Political – कहानी देवेंद्र फडणवीस की, जो 10 साल में BJP के चेहरे से परिपक्व राजनेता बन गए- #INA

देवेंद्र फडणवीस

2014 में दिल्ली का चेहरा बन मुंबई की सियासत में सुर्खियां बटोरने वाले देवेंद्र फडणवीस अब एक परिपक्व नेता बन चुके हैं. इस बात की गवाही फडणवीस की पॉलिटिकल एक्टिविटी और उनके बयान दे रहे हैं. कभी बात-बात पर सियासी बखे़ड़ा खड़ा करने वाले फडणवीस अब नाप-तौल कर बोलते हैं.

सियासत में कब किसे किस बात के लिए क्रेडिट देना है? फडणवीस अब इसे भी अच्छे तरीके से जान गए हैं. यही वजह है कि जब महाराष्ट्र में बीजेपी ने क्लीन स्विप किया तो फडणवीस सबसे पहले केंद्रीय हाईकमान की तारीफ करते नजर आए. इतना ही नहीं, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर फडणवीस ने यह भी साफ कर दिया कि मैं मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल नहीं हूं.

सवाल उठ रहे हैं कि आखिर 10 साल में ऐसा क्या बदलाव आया है, जो दिल्ली का एक चेहरा अब परिपक्व नेता बन गया है?

अध्यक्ष और फिर मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी

2013 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री दावेदार बनते ही महाराष्ट्र में बीजेपी की कमान देवेंद्र फडणवीस को सौंप दी गई. फडणवीस उस वक्त 43 साल के थे. कहा जाता है कि फडणवीस के नाम की सिफारिश संघ की तरफ से की गई थी. फडणवीस नागपुर के ही रहने वाले हैं, जहां संघ का मुख्यालय है.

कहा जाता है कि उस वक्त महाराष्ट्र में अध्यक्ष को लेकर पेच फंसा था. गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी अपने-अपने गुट के नेता को इस पद पर काबिज कराना चाहते थे, लेकिन फडणवीस को न्यूट्रल होने का फायदा मिला.

अध्यक्ष बनने के बाद फडणवीस ने महाराष्ट्र में बीजेपी के कील-कांटे दुरुस्त करना शुरू कर दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी, बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में भी एनडीए गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की. इसके ठीक 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

बहुमत से दूर बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. महाराष्ट्र में बीजेपी का यह फैसला दो मायनों में अहम था. पहला, फडणवीस बहुत लोकप्रिय चेहरा नहीं थे. उन्हें राज्य में संगठन का नेता माना जाता था. दूसरा देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

आमतौर पर महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी मराठा और ओबीसी के बीच ही जाती रही है.

तुनकमिजाजी और फायरब्रांड देवेंद्र

देवेंद्र फडणवीस पूरे 5 साल तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान उनकी तुनकमिजाजी और फ्रायरब्रांड वाली छवि महाराष्ट्र की सियासत में सुर्खियों में रही. मुख्यमंत्री रहते फडणवीस कभी किसी नेता और अधिकारी पर मीडिया के सामने भड़क जाते तो कभी नेताओं को मानहानि का धमकी देते.

2016 में देवेंद्र फडणवीस अपने ही कैबिनेट सहयोगी विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे से एक-एक विभाग छिन लेते हैं. यह मसला उस वक्त इतना तूल पकड़ता है कि दिल्ली को दखल देना पड़ता है. दरअसल, मुंडे और तावड़े दोनों ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे.

मुख्यमंत्री रहते फडणवीस अपने विरोधियों पर तल्ख टिप्पणी की वजह से भी सुर्खियों में रहे हैं. उन्होंने राज ठाकरे को गली छाप गुंडा की उपाधि दी थी तो अजित पवार को सरकार में आने पर जेल में डालने की बात कही थी.

अधीर छवि के देवेंद्र फडणवीस

लोकसभा चुनाव 2019 में देवेंद्र फडणवीस ही बीजेपी की सियासत के केंद्र में रहे, लेकिन चुनाव के बाद बदले समीकरण में फडणवीस के हाथ से कुर्सी चली गई. सीएम की कुर्सी जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस इसे वापस पाने की जद्दोजहद में जुट गए. उस वक्त महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू था.

कहा जाता है कि कांग्रेस के अहमद पटेल और शरद पवार किसी भी तरह राष्ट्रपति शासन हटाना चाहते थे, जिससे महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार का गठन हो सके, लेकिन यह इतना आसान नहीं था.

इसी बीच एक राजनीति घटना होती है और देवेंद्र फडणवीस अजित पवार के साथ अहले सुबह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेते हैं. हालांकि, जब बहुमत साबित करने की बात आती है तो अजित चाचा के खेमे में वापस लौट जाते हैं.

एक इंटरव्यू में फडणवीस ने इसे शरद पवार का ट्रैप बताया था. महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा थी कि पवार और अहमद पटेल ने मिलकर अजित को फडणवीस के पास भेजा था, जिससे राष्ट्रपति शासन तुरंत हट सके.

2023 में देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार से इसका सूद समेत बदला ले लिया. फडणवीस इस साल अजित के साथ-साथ एनसीपी के 40 विधायकों को भी अपने पाले में साथ ले आए.

और अब परिपक्व राजनेता बनने की कहानी

देवेंद्र फडणवीस अब पूरी तरह परिपक्व राजनेता बन गए हैं. उनका बयान ही महाराष्ट्र बीजेपी का आखिरी बयान माना जाता है. फडणवीस मुख्यमंत्री के दावेदार हैं लेकिन अब पहले की तरह इसे जता नहीं रहे हैं.

फडणवीस अब सीधे सियासी बिसात पर दांव चलने की बजाय पर्दे के पीछे से दांव खेल रहे हैं. इस बदलाव के पीछे की बड़ी वजह महाराष्ट्र की सियासी हवा है. फडणवीस एक बात जानते हैं कि महाराष्ट्र की सियासत गठबंधन के इर्द-गिर्द ही घूमती है. यहां किसी से न ज्यादा दोस्ती अच्छी है और न किसी से दुश्मनी.

सड़क छाप गुंडे राज ठाकरे अब उनके दोस्त हैं. फडणवीस इस बात को भी जान गए हैं कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से ज्यादा महत्वपूर्ण है, शक्ति में रहना.

इन्हीं वजहों से अब फडणवीस बदले-बदले नजर आते हैं. 2014 से तो बिल्कुल उलट.

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