Political – मई के बाद बैकफुट पर आई बीजेपी कैसे फुल कॉन्फिडेंस में आ गई- #INA

महाराष्ट्र में भाजपा ने पांच महीने में ही हवा बदल दी और नया रिकॉर्ड कायम किया.

महाराष्ट्र में महायुति की प्रचंड जीत ने सारे कयास और समीकरण ध्वस्त कर दिए. गठबंधन को यहां 288 में से 231 सीटों पर जीत मिली. यह अपने आप में खास इसलिए है, क्योंकि पांच महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को महाराष्ट्र में करारा झटका लगा था. इसके बाद विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को पूरी उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में वह महायुति को क्लीन बोल्ड कर देगी. हुआ इससे उलट और बेहतरीन स्ट्राइक रेट के साथ न सिर्फ भाजपा ने वापसी की, बल्कि महायुति गठबंधन की जीत की कहानी लिख दी.

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा को तगड़ा झटका लगा था. यहां की 48 लोकसभा सीट में से 30 सीटों पर कांग्रेस नीति महाविकास अघाड़ी को जीत मिली थी, जबकि महायुति गठबंधन ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. एक सीट अन्य के खाते में गई थी. इसके बाद पार्टी बैकफुट पर आ गई थी, लेकिनठीक पांच माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बंपर वापसी की. इस बार महायुति गठबंधन को मिली 231 सीटों में से 132 सीटें अकेले बीजेपी की है. यहां भाजपा 145 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. भाजपा के इस प्रदर्शन की राजनीतिक विश्लेषकों ने भी कल्पना नहीं की थी.

वो 5 कारण, जिनसे भाजपा ने बदली महाराष्ट्र की हवा?

1- संविधान का नरैटिव पलटा

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र का जनादेश भाजपा के लिए बड़ा झटका था. पार्टी को इस हश्र की उम्मीद नहीं थी. ऐसे में भाजपा ने यहां की हवा बदलने में पूरी ताकत झोंक दी. इसके उलट विपक्षी गठबंधन लोकसभा चुनाव के नतीजों को ही विधानसभा चुनाव में जीत की गारंटी मानने लगा. भाजपा ने सबसे पहले विपक्ष के संविधान को बनाए गए नरैटिव की हवा निकाली. इसकी कमान खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने संभाली और देश भर में हर मंच से उन्होंने ये मुद्दा उठाया कि कांग्रेस बरगला रही है. वह अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में सफल भी रहे. राजनीतिक विश्लेकों की मानें तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान संविधान बचाओ के नरैटिव ने ही पहुंचाया था. इसके चलते ही यहां बौद्ध व अन्य एससी एसटी बीजेपी ने छिटका, लेकिन जब इस मुद्दे की हवा निकली तो यह वोट बैंक फिर भाजपा के साथ हो लिया.

2- लाडली बहन योजना

संविधान को लेकर फैलाए गए नरैटिव बाद भाजपा का अगला ध्यान महिला वोट बैंक था. इसके लिए पार्टी ने प्लानिंग के साथ लाडली बहन योजना का प्रचार प्रसार किया. लोकसभा चुनाव से विधानसभा चुनाव के बीच 5 माह में ही महिलाओं के खाते में योजना की 4 किस्तें पहुंचाईं गईं. पहले यह राशि 1000 रुपये थी, जिसे 250 रुपये बढ़ाया गया और आखिर में 1500 कर दिया गया. यह दांव काम आया और इस बार विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने घर से निकलकर बंपर मतदान किया.

3- बंटेंगे तो कटेंगे-एक हैं तो सेफ हैं का नारा

महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा के कॉन्फिडेंस की तीसरी वजह बने वो नारे जिन्होंने काफी हद तक हिंदी वोट बैंक को एकजुट किया. पहले यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे का नारा देकर महाराष्ट्र की राजनीति का माहौल गरम कर दिया. यह नारा महाराष्ट्र में इतना गूंजा कि पार्टी के ही कुछ नेताओं ने इसे ध्येय वाक्य बना लिया. हालांकि कुछ नेता ये भी मान रहे थे कि नारा डैमेज भी कर सकता है, इसलिए बीजेपी की सहयोगी पार्टी एनसीपी के अजित पवार, पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण जैसे नेता इसके विरोध भी आए, लेकिन पार्टी अपने नारे पर कायम रही. जब बवाल ज्यादा बढ़ा तो पीएम नरेंद्र मोदी ने एक हैं तो सेफ हैं का नारा देगर सीएम योगी के नारे को न सिर्फ मूक सहमति दी, बल्कि दूसरे शब्दों में वह लोगों को संदेश देने में कामयाब हो गए कि जो लोग जाति धर्म के नाम पर बांट रहे हैं उन्हें जवाब दिया जाए. इसका असर चुनाव में दिखा और बीजेपी को एकतरफा वोट मिला.

4- सबका साथ सबका विकास फॉर्मूला

महाराष्ट्र में बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं नारे के बावजूद भाजपा ने कहीं भी इन नारों का गलत अर्थ नहीं जाने दिया. पार्टी पूरी तरह से सबका साथ सबका विकास फॉर्मूले पर फोकस किए रही. चुनाव से ठीक पहले सीएम शिंदे ने मदरसा शिक्षकों की सैलरी बढ़ाकर ये संदेश देने की भी कोशिश की महाराष्ट्र सरकार और महायुति गठबंधन मुस्लिम विरोधी नहीं है. इसका असर मुस्लिम वोटों पर पड़ा. लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों की जो संख्या 65 से 70 फीसदी थी, वो इस बार घटकर 35 से 40 फीसदी ही रह गई थी.

5- किसानों को खुश करने की रणनीति

पीएम जनधन योजना के साथ ही महाराष्ट्र के किसानों को खुश करने के लिए महायुति सरकार ने लगातार काम किए. सरकार ने न सिर्फ अपनी स्थिति को सुधारा बल्कि लोगों को ये विश्वास दिलाया कि वह किसानों के साथ है. भाजपा ने यहां कपास और सोयाबीन किसानों को राहत देने के लिए काम किया. इसके अलावा उत्तरी महाराष्ट्र में किसान प्याज पर लगे निर्यात पर प्रतिबंध से नाराज थे, जिन पर सरकार नीतियां लाई, जिसका उसे चुनाव में लाभ मिला.

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