खबर फिली – Anupama Kher Exclusive : आम आदमी की कहानी को खास बनाना है सबसे मुश्किल, ‘विजय 69’ की सफलता पर बोले अनुपम खेर – #iNA @INA

अनुपम खेर की फिल्म ‘विजय 69’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. ये एक ऐसे कॉमन मैन की कहानी है, जो सभी का दिल जीत रही है. अक्षय रॉय ने इस फिल्म का निर्देशन किया है. 69 साल के अनुपम खेर ने इस फिल्म के लिए खूब मेहनत की है और उनकी फिल्म को मिल रही सफलता को देखते हुए ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि अनुपम खेर की ये मेहनत खूब रंग लाई है. हाल ही में टीवी9 हिंदी डिजिटल के साथ की खास बातचीत में अनुपम खेर ने बताया कि फिल्म करते हुए ऐसे लग रहा था कि ये सिर्फ विजय की ट्राईथलोन नहीं बल्कि मेरी भी ट्राईथलोन है.

आप को नहीं लगता कि काफी समय के बाद एक ऐसी फिल्म आई है, जो लोगों को ऋषिकेश मुख़र्जी, बासु चटर्जी के एरा की याद दिलाती है?

मैंने इस बारे में पहले सोचा नहीं था. लेकिन अब जब आपने कहा है, तो मैं ये बात महसूस कर सकता हूं. बासु दा और ऋषिकेश मुख़र्जी की खास बात ये थी कि उन्होंने कॉमन मैन पर फिल्में बनाईं. उनकी कहानियां मिडिल क्लास लोगों के बारे में जरूर होती थीं. लेकिन उन्होंने कभी भी उनको ‘बेचारे’ के तरह नहीं पेश किया. विजय 69 में भी विजय ने अपने आप को कमजोर नहीं माना था, लेकिन उसके इर्द-गिर्द घूमने वाली दुनिया उसे बूढ़ा साबित करने में लगी थी. हमने कभी इस बारे में बात नहीं की थी. लेकिन जी हां, इस फिल्म में आप बासु चटर्जी की झलक देख सकते हैं.

जो किरदार देखने में सहज लगते हैं, क्या उन्हें पर्दे पर दिखाना मुश्किल होता है?

जी हां, मुझे लगता है कि आम आदमी का किरदार निभाना बहुत मुश्किल होता है. क्योंकि वो हीरो बनने की कभी कोशिश नहीं करता. मैंने तो अपने करियर में कई आम आदमी के किरदार निभाए हैं. खोसला का घोसला हो, सारांश हो या फिर विजय 69 ये सब आम आदमी की कहानियां हैं. देखा जाए तो उनकी कहानी आम होकर भी खास होती है और इसे पर्दे पर दिखाना मुश्किल काम है. लेकिन विजय 69 लोगों को पसंद आने की वजह कुछ और है.

अगर ‘विजय 69’ अक्षय ओबेरॉय के अलावा कोई और निर्देशक बनाते तो लोगों को वो इतनी पसंद नहीं आती. अक्षय की संवेदनशीलता की वजह से ‘विजय 69’ लोगों को पसंद आ रही है. मुझे इस फिल्म के लिए हजारों मैसेज आए हैं और इसमें सिर्फ मिडिल क्लास लोग नहीं हैं, समाज के सब वर्ग के लोग इसमें शामिल हैं. उन्हें सब को लग रहा है कि ये उनकी कहानी है. ये खुद का अस्तित्व साबित करने वाले हर इंसान की कहानी है.

इस फिल्म को लेकर क्यों विश्वास था आपको कि लोगों को ये कहानी पसंद आएगी?

‘विजय 69’ में मुझे लोग ये कह रहे हैं कि ये परफॉर्मेंस आपके अलावा कोई और नहीं कर सकता था. हम इस किरदार में बाकी किसी को नहीं देख सकते. मुझे विश्वास था कि मैं इस फिल्म को लोगों के दिल तक पहुंचा सकता हूं और इससे बड़ा सबूत हो नहीं सकता कि आज 99.99 प्रतिशत लोग मुझे कह रहे हैं कि ये रोल आपसे बेहतर कोई निभा नहीं सकता था.

इस किरदार की तैयारी करते समय सबसे मुश्किल बात क्या थी?

मैंने 69 साल की उम्र में ये किरदार निभाया है और फिजिकली ये किरदार निभाना आसान नहीं था. क्योंकि ये इंसान आम जिंदगी में भी एक्टिव रहता है, ट्राईथलोन भी कर रहा है. लेकिन इस फिल्म की 2 लाइन पढ़कर ही मैंने इसे करने के लिए हां कर दी थी. जब टीम ने मुझे वजह पूछी तब मैंने कहा कि मेरी मां कहती हैं कि चावल गल गए हैं या नहीं, ये देखने के लिए सिर्फ एक दाना काफी होता है.


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