दुनियां – खालिद मशाल…हमास का ‘जिंदा शहीद’, जिसे जहर देकर भी नहीं मार पाया था इजराइल – #INA
इजराइल ने हमास चीफ इस्माइल हानिया के बाद याह्या सिनवार को भी मार गिराया है. अब हमास का अगला चीफ कौन होगा इसे लेकर कई नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच सबसे मजबूत दावेदार है खालिद मशाल. खालिद पहले भी 21 सालों तक हमास की कमान संभाल चुका है, वह विदेशों में संगठन के आंदोलन का प्रमुख चेहरा है.
याह्या सिनवार के उलट खालिद मशाल की शख्सियत रणनीतिक तौर पर कुशल व्यक्ति की है. मशाल ने 1996 से 2017 तक हमास के पॉलिटिकल चीफ का पद संभाला, इसके बाद इस पद पर इस्माइल हानिया काबिज हो गए. हानिया की मौत के बाद भी माना जा रहा था कि खालिद मशाल को एक बार फिर संगठन की कमान मिल सकती है.
लेकिन तब हमास ने आक्रामक फैसला लेते हुए इजराइल के सबसे बड़े दुश्मन याह्या सिनवार को हमास के पॉलिटिकल विंग का चीफ बनाया. लेकिन सिनवार बुधवार को गाजा में एक सामान्य सैन्य ऑपरेशन के दौरान मारा गया. गुरुवार को इजराइली सेना ने DNA टेस्ट के बाद सिनवार की मौत की पुष्टि की, सिनवार की मौत के बाद चर्चा है कि खालिद मशाल एक बार फिर हमास चीफ बन सकते हैं.
खालिद मशाल: हमास का ‘जिंदा शहीद’
खालिद मशाल का जन्म 28 मई 1956 को वेस्ट बैंक के रामल्लाह के करीब सिलवाड नामक जगह पर हुआ था. छोटी उम्र से ही खालिद मशाल विद्रोही आंदोलनों से जुड़ने लगा, 15 साल की उम्र में ही वह ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ में शामिल हो गया. 1987 में हमास की स्थापना के समय से ही वह संगठन का सदस्य है. 1996 में जब खालिद मशाल को हमास का पॉलिटिकल चीफ बनाया गया था तो इजराइल ने इसके ठीक एक साल बाद ही मशाल की हत्या की साजिश रची.
इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद इस साजिश में काफी हद तक कामयाब भी हो गई लेकिन इस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि उसे खुद ही अपने दुश्मन को बचाना पड़ा. दरअसल 1994 से ही इजराइल में हमास ने आत्मघाती हमले कर नागरिकों को टारगेट करना शुरू कर दिया था. इसी के चलते प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 1997 में खालिद मशाल की हत्या के प्लान को मंजूरी दी.
ज़हर देकर भी नहीं मार पाया इजराइल
इस प्लान के तहत मोसाद के एजेंट्स ने खालिद मशाल को जहर का इंजेक्शन लगा दिया, जिससे उसकी हालत बिगड़ने लगी. खालिद मशाल को जब इजराइल ने जहर का इंजेक्शन दिया तब वह जॉर्डन के अम्मान में मौजूद था. इस दौरान मोसाद के दो एजेंट जो भागने की फिराक में थे वह पकड़े गए. जैसे ही इस पूरे मामले में इजराइल के होने का पता चला जॉर्डन के किंग हुसैन ने नेतन्याहू को फोन घुमा दिया. उन्होंने इजराइल के सामने शर्त रखी कि अगर इजराइल ने ज़हर का एंटीडोट मुहैया नहीं कराया तो वह दोनों एजेंट्स को फांसी पर लटका देंगे और 1994 में इजराइल-जॉर्डन के बीत हुई संधि को तोड़ देंगे.
इजराइल को देना पड़ा एंटीडोट
इसके बाद मामला बढ़ता चला गया, इधर खालिद मशाल की कुछ ही सांसें बची थीं तो उधर अमेरिका को भी उसे बचाने के लिए इजराइल को मनाना पड़ गया. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी इजराइल पर एंटीडोट देने को कहा. इसके बाद इजराइल को खालिद मशाल की जिंदगी बचाने के लिए न केवल अपने ही दिए ज़हर का एंटीडोट देना पड़ा बल्कि हमास नेता शेख अहमद यासीन को भी रिहा करना पड़ा.
दो दिन की जद्दोजहद के बाद खालिद मशाल को कोमा से होश आ गया. वह इजराइल के दिए ज़हर से बच गया. तभी से ‘खालिद मशाल’ को जिंदा शहीद के नाम से भी जाना जाता है.खालिद मशाल ने 2004 से 2012 तक सीरिया से हमास का संचालन किया था, इस दौरान सीरिया में हुए गृह युद्ध के चलते उसे दमिश्क का ठिकाना छोड़ना पड़ा. मौजूदा समय में खालिद मशाल कतर और मिस्र से संगठन के विदेशी आंदोलन का संचालन करता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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