दुनियां – ब्रिक्स में क्यों शामिल होना चाहता है तुर्की, क्या भारत की बढ़ेगी टेंशन? – #INA

तुर्की अब ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है, जानकारी के मुताबिक अंकारा ने ब्रिक्स मे शामिल होने के लिए आवेदन दिया है. हालांकि तुर्की की ओर से आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान नहीं किया गया है लेकिन कुछ दिनों पहले रूस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने जानकारी दी थी कि तुर्की ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है.
जानकारी के मुताबिक तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोआन अक्टूबर में रूस में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. अगर तुर्की ब्रिक्स में शामिल होता है तो यह पहला ऐसा देश होगा जो NATO और ब्रिक्स दोनों का हिस्सा बनेगा. लेकिन सवाल ये उठता है कि तुर्की NATO का दुश्मन माने जाने वाले ब्रिक्स में शामिल क्यों होना चाहता है?
BRICS में कौन-कौन से देश शामिल?
BRICS विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का गुट है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका इसे शुरुआती सदस्य हैं. रूस और चीन के प्रभाव वाले इस गुट को पश्चिमी देशों को चुनौती देने वाला माना जाता है. एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में ग्लोबल अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स देशों का दबदबा होगा. यही वजह है कि कई देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है. अजरबैजान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आधिकारिक तौर पर आवेदन दे दिया है वहीं कई ऐसे देश हैं जिन्हें शामिल किए जाने की प्रक्रिया जारी है. हाल ही में नए देशों ईरान, इथियोपिया, मिस्त्र और संयुक्त अरब अमीरात के जुड़ने के बाद इसे ब्रिक्स प्लास के नाम से जाना जाता है.
ब्रिक्स में क्यों शामिल होना चाहता है तुर्की?
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन एक ओर मुस्लिम देशों के बीच वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने पर भी उनका ज़ोर है. आने वाले समय में ब्रिक्स को WTO (विश्व व्यापार संगठन), IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले संगठन के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि तुर्की आर्थिक विकास के लिए अधिक अवसर और वित्तीय सहायता हासिल करने के लिए ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है. दरअसल ज्यादातर देश पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों से परेशान हैं और वह ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक की मदद चाहते हैं.
एर्दोआन मानते हैं कि जिओपॉलिटिक्स का केंद्र अब विकसित देशों से दूर हो रहा है और आने वाले समय में विकासशील देशों की इसमें अहम भूमिका होने वाली है. एक समय तो ब्रिक्स को G7 के विकल्प के तौर पर भी देखा जाता था. तुर्की भले ही NATO देशों का सदस्य है लेकिन रूस का करीबी दोस्त होने की वजह से पश्चिमी देशों के साथ उसके संबंध कुछ खास नहीं रहे हैं. इसके अलावा बताया जाता है कि तुर्की चीन के प्रभाव वाले संगठन SCO में भी शामिल होना चाहता है, लिहाज़ा रूस और चीन के प्रभाव वाले ब्रिक्स के जरिए वह अपने कई हितों को साध सकता है.
माना जा रहा है कि ब्रिक्स में शामिल होने के बावजूद तुर्की NATO से अपने संबंध तोड़ने वाला नहीं है, बल्कि वह पश्चिमी देशों से इतर नए गुटों के साथ जुड़कर अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. तुर्की के राष्ट्रपति आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पूर्व और पश्चिम दोनों के साथ तालमेल बनाकर रखना चाहते हैं.
तुर्की से शामिल होने से भारत पर असर?
बीते कुछ सालों में तुर्की और भारत के संबंध ज्यादा मित्रतापूर्ण नहीं रहे हैं, ऐसे में उसके ब्रिक्स में शामिल होने से भारत की टेंशन बढ़ सकती है. मुस्लिम देशों का मसीहा बनने की कोशिश में तुर्की ने कई बार UN में कश्मीर का मुद्दा उठा चुका है. इसके अलावा तुर्की पाकिस्तान का खास दोस्त है और माना जा रहा है कि अगर तुर्की ब्रिक्स में शामिल होता है तो इससे चीन का प्रभाव बढ़ेगा. चीन और रूस मिलकर आक्रामक तरीके से ब्रिक्स का विस्तार कर रहे हैं और इसे पश्चिमी देशों के संगठन नाटो के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं, यानी माना जा सकता है कि इस विस्तार से भारत को नहीं बल्कि चीन को फायदा होगा.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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