यूपी- क्या याद हैं मासूम रजा? महाभारत सीरियल की स्क्रिप्ट लिखने वाले की कहानी, जिसे भूल गए… चलिए उनके गांव – INA

“हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद” के साथ अनेक गजल और काव्य संग्रह के साथ ही महाभारत जैसे धारावाहिक की पटकथा लिखकर, देश के उन चुनिंदा लोगों में शुमार होने वाले राही मासूम रजा जिनकी बराबरी करने वाला कोई नही था और इसके साथ साथ ही आधुनिक वेदव्यास भी बन गए थे. आज उसी शखसियत की यौमे पैदाइश का दिन है. लेकिन रविवार को जहां पूरा देश उनके जन्मदिन पर कार्यक्रम कर उन्हे याद कर रहा है. वहीं अपने गृह जनपद में जन्मदिन के दिन भी उन्हें कोई याद करने वाला नहीं है.

जनपद गाजीपुर का गंगौली गांव जहां की माटी में पले बढ़े और अपने हर उपन्यासों में गंगौली गांव का जिक्र करने वाले सैयद राही मासूम रजा जिन्होंने अपने जीवन काल मे कई उपन्यास लिखे. जिनमें “आधा गांव” और ” नीम का पेड़” के साथ कई अन्य किताबें भी हैं. देखा जाए तो महाभारत जैसे धारावाहिक की पटकथा लिखकर वह आधुनिक वेद व्यास भी बन गए. अपने हर उपन्यास में अपने कलमों के माध्यम से गंगौली को याद करने वाले राही को उनके ही परिवारिक सदस्यों और गांववासियों ने भुला दिया है.

क्यों राही मासूम रजा को भूल रहे अपने लोग?

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उनके जन्मदिन के अवसर पर हर ओर बस एक ही आवाज सुनाई दे रही है कि मैं सैयद मासूम रजा आब्दी बहुत परेशान हूं कि आखिर मैं कहां का रहने वाला हूं. मेरे दादा आजमगढ के ठेकमा बिजौली के रहने वाले थे. जिसे मैंने देखा नहीं, मैं तो गंगौली का ही हूं. उसी को जानता हूं. मैं उस नील के गोदाम का हूं जिसे जान गिलक्रिस्ट ने बनवाया था. मैं उस गड़ही का हूं जिसे गंगा की तरह गंगौली को गोद में ले रखा है. मैं उन करघा की उन आवाजों का हूं जो दिन रात चलते रहते हैं और कभी नहीं रूकते. उन्हीं खटर पटर की आवाजों के बीच मैंने कई रचनाओं को कलमबद्ध किया लेकिन आज उन्हीं लोगों ने हमें भुला दिया. कहना ही पड़ता है कि मै गाजीपुर का हूं, गंगौली से मेरा संबंध अटूट है. गंगौली से इतना प्यार करने वाले महान साहित्कार डा0 राही मासूम रजा को आज अपने ही लोग भूल गये.

गांव के लोगों ने क्या कहा?

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इतना ही नहीं बल्कि लोग तो यहां तक कहते दिखे की जब बड़े इंसान बन गए तो उन्हे अपना गांव तक याद नहीं रहा तो गांव वाले उन्हें क्यूं याद करें. इतना ही नहीं उनके परिवार की पूर्व विधायिका सैयद शादाब फातिमा जो उनके ही परिवार की है, अपने विधायक निधि से मासूम साहब के नाम पर एक रुपए का बजट देकर कोई निर्माण तक नहीं कराया. एक तरफ जहां इस महान शख्सियत को लोगों ने भुला दिया है. वहीं मात्र जनपद के बड़े लेखक तथा इतिहासविद उबैदुर्रहमान ने उनके जीवन से जुड़ी कई यादों को ताजा किया.

क्या बोले उबैदुर्रहमान?

उबैदुर्रहमान ने बताया कि उर्दू साहित्य से लगाव होने के बाद भी उन्होंने 1857 के गदर को क्रांतिकथा जैसे महाकाव्य का रूप दिया, जो अपने में एक अनूठा इतिहास है. वो सिनेमा में कई गाने और डायलॉग लिखने के साथ ही महाभारत की पटकथा लिख अमर हो गए. बीबीसी ईस्ट एशिया की गिलियन राइट ने उनके “आधा गांव” को अंग्रेजी भाषा में “हाफ द विलेज” अनुवाद करके, राही जी को बड़ी श्रद्धांजलि देने का काम किया. एक बात तो तय है कि आज उन्हें कोई याद करे या न करे, राही मरने वाले नहीं हैं. आज उनके यौमे पैदाइश पर भले ही किसी ने याद नहीं किया लेकिन इतना तो है कि नगर पालिका परिषद गाजीपुर ने उनके नाम की एक सड़क बैधनाथ चौराहा से मोहल्ला बरबराहना तक, जहां राही का बाल्यकाल और जवानी बीती थी, उनके नाम कर सही में खिराजे अकीदत पेश करने का काम किया है.

राही मासूम रजा की याद में उनके गांव में किसी भी तरह के कार्यक्रम का आयोजन नहीं होने के संबंध में गांव के ही रहने वाले युवक हैदर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अभी मोहर्रम का महीना चल रहा है, ऐसे में 50वें से पहले कोई भी खुशी के कार्यक्रम का आयोजन धार्मिक नीतियों के अनुसार नहीं हो सकता है.


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