Crime – कनपटी पर वार कर मौत की नींद सुलाने वाला सीरियल किलर | 25 year old young killer from Rajasthan who killed 70 people.- #INA

सीरियल किलर एक सनकी किलर भी होता है जिसे हर दूसरे इंसान में सिर्फ अपना दुश्मन ही नजर आता है और अपने दुश्मन को खत्म करने के बाद उसे जो खुशी मिलती है वो और किसी चीज से नहीं मिलती. सीरियल किलर हर हत्या एक तरीके से और बड़ी बेरहमी से करता है. ऐसा ही खौफनाक एक किलर हुआ राजस्थान का शंकरिया. राजस्थान की राजधानी जयपुर में 1952 में जन्मे शंकरिया की पैदाइश के समय से उसके मां-बाप ने एक सपना देखा था कि उनका बेटा पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने.

लेकिन शंकरिया युवा उम्र में ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसे सुनने के बाद पूरे राजस्थान में वो दहशत का कारण बन बैठा था. शंकरिया ने 1977 से 1978 यानी सिर्फ एक साल के अंदर ही 70 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. पुलिस की पूछताछ में शंकरिया ने कबूल किया था कि उसे हथौड़े से हमला कर लोगों को मारने में बहुत मजा आता है और अपने मजे के लिए उसने एक साल में 70 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया. शंकरिया के इस तरह से लोगों को मारने के तरीके ने उसे पूरे राजस्थान में कनपटीमार शंकरिया के नाम से मशहूर कर दिया था.

कनपटीमार शंकरिया के एक ही वार में ढेर हो जाते थे लोग

शंकरिया 25 साल की उम्र में 70 लोगों की हत्या हथौड़े से करने के चलते पूरे राजस्थान में हथौड़ामार हत्यारे के रूप में मशहूर हो गया. दूसरे सीरियल किलर की तरह शंकरिया भी अपने शिकार का चुनाव अचानक करता था. साथ ही जिनकी हत्याएं शंकरिया ने की थी उन लोगों का किसी भी तरह से शंकरिया से कोई संबंध नहीं था, बावजूद वो शंकरिया के अपराध का शिकार बन गए.

हत्या की पीछे कोई कारण नहीं होने के चलते पुलिस के लिए भी हत्यारे को खोजना एक चुनौती बन गया था. शंकरिया अपने शिकार को पहचानने के बाद उसकी हत्या करने के लिए मौके की तलाश में रहता था और मौका मिलते ही अपने खूनी हथौड़े से अपने शिकार की कनपटी पर जोरदार वार करता था. अधिकतर मामलों में मृतक शंकरिया के एक ही जोरदार वार में ढेर हो जाता था.

गुरुद्वारे के सेवादार की उसके बेटों के साथ कर दी थी हत्या

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले का सादुलशहर थाना इलाका, घटना 1973 की है. सुबह के लगभग पांच बजे सादुलशहर थाने में स्टाफ की ड्यूटी की अदला-बदली का दौर चल रहा था, इसी दौरान थाने में किसी ने फोन करके सूचना दी कि रात में सादुलशहर गुरुद्वारे में तीन लोगों की हत्या कर दी गई है.

आनन-फानन में पुलिस फोर्स गुरुद्वारा पहुंची और देखा कि गुरुद्वारे के सेवादार और उनके दोनों बेटों की कनपटी पर भारी चीज मारकर हत्या कर दी गई थी. पुलिस तीनों लोगों की बॉडी देखकर समझ गई कि ये काम कनपटीमार हत्यारे का ही है. उस जमाने में अपराधी की पहचान करना पुलिस के लिए बहुत मुश्किल हुआ करता था.

70 का दशक एक ऐसा दशक था जिसने न केवल भारत-पाकिस्तान की जंग देखी थी बल्कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में मुंहनोचवा, कानकटवा, चोटीकटवा जैसे हमलावरों के नाम की दहशत चरम पर हुआ करती थी. इन मुंहनोचवा, कानकटवा, चोटीकटवा वाले अपराधियों का काम चोरी, लूटपाट तक सीमित हुआ करता था.

ये मुंहनोचवा, कानकटवा, चोटीकटवा वाले अपराधी बहुत ही कम मौके पर हत्या की घटनाओं को अंजाम देते थे, जबकि इन सबके उलट कनपटीमार शंकरिया अपने शिकार की जान निकलने तक लगातार हमला करता रहता था. शंकरिया ज्यादा वारदातों को रात के अंधेरे खासकर काली रातों में अंजाम देता था. वो सड़क के किनारे कंबल ओढ़कर अपने शिकार की खोज में घात लगाए बैठा रहता. शंकरिया हमेशा अपने कंबल के अंदर ही अपना खूनी हथौड़ा छुपाकर रखता था.

जैसे ही उसे कोई अकेला इंसान उसकी सीमा या इलाके में अकेला मिल जाता तब ये बिना मौका गंवाए उसकी कनपटी के नीचे जोरदार हमला करता और उसके एक ही हमले में वो इंसान वहीं गिर पड़ता था. शंकरिया बिना उस इंसान के संभले उस पर लगातार हमला करता रहता जब तक की वो वहीं पर ढेर नहीं हो जाता था.

पुलिस के सामने हत्यारे का खुलासा बनी बड़ी चुनौती

1970 के दौर में पुलिस के पास अपराधी को पकड़ने के लिए सिर्फ परंपरागत साधन ही हुआ करते थे, जिनमें मुख्य और सबसे भरोसेमंद सबूत जुटाना या घटना का कोई चश्मदीद की तलाश करना था. उस दौर में सर्विलांस और फॉरेंसिक साइंस जैसी तकनीक का तो किसी ने नाम तक नहीं सुना था इस्तेमाल की बात तो बहुत दूर की थी.

साथ ही कनपटीमार शंकरिया की पहचान के लिए पुलिस के पास न तो उसका कोई नाम था, न फोटो और न घटना का कोई चश्मदीद. बस कुछ लोग ऐसे थे जो कनपटीमार के हमले से भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब हुए थे. उन्हीं लोगों ने पुलिस को शंकरिया के हुलिए के बारे में थोड़ी जानकारी दी थी.

पुलिस कप्तान ने खुद संभाली हत्यारे को पकड़ने की कमान

1973 में श्रीगंगानगर के सादुलशहर गुरुद्वारा हत्याकांड की जांच में पुलिस लगी हुई थी. हत्या की गंभीरता को देखते हुए उस समय के तत्कालीन एसीपी श्याम प्रताप सिंह खुद मैदान में उतर चुके थे और मामले की गहन जांच कर रहे थे. इस दौरान आसपास के लोगों से एसपी श्याम प्रताप सिंह को पता चला कि सेवादार और उसके दोनों बेटों की हत्या वाले दिन एक युवक रेलवे ट्रैक पर सादुलशहर रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहा था. हालांकि किसी को नहीं मालूम था कि वो युवक था कौन.

श्रीगंगानगर का सादुलशहर एक छोटा सा कस्बा था इसलिए इस इलाके में रहने वाले अधिकतर लोग चेहरे से एक दूसरे को जानते-पहचानते थे. स्थानीय लोगों ने जिस इंसान को रेलवे ट्रैक के पास देखा था वो उन्हें उस इलाके में नया युवक लगा. स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के आधार पर एसपी श्याम प्रताप सिंह जांच पड़ताल करते हुए सादुलशहर रेलवे स्टेशन पहुंचे और रेलवे स्टेशन पर मौजूद हर एक स्टाफ से पूछताछ की. इस दौरान पुलिस को अहम जानकारी हाथ लगी.

रेलवे टिकट बेचने वाले स्टाफ ने बताया कि घटना वाले दिन सुबह सादुलशहर से बठिंडा का एक टिकट बेचा गया. ये सूचना मिलते ही पुलिस की एक टीम बठिंडा के लिए रवाना हो गई और वहां के रेलवे स्टाफ से पूछताछ की तो पता चला कि वहां से भी एक टिकट सादुलशहर के लिए जारी हुआ था. अब पुलिस को यकीन हो गया था कि टिकट खरीदने वाला ही सादुलशहर के गुरुद्वारे के सेवादार और उनके दोनों बेटों का हत्यारा है.

शंकरिया को पकड़ने के लिए पुलिस ने अपनाया पुराना तरीका

एसीपी श्याम प्रताप सिंह को यकीन हो चुका था कि हत्या करने वाला बठिंडा से आया था. फिर से एक बार पुलिस ने पंजाब और राजस्थान में हथौड़ा से हमला कर हत्या वाली घटनाओं की जांच शुरू की. शंकरिया के हमले में बचने वाले सभी लोगों को पुलिस ने एक बार फिर से पूछताछ के लिए बुलाया और उनकी सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी का एक स्केच तैयार करवाया. अब पुलिस को भरोसा हो गया था कि सभी घटनाओं के पीछे एक ही हत्यारा है.

स्केच के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे क्योंकि अपराध का इलाका बहुत बड़ा था और इतने बड़े इलाके में जांच पड़ताल करना उस समय पुलिस के लिए आसान भी नहीं था. आखिर पुलिस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और ऐसी जगहों को चिह्नित किया जो रात को सुनसान होते थे क्योंकि ऐसी जगह पर अपराधी का अपराध करना आसान होता था. शंकरिया की तलाश में कई दिन रात गुजर गए लेकिन कनपटीमार किलर का कोई अता पता नहीं चल रहा था.

ऐसे पुलिस की पकड़ में आया कनपटीमार शंकरिया

साल 1979 में एक रात जयपुर पुलिस की एक टीम गश्त पर थी, इसी दौरान गश्त करते हुए पुलिस सुनसान इलाके में पहुंच गई. रास्ते में पुलिस ने देखा कि कंबल ओढ़े एक युवक सामने से आ रहा था जो पुलिस को देखकर एक पेड़ के पीछे जा कर छुप गया. पुलिस से बचने के लिए उसने अपने थैले में से एक कंबल निकाला और खुद को उस कंबल से ढंक लिया.

काफी देर के बाद पेड़ के पीछे छुपा कनपटीमार जैसे ही बाहर निकला पुलिस टीम ने बिना देर किए उसे दबोच लिया, पुलिस थाने लाकर उससे पूछताछ की गई तो उसने अपना नाम शंकरिया और जयपुर स्थित अपने घर का पता बताया. सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस की एक टीम उसके घर पर पहुंची.

पुलिस बताए गए पते पर पहुंची तो वहां उसके मां-बाप मिले जिससे पुलिस को यकीन हो गया कि शंकरिया ने जो बोला वो सच था. पुलिस ने शंकरिया से पूछा कि पूरे राज्य में किलर की दहशत है, पूरे राज्य में 60 से ज्यादा लोगों को मार दिया गया है ऐसे में वो अकेले कंबल लेकर रात में क्यों घूम रहा था. पुलिस को उस पर शक तो हो रहा था लेकिन उसके पास से किसी हथियार का बरामद न होना उसे पुलिस की पकड़ से दूर किए हुए था. हालांकि पुलिस शक के आधार पर उससे आए दिन पूछताछ करने लगी .

पुलिस की रोज-रोज की पूछताछ से शंकरिया तंग आ गया और उसने पुलिस के सामने 70 लोगों की हत्या करने वाली बात कबूल कर ली. लेकिन पुलिस को उसकी बात पर यकीन भी नहीं हो रहा था कि एक 25 साल का दुबला-पतला लड़का कैसे 70 लोगों को मार सकता है. फिर पुलिस ने शंकरिया से पूछा कि उसने 70 लोगों को कैसा मारा, इस पर उसने हथौड़े वाली बात पुलिस को बता दी. फिर पुलिस शंकरिया के बताए स्थान पर गई जहां से हथौड़ा जब्त कर लिया गया.

राष्ट्रपति ने खारिज कर दी उसकी दया याचिका

सीरियल किलर शंकरिया के अपराध को कोर्ट ने ‘रेयर ऑफ द रेयर’ की श्रेणी में रखकर उसे फांसी की सज़ा सुनाई. अपनी सज़ा के खिलाफ शंकरिया ने राजस्थान हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अर्जी लगाई लेकिन हर जगह से उसे मौत की सज़ा मिली. आखिरी बार उसने भारत के राष्ट्रपति के पास अपनी सज़ा माफी के लिए दया याचिका लगाई, लेकिन वहां से भी उसकी अर्जी को खारिज कर दिया गया. आखिर 16 मई 1979 की सुबह शंकरिया को जयपुर की सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया. इस तरह से एक 27 साल का युवा लड़का अपनी सनकीपन के चलते समय से पहले इस दुनिया से चला गया.

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button