सेहत – कांतदार फल वाला चमत्कारी पेड़, 600 साल पुराना है! वर्क्स-गठिया का रामबाण इलाज
नैनीताल : वैसे तो प्रकृति में कई तरह की वनस्पतियां पाई जाती हैं। जिनमें कई पेड़-पौधे, फल स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद होते हैं। आज हम आपको पहाड़ में मिलने वाले एक ऐसे ही फल के बारे में बता रहे हैं। जो वैसे तो बेहद कठोर है लेकिन कई औषधीय गुणों से भरपूर है। हम बात कर रहे हैं पहाड़ों में उगने वाले ‘पैंगर’ की, जिसे अंग्रेजी में ‘चेस्टनट’ कहा जाता है। अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में इसकी खेती होती है। हृदय रोग के खतरों को कम करने के साथ-साथ हृदय रोग के खतरे को भी कम करने के साथ-साथ उच्च रक्तचाप वाले लोगों को भी यह जादुई माना जाता है। चेस्टनेट में कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, विटामिन सी और मैग्नीशियम की मात्रा पाई जाती है। बाजार में पैंगर 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक आसानी से बिकता है।साथ ही इसका सेवन गठिया रोग में भी मिलता है। इसे भूनकर या फिर छीनकर कच्चा माल निकाला जाता है।
डिप्टी स्थित डीएसबी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. ललित तिवारी ने लोकल 18 से खास बातचीत के दौरान बताया कि पैंगर का वैज्ञानिक नाम केस्टेनिया सेतिवा है। इसे मीठा सहबलूत, स्पैनिश सहबलूत के नाम से भी जाना जाता है। यह यूरोप और एशिया में सबसे ज्यादा पाया जाता है। यह समशीतोष्ण जंगल में स्थित है। दुनिया में इसकी खेती भी बहुत अच्छी होती है. पैंगर का पौधा 20 से 30 मीटर तक ऊँचा होता है। इसका व्यास 2 मीटर तक होता है। इस वृक्ष की आयु 500 से 600 वर्ष तक है। इसमें काले रंग का फल लगता है. जो कई औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है।
में है पैंगर के जंगल
प्रोफेसर शिक्षक हैं कि पेजर यानी चेस्टनेट का इतिहास बेहद पुराना है। इनका इतिहास 4000 वर्ष पुराना है। 2000 ईसा पूर्व के आसपास इसमें उल्लेख किया गया है। 850 से 950 ईसा पूर्व के दौरान चारकोल का प्रयोग किया गया था। उन्होंने इसका अध्ययन पहली सदी में फ्रांस, जर्मनी, जॉर्जिया, अर्बेनिया में किया। जिसके बाद यह सीरिया, लेबनान में पहुंच और धीरे-धीरे विश्व के कई देशों में इसकी खेती होने लगी। उन्होंने बताया कि यूरोपीय देशों में जंगल कैसे पाये जाते हैं।
गठिया रोग का रामबाण इलाज
शिक्षक प्रशिक्षुओं में चैस्टनेट में फिनोल, स्ट्रेंथ, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सहित कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह कम मात्रा में खाना ही लाभकारी है। यह कड़वे फल के रूप में जाना जाता है। यह गठिया के रोग में भी बेहद कम है। उत्तराखंड का मौसम उपयुक्त है यही कारण है कि उत्तराखंड में पेड़ उगते हैं। पैंगर का सेवन सॉसेज, रॉ यान फिर राख में भूनकर किया जाता है।
पहले प्रकाशित : 28 अगस्त, 2024, 13:21 IST
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