सेहत – नाक में तेल लगाने से क्या ठीक होता है दिमागी बीमारियाँ और तनाव? काफी मशहूर है नास्य विधि

रिपोर्ट- सन्नन्दन उपाध्याय

बलिया: पूरी दुनिया में दिमाग को शांत करने के कई तरीके प्रचलित हैं, लेकिन आयुर्वेद में मौजूद एक अनोखा तरीका भी काफी प्रचलित है। आयुर्वेद में “नास्य” विधि का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें नाक के माध्यम से औषधीय तेल या अन्य तरल पदार्थों से पदार्थों का इलाज किया जाता है। इसे केवल नाक और साइनस की समस्याओं के लिए नहीं बल्कि मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के उपचार में भी प्रभावी माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, नासिका विधि, मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को शुद्ध करने का एक शक्तिशाली तरीका है, जो मानसिक विकारों, सिरदर्द, और स्मृति संबंधी समस्याओं को ठीक करने में मदद करता है। आयुर्वेदाचार्य इस विधि की प्रक्रिया और इसके लाभों के विवरण से जुड़े हुए हैं।

नास्य विधि क्या है
नास्य विधि पंचकर्म की पांच प्रमुख अभ्यावेदन में से एक है। इसका उद्देश्य शरीर के ऊपरी हिस्से का शुद्ध होना है। इस विधि में औषधीय तेल, घी या अन्य पदार्थों को शरीर के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है। नाक को “द्वार” माना जाता है जिसके माध्यम से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र तक दवाओं को पहुंचाया जा सकता है। आयुर्वेद में कहा गया है कि “नासा ही शिरसो द्वारम्।” यानि नाक हमारे मस्तिष्क का प्रवेश द्वार है।

नास्य विधि कैसे काम करती है

1. नाक और कान का कनेक्शन: आयुर्वेद के अनुसार, नाक का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। नाक के माध्यम से डाले गए औषधीय तेल मस्तिष्क के उन सिद्धांतों तक पहुँचते हैं जो तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करते हैं। इससे मानसिक विकार, तनाव और अन्य मानसिक विकारों का इलाज किया जा सकता है।

2. तंत्रिका तंत्र को आरंभ करना: नास्य विधि का मुख्य उद्देश्य तंत्रिका तंत्र को प्रारंभ करना है। इसमें प्रयुक्त तेल तंत्रिकाओं को पोषण प्रदान करते हैं और उन्हें स्वस्थ रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप मानसिक शांति और स्पष्टता प्राप्त होती है।

3.वात दोष को नियंत्रित करना: आयुर्वेद में तीन दोष (वात, पित्त, कफ) होते हैं, शरीर के लिए संतुलित संतुलन आवश्यक होता है। नास्य विधि विशेष रूप से वात दोष को नियंत्रित करने में मदद करती है, जो मानसिक विकार और तनाव का मुख्य कारण होता है।

नास्य विधि की प्रक्रिया

1. तैयार करें: नास्य विधि को करने से पहले शरीर और मन को शांत और स्थिर करना आवश्यक होता है। इसके लिए किसी व्यक्ति को एक आरामदायक स्थिति में रखा जाता है। सिर को थोड़ा पीछे की ओर झुकाकर दबाया जाता है, ताकि नाक के मार्ग से तेल आसानी से मस्तिष्क तक पहुंच सके।

2.तेल का चयन: औषधीय तेलों का उपयोग करने के लिए विशेष प्रकार की नास्य विधि का उपयोग किया जाता है। ये तेल आयुर्वेद द्वारा व्यक्ति की समस्या और दोष के अनुसार चुना जाता है। सामान्यतः तिल का तेल, अनुतैल, या ब्राह्मी घृत जैसे औषधीय तेलों का प्रयोग किया जाता है।

3.तेल डालना: नाक के दोनों नासिका छिद्रों में 2 से 5 बूंद तेल डाला जाता है। इसके बाद व्यक्ति को धीरे-धीरे सांस लेने और तेल को अंदर खींचने के लिए कहा जाता है।

4.आराम और मालिश: तेल के बाद व्यक्ति को कुछ मिनट तक आराम करने की सलाह दी जाती है। साथ ही सिर और दाढ़ी की मालिश की जाती है, जिससे तेल आसानी से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र तक पहुंच सके।

5.शुद्धिकरण: तेल लगाने के बाद, किसी व्यक्ति को नाक से नाक और साइनस को साफ करने के लिए कहा जाता है। इससे शेष तेल और पदार्थ पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।

नास्य विधि के फायदे क्या है
नास्य विधि से पोषण संबंधी समस्याओं में सुधार होता है, जिससे चिंता, अवसाद, तनाव और अनिद्रा जैसी मानसिक समस्याओं में सुधार होता है। इस विधि का उपयोग स्मृति शक्ति को बढ़ाने और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है। नास्य विधि विधि साइनसाइटिस, साइनोसाइटिस और अन्य प्रकार के सिरदर्द से राहत दिलाती है। नास्य तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाता है और दैहिक ऑक्सिजन का इलाज करता है। नाक बंद, साइनस, और एलर्जी जैसी नासय विधि सांस्कृतिक एसोसिएटेड्स में भी अद्भुत है।

क्या नास्य विधि सुरक्षित है?
राजकीय आयुर्वेदिक नगर बलिया के प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. सुभाष चन्द्र यादव (विद्या) के शिष्यों को आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा निर्देशित नासिका प्रशिक्षण दिया जाता है। गलत तरीके से या बिना सही दिशा-निर्देश के गलत इस्तेमाल से नुकसान हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति को नाक, साइनस, या श्वसन तंत्र से संबंधित कोई गंभीर समस्या है, तो इस विधि को पहले डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए।


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