सेहत – अब बच्चे भी हो रहे हैं नशे का शिकार, हो जाएं सावधान, डॉक्टर से जानें क्या है वजह और लक्षण

हाँ: आधुनिकता के दौर में इंसानों की परंपरा पूरी तरह से बदल गयी है। जिसका असर अब छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी दिखने लगा है। बेरोजगारी जैसी समस्या अब छोटी उम्र के बच्चों में भी आम हो गई है। दून हॉस्पिटल में हर हफ्ते कम से कम दो बच्चे इस बीमारी से जुड़ी फिल्में दिखाई देती हैं। हर दिन टाइप-1 मरीज से पीड़ित 12 मरीज़ों की जांच के लिए अस्पताल में भर्ती हैं। बच्चों में इस तरह की बीमारी के बढ़ने के पीछे कारण और खुलासा दून अस्पताल के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नूतन सिंह से लोकल18 ने बातचीत की.

कई बार बच्चों की मानसिकता की समस्या होती है

कुछ बीमारियाँ ऐसी होती हैं, जो प्राकृतिक रूप से दिखाई देती हैं, लेकिन बदलते दौर के कारण राजनीति का असर अब लोगों पर भी दिखने लगा है। जो बीमारी बड़ों को होती थी, अब वो बच्चे भी आम हो गए हैं। लोक18 से बातचीत के दौरान बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन सिंह ने बताया कि शरीर में इंसुलिन की कमी से टाइप-1 डायबिटीज (टाइप-1 डायबिटीज) होती है। कई बार इंसुलिन उपकरण अगर ठीक से काम न कर रहे हों, तो उस कारण भी यह बीमारी जन्म योजना है। कई बार बच्चों में यह बीमारी इतनी बढ़ जाती है कि जब उन्हें स्थानीय अस्पताल में ले जाया जाता है, तो बच्चे की हालत खराब हो जाती है।

जीवविज्ञान में सुधार अत्यंत आवश्यक है

रहस्योद्घाटन का ज़िक्र करते हुए बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन सिंह बताती हैं कि इस बीमारी में अमूमन के कुछ किरदार फिल्मी पर्दे पर दिखाई देते हैं। जैसे- बच्चे का वजन कम होना, भूख और प्यास ज्यादा लगना, पेशाब ज्यादा आना, पेट दर्द, उल्टी प्रमुख लक्षण हैं। इस बीमारी से कैसे बचे. इस सवाल का जवाब देते हुए कहा गया डॉ. नूतन सिंह का कहना है कि इसके लिए हमें नैतिकता में सुधार करना चाहिए। फुल टीशू ज्यादातर पर इंसुलिन ठीक से काम नहीं करता है, फुल टीशू ज्यादा मात्रा में इंसुलिन ठीक से काम नहीं करता है।

एक साल के बच्चे को भी हो सकती है परेशानी

डॉ. नूतन सिंह ने टाइप-1 चूहों को लेकर माता-पिता को सलाह देते हुए कहा कि समय-समय पर बच्चों की किडनी और आंखों की भी जांच करवाते रहें। एक साल की उम्र तक बच्चों में भी चूहों के लक्षण मिल जाते हैं। ये अनुवाशित कई मामलों में होता है, लेकिन आज के दौर में ये ख़राब परंपरा का कारण बन रहा है.


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