Political – J&K चुनावः पहले चरण में इल्तिजा मुफ्ती, वहीद पारा, यूसुफ तारीगामी, शगुन परिहार जैसे चेहरों की साख दांव पर- #INA

इल्तिजा मुफ्ती, एमवाई तारीगामी, गुलाम अहमद मीर, शगुन परिहार

10 साल बाद जम्मू कश्मीर अपने विधायक चुनने के लिए वोट डालने जा रहा. 2014 में जब आखिरी बार एक राज्य के तौर पर यहां चुनाव हुआ था, तो कुल सीटें 87 थीं और पांच चरण में चुनाव हो पाया था. 370 हटने, केंद्रशासित प्रदेश बनने और परिसीमन के बाद अब सीटों की संख्या 90 हो गई है. चुनाव पांच के बजाय तीन चरण में ही कराए जा रहे. पहले चरण की 24 सीटों (जम्मू की 8 और कश्मीर की 16) के लिए चुनाव प्रचार थम चुका है. कुछ घंटे बाद, 18 सितंबर (बुधवार) को इन पर वोटिंग होनी है जिसके बाद महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती, कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्ष, आतंकी हमलों के शिकार रही भाजपा और नेशनल कांफ्रेंस की महिला कैंडिडेट्स के किस्मत का फैसला हो जाएगा.

मोटे तौर पर इस चरण में कश्मीर में चुनाव नेशनल कांफ्रेंस बनाम पीडीपी और जम्मू में भाजपा बनाम कांग्रेस है. हालांकि, 40 फीसदी से भी ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवारों की मौजूदगी इन पार्टियों की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. पहले चरण में कश्मीर की जिन 16 सीटों पर वोट होगा, ये दक्षिणी कश्मीर की हैं. 2014 के चुनाव तक या दूसरे लफ्जों में कहें तो भाजपा के साथ सरकार बनाने से पहले तलक यह पूरा इलाका पीडीपी का गढ़ हुआ करता था. तब पीडीपी ने इस क्षेत्र की 11 सीटों पर जीत दर्ज किया था. वहीं, जम्मू में पहले चरण का चुनाव चेनाब घाटी (रामबन, डोडा, किश्तवाड़) में है. यहां 2008 तक तो कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का बोलबाला था मगर 2014 से बीजेपी को बढ़त रहा है.

आइये एक नजर जम्मू और कश्मीर के उन प्रमुख नामों पर डालें जिनकी साख पहले चरण में दांव पर लगी हुई है –

1. इल्तिजा मुफ्ती – मुफ्ती सरनेम से तो सभी वाकिफ थे. लेकिन अब तक इस सरनेम के आगे पीछे महबूबा और मोहम्मद सईद सुनने की आदत थी. लेकिन इस चुनाव में न सिर्फ श्रीनगर बल्कि दिल्ली को एक नया नाम मिला – इल्तिजा. महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा परिवार के गढ़ श्रीगुफवारा-बिजबेहारा सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के बशीर वीरी के सामने हैं. 37 साल की इल्तिजा राजनीति में तब दाखिल हो रही हैं जब पीडीपी के सितारे गर्दिश में है. जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद जब महबूबा मुफ्ती को नजरबंद किया गया, तब से ही इल्तिजा अपनी मां का पक्ष मीडिया में रखती रही हैं.

2. वहीद उर रहमान पारा – यूएपीए के तरह 19 महीने जेल में बिताने के बाद वहीद उर रहमान पारा पुलवामा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. पारा पिछले लोकसभा चुनाव में श्रीनगर से पीडीपी के कैंडिडेट थे मगर वह नेशनल कांफ्रेंस के आगा सईद मेहंदी को हरा नहीं सके. अब विधानसभा चुनाव में वहीद का मुकाबला नेशनल कांफ्रेंस के मोहम्मद खलील से है. खलील एनसी जॉइन करने से पहले पीडीपी में ही हुआ करते थे. खलील के अलावा तलत माजिद के खड़े हो जाने से यहां चुनाव रोचक हो गया है. काफी पढ़े-लिखे, पीएचडी की डिग्री रखने वाले माजिद को प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी और इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी का भी साथ मिल रहा है.

3. गुलाम अहमद मीर – जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके गुलाम अहमद मीर जिस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे, वहां भी पहले चरण ही में वोट डाले जाएंगे. दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले की दूरू सीट से मीर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. मीर दो बार विधायक रह चुके हैं. मीर के कद का अंदाजा इससे भी लगाया जाना चाहिए कि राहुल गांधी ने सूबे में प्रचार अभियान की शुरुआत इन्हीं के सीट से की. मीर का यहां मुकाबला पीडीपी के मोहम्मद अशरफ मलिक से है. मीर पिछले विधानसभा चुनाव में यहां महज 161 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे. तब पीडीपी के सईद फारूक अहमद अंद्राबी ने जीत दर्ज किया था.

4. एमवाई तारीगामी – सीपीएम का झंडा जम्मू कश्मीर में भले अब न के बराबर दिखता हो, मगर 1996 के विधानसभा चुनाव ही से दक्षिण कश्मीर की कुलगाम सीट पर लगातार मोहम्मद यूसुफ पार्टी का लाल पताका फहराये हुए हैं. अगर इस दफा भी वह चुनाव जीतते हैं तो यह उनकी लगातार चौथी जीत होगी. गठबंधन की वजह से तारीगामी को कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का समर्थन हासिल है. बावजूद इसके, उनकी राह इतनी भी हमवार नहीं है. उनके सामने प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी के आजाद उम्मीदवार सायर अहमद रेशी के खड़े हो जाने से मामला कांटे का हो गया है.

5. विकार रसूल वानी – कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन में होते हुए भी कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट में हैं. इन्ही में से एक सीट है, रामबन जिले की बनिहाल. इस सीट से जम्मू कश्मीर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष विकार रसूल वानी ताल ठोक रहे हैं. रसूल वही नेता हैं जिनके एक बयान की वजह से इस चुनाव में एनसी और कांग्रेस के बीच दरार की स्थिति तक आ गई. ये तब हुआ जब रसूल वानी ने अपने चुनाव प्रचार में कह दिया कि नेशनल कांफ्रेंस के झंडे का लाल रंग कश्मीरियों, खासकर बनिहाल के लोगों के खून से सना है. वानी का मुकाबला बनिहाल में पीडीपी के इमतियाज अहमद, नेशनल कांफ्रेंस के सजाद शाहीन और बीजेपी के सलीम भट्ट से है. वह 2008, 2014 में इस सीट से विधायक रह चुके हैं.

6. शगुन परिहार – जम्मू संभाग के अंतर्गत आने वाली किश्तवाड़ सीट की चर्चा भाजपा उम्मीदवार शगुन परिहार की वजह से खूब है. इसकी वजह है शगुन का एक खास परिचय. उनके पिता और चाचा की आतंकी हमले में जान चली गई थी. भाजपा शगुन को जम्मू-कश्मीर में “आतंकवाद को खत्म करने के भाजपा के इरादों की जीती जागती तस्वीर” के तौर पर पेश कर रही है. शगुन के चाचा अनिल परिहार जम्मू कश्मीर भाजपा के सचिव थे. 6 साल पहले, नवंबर 2018 में उनकी शगुन के पिता अजीत परिहार के साथ हत्या कर दी गई थी. शगुन का यहां मुकाबला नेशनल कांफ्रेंस के सज्जाद अहमद और पीडपी के फिरदौस अहमद से है.

7. सकीना मसूद इट्टू – पहले चरण के चुनाव के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने जिन दो महिलाओं को टिकट दिया, उनमें एक सकीना इट्टू का था. सकीना दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले की डीएच पोरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. सकीना पहले नूराबाद सीट से 1996 और 2008 में विधायक रह चुकी हैं. सकीना से पहले उनके पिता वाली मोहम्मद इट्टू इस सीट से चुनाव जीता करते थे. वह 1972 से लेकर 1994 में उनकी हत्या हो जाने तक लगातार 4 बार इस सीट से विधायक चुने गए. उनकी विरासत मेडिकल की पढ़ाई कर रही सकीना ने संभाला. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह कम से कम 15 बार आतंकियों के निशाने से बची हैं. इट्टू का मुकाबला यहां पीडीपी के गुलजार अहमद डार से है.

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