दुनियां – उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा दुश्मन कौन, अमेरिका या साउथ कोरिया? – #INA
उत्तर कोरिया एक ऐसा मुल्क है जहां इसके जन्म से ही तानाशाही शासन रहा है. ज़ाहिरी तौर पर इस मुल्क के बारे में पूरी दुनिया को बहुत कम जानकारी है. लेकिन यह दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से है जो अक्सर सुर्खियों में रहता है. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की हर झलक, हर तस्वीर, हर एक्शन खबरें बन जाती हैं, बावजूद इसके यह देश दुनिया से कटा-कटा सा रहता है. चीन और रूस उत्तर कोरिया के सबसे अच्छे दोस्त माने जाते हैं लेकिन उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? यह जानने की कोशिश करेंगे हम कुछ तथ्यों और अतीत के घटनाक्रम के जरिए.
उत्तर कोरिया के सबसे बड़े दुश्मनों में अमेरिका और साउथ कोरिया की गिनती पहले होती है. दोनों के साथ इसकी अदावत दूसरे विश्व युद्ध के आस-पास शुरू हुई जो आज तक कायम है.
हालांकि उत्तर कोरिया और साउथ कोरिया दोनों पहले कोरिया महाद्वीप का हिस्सा थे, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के कब्ज़े से आजाद हुए. आज़ादी के बाद ये दोनों मुल्कों के बीच दुश्मनी और तनाव वैसा ही रहा जैसा हम भारत और पाकिस्तान के बीच देखते हैं, या कहें इससे भी एक कदम आगे.
वहीं अमेरिका के साथ उत्तर कोरिया की तल्खी की वजह तलाशें तो इसके लिए भी इतिहास के पन्नों को खंगालना पड़ेगा.
उत्तर कोरिया और साउथ कोरिया का बंटवारा
उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया पहले कोरिया महाद्वीप का हिस्सा थे, वर्ष 1905 में हुई एल्सा संधि ने कोरिया को जापान का संरक्षित क्षेत्र बना दिया. इसके 5 साल बाद वर्ष 1910 में जापान ने आधिकारिक तौर पर कोरिया पर अपना कब्जा जमा लिया. करीब 35 साल तक कोरिया ने गुलामी झेली, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ कोरिया की आज़ादी का सूरज निकला.
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अमेरिका और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के बीच की वर्चस्व की लड़ाई ने इसे दो भागों में बांट दिया. दरअसल 1939-1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भले ही अमेरिका और सोवियत संघ मित्र देशों के गुट में शामिल थे, लेकिन सामूहिक तौर इतनी बड़ी जंग जीतने के बाद भी दोनों मुल्क मित्र नहीं बन पाए. एक-दूसरे आगे बढ़ने की होड़ में दोनों ने दुनिया के बाकी देशों पर अपना प्रभाव बनाने की कोशिश की. उस समय जिन इलाकों में सोवियत संघ का प्रभाव था वह उत्तर कोरिया बना और जिस इलाके में अमेरिका का खासा असर था वह आज दक्षिण कोरिया के नाम से जाता है.
रूस और अमेरिका की वजह से बंटवारा?
दरअसल दिसंबर 1945 में मॉस्को कांफ्रेंस में सहमति बनी कि सोवियत संघ, चीन और ब्रिटेन मिलकर 5 साल तक कोरिया की प्रशासनिक देखरेख करेंगे और फिर उसे आजाद कर दिया जाएगा. लेकिन कोरिया के लोगों को ये मंजूर नहीं था. इसके बाद 1946-47 में अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर प्रशासन चलाने की कोशिश की इसे लेकर भी बात नहीं बनी.
अमेरिका ने मई 1948 में कोरिया में चुनाव करवाए, जिसमें उत्तर कोरिया वाले क्षेत्रों ने हिस्सा नहीं लिया. दक्षिणी हिस्से में हुए चुनाव के नतीजों के साथ ही दक्षिण कोरिया बनाने की घोषणा की गई. वहीं इसके कुछ महीने बाद सितंबर 1948 में सोवियत संघ ने उत्तरी हिस्से में चुनाव करवाए और उत्तर कोरिया बनाने का ऐलान किया गया.
कोरियाई युद्ध दुश्मनी की सबसे बड़ी वजह
उत्तर कोरिया पर शुरू से एक ही परिवार और एक ही विचारधारा का शासन रहा है. दोनों मुल्कों के बंटवारे के बाद 25 जून 1950 को उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जुल इंग ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया. अमेरिका ने UNSC से एक प्रस्ताव पारित करवा लिया और दक्षिण कोरिया की मदद के लिए 15 सहयोगी देशों की सेना जंग के मैदान में उतर आई. अमेरिका और उसके सहयोगियों ने इस युद्ध का रुख पलट दिया. उत्तर कोरिया जंग जीतते-जीतते हार गया. इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने उत्तर कोरिया की लगभग हर हिस्से पर बम बरसाया. तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री डेयान रस्क ने खुद स्वीकार किया था कि, ‘हमने हर हिलती हुई चीज पर बमबारी की.’
कोरियाई युद्ध में लाखों लोग मारे गए थे. (Image-Hulton Archive/Getty Images)
करीब 3 साल बाद खत्म हुए इस युद्ध में उत्तर कोरिया के लाखों लोग मारे गए, जिसे उत्तर कोरिया आज तक नहीं भूला. कोरियाई युद्ध ने जहां उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच दूरियों को और बढ़ा दिया तो वहीं इस जंग के साथ अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच दुश्मनी की भी शुरुआत हो गई.
उत्तर कोरिया और अमेरिका की अदावत
कोरियाई विश्वयुद्ध के साथ ही उत्तर कोरिया और अमेरिका की अदावत का दौर शुरू हुआ जो आज तक कायम है. कोरियाई युद्ध में उत्तर कोरिया के लाखों नागरिक मारे गए, स्कूलों, अस्पतालों समेत शहर के शहर तबाह हो गए. जिसे आज भी उत्तर कोरिया भूला नहीं है.
उत्तर कोरिया ने खुद को मजबूत और ताकतवर बनाने के लिए परमाणु हथियार बनाने शुरू कर दिया, जिसकी वजह से अमेरिका ने उस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इससे उत्तर कोरिया को काफी नुकसान उठाना पड़ा और उसकी पहुंच रूस-चीन समेत गिनती के देशों तक रह गई. हालांकि अमेरिका की लाख कोशिशों और प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया परमाणु हथियार बनाने में कामयाब रहा, सितंबर 2023 में उत्तर कोरिया ने खुद को न्यूक्लियर पावर घोषित कर दिया.
‘दुश्मनी’ की टाइमलाइन.
वहीं अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच दुश्मनी का आलम ये है कि उत्तर कोरिया में अमेरिकी गाने और फिल्में देखना भी मना है. यहां तक नीली रंग की जींस पहनने पर भी रोक है. ठीक इसी तरह की रोक दक्षिण कोरिया को लेकर भी है. उत्तर कोरिया में मानवाधिकारों पर हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक एक 22 साल के युवक को 7 दक्षिण कोरिया की फिल्में देखने और गाने सुनने की वजह से मौत की सज़ा दे दी गई थी.
दुश्मनी की बड़ी वजह वैचारिक मतभेद?
अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ उत्तर कोरिया की दुश्मनी की एक वजह वैचारिक मतभेद भी हैं. जहां एक ओर अमेरिका और दक्षिण कोरिया पूंजीवादी विचारधारा के देश हैं तो वहीं उत्तर कोरिया का झुकाव वामपंथी विचारधारा की ओर है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही उत्तर कोरिया पर सोवियत संघ का खासा प्रभाव रहा है. रूस और चीन के साथ इसकी दोस्ती भी अमेरिका के लिए चिंता का सबब रही है.
दक्षिण कोरिया के साथ ताज़ा टकराव
हाल ही में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच ‘बैलून वॉर’ देखने को मिला. मई के अंतिम सप्ताह में उत्तर कोरिया ने साउथ कोरिया में कूड़े से लदे सैंकड़ों बैलून गिराए. इस घटना ने कोरियाई युद्ध के दौरान चले प्रोपेगेंडा वॉर की याद को ताज़ा कर दिया.
दरअसल करीब 74 साल पहले हुए कोरियाई युद्ध के दौरान गुब्बारों की मदद से पर्चियां गिराई गईं थीं. दक्षिण कोरिया और संयुक्त राष्ट्र की सेना ने उत्तर कोरिया के इलाके में पर्चियां गिराईं इसके जवाब में उत्तर कोरिया ने भी दक्षिण कोरिया के इलाके में पर्चियां गिराईं. 1953 में जब युद्धविराम के लिए समझौता हुआ तब तक दोनों पक्षों की ओर से कुल 280 करोड़ पर्चे गिराए गए थे. इन पर्चियों में सरेंडर करने और एक-दूसरे की आलोचना करने वाले संदेश थे.
ट्रंप और किम की मुलाकात ने बटोरी थी सुर्खियां
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर कोरिया के साथ संबंधों को सामान्य करने की कोशिश की. दोनों नेताओं के बीच कई बार मुलाकात हुई. जब 30 जून 2019 को उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया की सरहद पर एक असैन्य क्षेत्र में डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन मिले तो इस मुलाकात ने काफी सुर्खियां बटोरीं थीं.
तानाशाह किम और डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात. (Image-API/Gamma-Rapho via Getty Images)
इससे पहले फरवरी 2019 में दोनों नेताओं की मुलाकात वियतनाम की राजधानी हनोई में हुई थी. ट्रंप प्रशासन उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को रोकने की कोशिश में जुटा हुआ था. हालांकि इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली और किम जोंग उन के साथ उनकी मुलाकातें बेनतीजा निकलीं.
मौजूदा समय में उत्तर कोरिया, अमेरिका के पक्के दुश्मनों चीन, रूस और ईरान के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत कर रहा है, जिससे अमेरिका और साउथ कोरिया के साथ दुश्मनी और गहरी होती जा रही है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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