले रास्ते से सैकड़ों फीट नीचे उतरना पड़ता है. सबसे दुख की बात तो यह है कि यह पानी पीने योग्य नहीं होता. ग्रामीणों का कहना है कि साल के 6 महीने इस क्षेत्र में यही हालात बने रहते हैं.
भोपाल में भी हालात बदतर
राजधानी भोपाल में भी 5 साल बाद शहर की लाइफ लाइन कहा जाने वाला बड़ा तालाब सूख रहा है. जल स्तर एक महीने में ही 1661 फीट से घटकर 1659 फीट तक पहुंच गया है. सूरज ऐसे ही आग बरसता रहा तो जल स्तर और भी काम होने की आशंका है. मध्य प्रदेश के खंडवा में तो पानी नहीं मिलने की वजह से लोगों ने चक्का जाम तक कर दिया. लोगों ने कहा कि यहां इतने बड़े बांध होते हुए भी पानी नहीं मिल रहा है. हम कई वर्षों से इस जल समस्या का सामना कर रहे है.
जल संकट पर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अधिकारियों ने इन योजनाओं में सिर्फ भ्रष्टाचार किया है. नल तो लगा दिए मगर उनमें पानी नहीं है. वहीं जल की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री भी गंभीर नजर आ रहे है. नदी-तालाब को लेकर काम कर रहे है. प्रदेश में 212 से ज्यादा नदियां हैं. कई बावड़ी कई तालाब है. जिन जल संरचनाओं पर अति क्रमण हो रहा है उसे भी हटाएंगे. 5 जून से लेकर 15जून तक अभियान भी चलाया जायेगा. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश से आने वाले 15-20 दिन बेहद कठिन है. जरूरत है कि सरकार इन ग्रामीणों के लिए पानी की उचित व्यवस्था करे.
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