Crime – मुलायम के खास MLA फिर भी नहीं बची जान… बीच बाजार बाहुबली ने दुश्मन के सीने में खाली कर दी थी AK 47 | Prayagraj SP MLA Jawahar Yadav murder case Bahubali Udaybhan Karwaria released from jail AK 47- #INA
उदयभान करवरिया और पूर्व विधायक की पत्नी बिजमा यादव
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेहद खास रहे सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की हत्या के दोषी पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को मिली आजीवन कारावास की सजा माफ हो गई है. 8 साल तीन महीने 22 दिन जेल में रहने के बाद उदयभान करवरिया जेल से बाहर आ गया है. उसके जेल से बाहर निकलने के साथ ही 13 अगस्त 1996 की यह तिहरा मर्डर कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. इस हत्याकांड को दबाने के लिए ही उदयभान करवरिया भी बाद में राजनीति में आया, विधायक भी बना, बावजूद इसके वह अपने आप को उम्र कैद की सजा से बचा नहीं पाया.
इस घटना में झूंसी से सपा के विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित समेत तीन लोगों को बाहुबली उदयभान करवरिया ने अपने हाथों AK47 से फायरिंग करते हुए सरेआम भून डाला था. इस संबंध में जवाहर यादव के भाई सुलाकी यादव ने उदयभान करवरिया, उसके दो भाइयों सूरजभान और कपिलमुनि करवरिया के अलावा चाचा श्याम नारायण करवरिया और साथी रामंचद्र त्रिपाठी के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा भड़काने, घातक हथियारों का इस्तेमाल करने के अलावा सीएलए एक्ट की धारा 7 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था.
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सरे राह और सरे आम दिया वारदात को अंजाम
अदालत में दाखिल पुलिस की केस डायरी के मुताबिक यह वारदात इलाहाबाद के पैलेस थिएटर और राजकरन टाकीज के बीच चौराहे पर सरेराह और सरेआम हुई थी. उस समय शाम के करीब चार बज रहे थे. झूंसी विधायक जवाहर यादव अपनी मारुति कार में सवार होकर यहां पहुंचे थे. इतने में मारुति वैन में उनका पीछा करते आए उदयभान करवरिया ने ओवरटेक कर इनकी गाड़ी को रोका और दनादन फायरिंग करते हुए उनकी हत्या कर दी. इस घटना में जवाहर यादव के साथ उनके साथी गुलाब और एक राहगीर कमल कुमार दीक्षित की मौत हुई थी. जबकि जवाहर यादव के निजी गनर कल्लन यादव और पंकज श्रीवास्तव गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
बोरा सिलते थे जवाहर यादव
मूल रूप से जौनपुर के रहने वाले झूंसी विधायक जवाहर यादव 80 के दशक में रोजी रोटी की तलाश में इलाहाबाद आए थे. यहां उन्हें बोरा सिलने का काम मिला था. इसलिए मुश्किल से अपने परिवार का पालन पोषण कर पाते थे. जवाहर यादव ने इसी दौरान जल्दी पैसा कमाने की गरज से रेत खनन और शराब के काम में हाथ आजमाया और सफल हो गए. संयोग से सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की नजर उनके ऊपर पड़ गई और उन्हें 1993 के चुनाव में झूंसी विधानसभा सीट से सपा का टिकट मिल गया और वह चुन लिए गए. विधायक बनने के बाद जवाहर यादव खनन और शराब के धंधे में खुलकर खेलने लगे थे.
विधायक से खतरा महसूस होने पर की थी हत्या
चूंकि उत्तर प्रदेश में इस तरह के धंधे में दो ही गैंग सक्रिय थे. एक गैंग केंद्र गोरखपुर से संचालित हो रहा था, इसके मुखिया हरिशंकर तिवारी थे. वहीं दूसरा गैंग इलाहाबाद में भुक्कल महाराज के अंडर में था. हालांकि भुक्कल महाराज की हत्या हो गई और अतीक अहमद धंधे को कब्जाने की फिराक में था. उसी समय भुक्कल का बेटा उदयभान करवरिया ने भी अपने हाथ पांव पसारने शुरू कर दिए. चूंकि राजनीतिक संरक्षण की वजह से जवाहर यादव इस धंधे में भारी पड़ने लगे थे, ऐसे में उदयभान करवरिया को खतरा महसूस होने लगा और उसने जवाहर यादव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस प्रकार अगस्त 1996 में एक रणनीति के तहत जवाहर यादव की हत्या को अंजाम दिया गया.
बीजेपी हो या बीएसपी, किसी ने भी नहीं खोली फाइल
जवाहर यादव की पत्नी बिजमा यादव के मुताबिक इस घटना के बाद प्रदेश में चाहे बीजेपी की सरकार रही हो या बीएसपी की, उदयभान करवरिया को सभी का वरदहस्त हासिल था. यहां तक कि राष्ट्रपति शासन के दौरान भी किसी पुलिस वाले ने इस घटना की फाइल खोलने की हिम्मत नहीं की. हालांकि बाद में इलाहाबाद से बीजेपी के तत्कालीन सांसद मुरली मनोहर जोशी की पहल पर मामले की जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी गई. सीबी-सीआईडी ने 20 जनवरी 2004 को जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल कर दिया. बावजूद इसके, पुलिस ने उदयभान करवरिया पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की.
साल 2013 में करवरिया बंधुओं ने किया था सरेंडर
फिर आया साल 2012 और प्रदेश में फिर से सपा की सरकार बन गई. उस समय सीएम अखिलेश यादव बने थे. ऐसे में मौका देखकर बिजमा यादव सीएम अखिलेश यादव से मिलीं और अपने पति के लिए न्याय की गुहार लगाई. इसके बाद सीएम अखिलेश के निर्देश पर पुलिस हरकत में आई. पुलिस ने करवरिया बंधुओं के खिलाफ घेराबंदी शुरू की और साल 2013 में उन्हें सरेंडर करना पड़ा. साल 2017 में यूपी में बीजेपी की वापसी हुई तो उदयभान की पत्नी नीलम करवरिया मेजा सीट से बीजेपी के ही टिकट पर विधायक चुन ली गई. विधायक बनने के बाद नीलम करवरिया ने इस मुकदमे को खत्म कराने के लिए काफी दबाव बनाया. चूंकि सभी सबूत करवरिया बंधुओं के खिलाफ थे, इसलिए कोर्ट ने बाकी सभी पक्षों को नकारते हुए इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी.
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