दुनियां – क्या ट्रंप की नई टीम से होगा अमेरिका में कायापलट? बदल सकते हैं पूरी दुनिया के सत्ता समीकरण – #INA
डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीतकर अमेरिका के राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने की तैयारी शुरू कर दी है. इस दौरान वो अपने सलाहकारों और मंत्रियों की एक नई टीम भी बना रहे है. ट्रंप की टीम में कुछ नाम ऐसे हैं, जो बहुत ही अलग किस्म की पहचान रखते हैं. इसमें प्रमुख हैं- पूर्व डेमोक्रेट और कांग्रेसवूमेन रहीं तुलसी गबार्ड, जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक नियुक्त किया गया है. टेस्ला, स्पेसएक्स और सोशल मीडिया X के CEO एलन मस्क और व्यवसायी व राजनीति के उभरते चेहरे विवेक रामास्वामी को ‘Department of Government Efficiency (DOGE)’ की नेतृत्व सौंपा गया है.
इन तीनों ने अमेरिका की गुप्त एजेंसियों जैसे सीआईए, एफबीआई और अन्य सरकारी संस्थानों पर तीखे सवाल उठाए हैं, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी नियुक्ति से अमेरिकी सरकार के कामकाज में बड़े बदलाव हो सकते हैं. आइए इनके कुछ बयानों पर नजर डालते हैं, जो अमेरिकी संस्थाओं को लेकर इन्होंने सार्वजनिक तौर पर दिए हैं.
एलन मस्क: सरकार की पारदर्शिता और स्वतंत्रता पर बल
एलन मस्क अपने स्पष्ट और विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं. वो अक्सर सरकार की कार्यशैली, नौकरशाही और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों पर तीखी टिप्पणियां करते रहे हैं.
एलन मस्क. (फोटो-पीटीआई)
नवंबर 2022: मस्क ने ट्विटर का अधिग्रहण करने के बाद कुछ पोस्ट किए, जिनमें उन्होंने यह आरोप लगाया कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर गुप्त एजेंसियों का नियंत्रण होता है और उन्हें एक खास एजेंडे के तहत चलाया जाता है. उन्होंने कहा, डीप स्टेट की छाया सोशल मीडिया और मीडिया पर हावी है. उनका यह बयान सरकार के पारदर्शिता और नागरिकों की स्वतंत्रता के प्रति चिंता को दर्शाता है.
फरवरी 2023: मस्क ने सीआईए पर अमेरिका की विदेश नीति में अनावश्यक हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, सीआईए का अस्तित्व इसलिए है कि वह दूसरे देशों की संप्रभुता में हस्तक्षेप कर सके और हमें इसे बदलने की जरूरत है. मस्क का मानना है कि अमेरिका को अपने अंदरूनी हितों को साधते हुए दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
मई 2024: एक इंटरव्यू में मस्क ने फेडरल बैंक की नीतियों को लेकर सवाल उठाए और कहा कि बैंकिंग सिस्टम में सुधार होना चाहिए ताकि आम आदमी पर इसका बोझ न पड़े. उनका मानना है कि सरकारी एजेंसियां पारदर्शिता से दूर हैं और आम नागरिक के हित के बजाय कुछ खास वर्गों के हितों का ध्यान रखती हैं.
तुलसी गबार्ड: डीप स्टेट के खिलाफ एक सख्त आवाज
तुलसी गबार्ड, हवाई की पूर्व कांग्रेस सदस्य और डेमोक्रेटिक पार्टी की पूर्व सदस्य हैं. तुलसी ने भी सीआईए और अन्य अमेरिकी संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर अपनी कड़ी राय व्यक्त की है.
तुलसी गबार्ड. फोटो- पीटीआई.
सितंबर 2019: राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान तुलसी ने सीआईए पर आरोप लगाया कि यह एजेंसी अपने एजेंडे के तहत काम करती है और अमेरिका की जनता के हितों के बजाय विदेशी सरकारों के मामलों में हस्तक्षेप करती है. उनका यह बयान अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के प्रति उनके अविश्वास को दर्शाता है.
अक्टूबर 2020: तुलसी ने अमेरिका की पैट्रियट एक्ट जैसी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि ये नीतियां नागरिक स्वतंत्रता को दबाने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं. उन्होंने कहा, डीप स्टेट की शक्तियां अमेरिकी संविधान की अवहेलना कर रही हैं.उनका मानना है कि सीआईए जैसी एजेंसियां अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रही हैं और इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है.
जनवरी 2024: तुलसी ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर फिर से सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपनी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में ऐसे सुधार लाने की जरूरत है, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आ सके और विदेशी हस्तक्षेप कम हो.
विवेक रामास्वामी: अमेरिका की खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर कड़ा रुख
विवेक रामास्वामी एक युवा व्यवसायी और राजनीतिक विश्लेषक हैं, जिन्होंने अमेरिकी संस्थाओं पर खुलकर सवाल उठाए हैं.
विवेक रामास्वामी. (फोटो-पीटीआई)
जून 2023: एक टॉक शो में विवेक ने कहा, सीआईए, एफबीआई और अन्य संस्थाएं एक गुप्त सत्ता की तरह काम कर रही हैं, जो जनता के लिए जवाबदेह नहीं हैं. रामास्वामी का मानना है कि अमेरिकी एजेंसियां लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा हैं और उनकी नीतियां देश के भीतर और बाहर दोनों जगह हानिकारक प्रभाव डालती हैं.
सितंबर 2023: विवेक ने अमेरिका की विदेश नीति में सीआईए की भूमिका पर सवाल उठाया और कहा कि अमेरिका को दूसरे देशों में सत्ता पलट और अस्थिरता फैलाने से दूर रहना चाहिए. उनके अनुसार, यह नीति अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचाती है और लंबे समय में हानिकारक साबित होती है.
फरवरी 2024: एक इंटरव्यू में विवेक ने सुझाव दिया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों में व्यापक सुधार होने चाहिए ताकि ये संस्थाएं जनता के हित में काम करें. उन्होंने कहा, हमें अमेरिकी संस्थाओं को उनके गुप्त एजेंडे से दूर कर वास्तविक राष्ट्रीय हित में काम करने के लिए प्रेरित करना होगा.
आइए समझते हैं कि दोबारा राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी इस त्रिमूर्ति को क्या-क्या जिम्मेदारियां दी हैं और अमेरिकी सत्ता के गलियारों में इन नियुक्तियों को लेकर किस तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं.
तुलसी गबार्ड: इंटेलिजेंस चीफ के रूप में नई जिम्मेदारी
हवाई से पूर्व कांग्रेस सदस्य तुलसी गबार्ड ने हाल ही में डेमोक्रेट्स से नाता तोड़कर ट्रंप के चुनाव का खुलकर समर्थन किया था. उन्हें अब अमेरिका की खुफिया एजेंसियों का प्रमुख बनाया गया है. तुलसी गबार्ड अब Director of National Intelligence के रूप में 18 खुफिया एजेंसियों के समन्वय का कार्यभार संभालेंगी.
गबार्ड लंबे समय से अमेरिकी हस्तक्षेपकारी नीतियों की कट्टर आलोचक रही हैं. उनकी विचारधारा पारंपरिक अमेरिकी नीति से काफी अलग मानी जाती है. उन्होंने पहले भी रूस और अन्य अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों के पक्ष में टिप्पणियां की हैं, जिनसे यह संकेत मिलता है कि वह खुफिया एजेंसियों के कामकाज को नए दृष्टिकोण से देख सकती हैं.
मुख्य कार्य:
सभी 18 अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का समन्वय सुनिश्चित करना
अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेपकारी नीतियों में कमी लाने पर ध्यान देना
खुफिया तंत्र में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए सुधार लागू करना
प्रतिक्रियाएं:
तुलसी की नियुक्ति को लेकर सत्ता से जुड़े लोगों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं. उनके समर्थक मानते हैं कि तुलसी एक निष्पक्ष और संतुलित खुफिया नीति ला सकती हैं, जो अमेरिकी हस्तक्षेपकारी छवि को बदल सकती है. वहीं, आलोचक उनके अतीत के बयानों को लेकर चिंतित हैं, विशेष रूप से उनके रूस समर्थक विचारों को लेकर, जो अमेरिका की सुरक्षा नीति में अस्थिरता ला सकते हैं.
एलन मस्क और विवेक रामास्वामी: सरकारी दक्षता विभाग का गठन और नेतृत्व
ट्रंप ने अपनी नई टीम में टेस्ला के सीईओ एलन मस्क और उद्यमी विवेक रामास्वामी को Department of Government Efficiency (DOGE) का प्रमुख बनाया है. यह विभाग अमेरिकी प्रशासनिक ढांचे को सुधारने के उद्देश्य से बनाया गया है, और इसका मकसद सरकारी नौकरशाही को खत्म करना, अनावश्यक नियमों में कटौती करना, गैर-जरूरी खर्चों को खत्म करना और संघीय एजेंसियों के पुनर्गठन पर जोर देना है.
मुख्य कार्य:
सरकारी नियमों और नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाना
सरकारी खर्चों को कम करने के लिए रणनीतियां लागू करना
संघीय एजेंसियों के पुनर्गठन की योजना तैयार करना ताकि प्रशासनिक दक्षता में सुधार हो सके
प्रतिक्रियाएं:
मस्क और रामास्वामी को यह जिम्मेदारी मिलने पर अमेरिका में राजनीति से जुड़े लोगों की ओर से विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. उनके समर्थक मानते हैं कि मस्क की नई और क्रांतिकारी सोच और रामास्वामी के आर्थिक दृष्टिकोण से प्रशासन में आवश्यक सुधार हो सकते हैं. वहीं, विरोधी मानते हैं कि इस कदम से सरकारी ढांचे में अस्थिरता आ सकती है और कुछ जरूरी सरकारी प्रक्रियाएं प्रभावित हो सकती हैं.
क्या ट्रंप की नई टीम से अमेरिका का कायापलट होगा?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ट्रंप की नई टीम सत्ता में आने के बाद अमेरिकी नीतियों में वास्तविक परिवर्तन लाएगी? हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता में आने के बाद इनकी असली परीक्षा होगी. अमेरिकी प्रशासन में गहरी पैठ रखने वाले डीप स्टेट की ताकत इतनी जल्दी कमजोर नहीं होगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप की टीम किस हद तक अपने विचारों को लागू कर पाती है.
अगर यह टीम अपने सिद्धांतों पर अमल कर सकी तो संभव है कि अमेरिका की विदेशी नीतियों में बदलाव आएगा और वह दूसरे देशों में अस्थिरता फैलाने जैसी नीतियों से दूर रहेगा. दूसरी ओर, अगर इन नेताओं को भी सत्ता के दबाव के आगे झुकना पड़ा तो अमेरिका का परंपरागत हस्तक्षेपकारी रुख जारी रहेगा.
अमेरिका के कुछ पुराने राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि इतनी बड़ी जिम्मेदारियां निभाने में इन तीनों का स्वतंत्र दृष्टिकोण प्रशासनिक ढांचे में अस्थिरता ला सकता है. कुछ आलोचकों का यह भी मानना है कि इतनी जल्दबाजी में नए विभाग का गठन और इन विचारधाराओं का लागू होना अमेरिका की सुरक्षा और वैश्विक प्रतिष्ठा के लिए चुनौती बन सकता है.
ट्रंप की टीम से अमेरिका की वैश्विक भूमिका पर होगा असर!
ट्रंप की नयी टीम के फैसलों पर निर्भर करेगा कि अमेरिका की विदेश नीति में कितना बदलाव आता है? क्या अमेरिका अब दूसरे देशों में सत्ता परिवर्तन या हस्तक्षेपकारी नीतियों से बचेगा? सीआईए जैसी एजेंसियां लंबे समय से दुनिया भर में सत्ता पलट और जासूसी गतिविधियों के लिए कुख्यात रही है.
विवेक रामास्वामी और तुलसी गबार्ड का कहना है कि अमेरिका की इन नीतियों की वजह से दुनिया भर में अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचा है, जिसे बदलने की जरूरत है. उनके मुताबिक, अमेरिका को वैश्विक मंच पर एक आदर्श छवि स्थापित करनी चाहिए और दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचना चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो दुनिया में अमेरिका के वर्चस्व से लेकर भू-राजनीतिक समीकरणों में काफी बदलाव देखने को मिल सकता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कामकाज शुरू करने के बाद ट्रंप के ये नये कमांडर अपनी बातों पर टिके रहते हैं या फिर सत्ता के दवाब में उन्हें भी पुराने तरीकों को ही मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है. अमेरिकी सत्ता पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि अमेरिका का राजनीतिक ढांचा और वहां मौजूद ताकतवर लॉबी समूह इतनी जल्दी किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार नहीं करने वाला है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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