धर्म-कर्म-ज्योतिष – लोह वन में स्थापित माता की मूर्ति का पल-पल बदलता है रंग, जानें इसके पीछे का इतिहास  #INA

लोहवन भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा द्वापर युग का स्थान है. ये यमुना के दूसरी तरफ मथुरा से लगभग 5 km की दूरी पर है. भागवत की कथा के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण लोहवन में अपनी गायों को जल पिलाया करते थे और विश्राम करते थे. लोह  वन नंद गांव और गोकुल के बीच का इलाका है. यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने लोहा सुर राक्षस का वध किया था. इसका स्थान आज भी है. इस जगह का नाम लोहवान पड़ा है. भागवत और दूसरे धार्मिक ग्रंथो की कथा के मुताबिक यहां दिखने वाला  तालाब भगवान श्री कृष्ण के द्वारा खोदा गया है और अपनी गायों को इसी में शाम को पानी पिलाया करते थे. इसके साथ ही  इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्र नाभ के की ओर से स्थापित गोपीनाथ का मंदिर भी है जो महाभारत कालीन में बना है. 

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2005 में लोह वन के स्थानीय निवासियों ने श्री कृष्ण कुंड का जीर्णोधार किया और उसी के साफ सफाई और खुदाई के दरमियान कुंड से माता योग माया की अलौकिक प्रतिमा मिली. आज प्रतिमा लोहवन के श्री कृष्ण कुंड के किनारे बने मंदिर में स्थापित है. माता की इस रूप को अत्यंत ही चमत्कारी माना जाता है. स्थानीय लोगों ने बताया की कृष्ण कुंड की खुदाई के दौरान जहां से मूर्ति मिली वहां जेसीबी ने काम करना बंद कर दिया था. बहुत प्रयास के बाद भी जेसीबी नहीं चल सका फिर कुछ बच्चों ने खेलते हुए इस मूर्ति को देखा और फिर काफी पूजा पाठ के बाद ही मूर्ति तालाब से निकली गई. दर्जनों लोग  मिलकर इसे उठा नहीं पा रहे थे.

मंदिर सिर्फ 10 साल पहले ही बना

इसके एक नया मंदिर बनाया गया. मंदिर सिर्फ 10 साल पहले ही बना है, इसमें मूर्ति को स्थापित किया गया. पुजारी और स्थानीय साधु संतों का कहना है कि यह मूर्ति भगवान श्री कृष्ण के समय की है मंदिर के पुजारी का दावा है की मूर्ति का टेस्ट पुरातत्व विभाग ने कराया था. पुरातत्व विभाग के जांच से यह जानकारी मिली है कि यह महाभारत कालीन है. आज देश-विदेश से लोग इसका दर्शन करने आते हैं. 84 कोस की परिक्रमा का यह मुख्य पड़ाव है. मंदिर के पुजारी और दूसरे संतों ने बताया कि माता का रंग सुबह गुलाबी रहता है. जैसे-जैसे दिन चढ़ता है वैसे-वैसे रंग बदलने लगता है और शाम होते-होते माता की मूर्ति का रंग श्याम यानी काल हो जाता है.


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