सेहत – चलो गाँव की ओर ! भारतीयों को नहीं भा रही शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी, अब चाहिए शांति और ईमानदारी
धीमी गति से जीवन जीने के लाभ: पैसे की चाहत और जिंदगी में सफलता पाने की होड़ ने लोगों को मशीन की तरह बना दिया है। रोज सुबह से लेकर रात तक भागदौड़ करना और ज्यादा से ज्यादा काम करने की आदत लोगों की शारीरिक और मानसिक स्थिति खराब हो रही है। तेजी से लोकप्रिय लाइफस्टाइल और वर्कशॉप के बीच भारत में अब एक नया ट्रेंड सामने आ रहा है। सभी उम्र के लोगों की साख भरी जिंदगी के बजाय स्लो लिविंग (धीमी जिंदगी) को लत की ओर बढ़ाया जा रहा है। बड़ी संख्या में लोग बड़े शहरों की भीड़ से दूर गांव में शांति की जिंदगी जीना चाह रहे हैं।
कोविड-19 महामारी में लाखों लोगों को शहर से अलग कर दिया गया और उस दौर में लोगों को उनके जीवन की प्राथमिकताओं पर फिल्मी सलाहकार के तौर पर मजबूर किया गया। फेसबुक और पर्सनल टाइम सोशल डॉक्यूमेंट्री ने लोगों को अपने व्यस्त जीवन से बाहर की यात्रा और अपनी-अपनी कंपनी को डेट करने का मौका दिया था। अब कई भारतीय बड़े पैमाने पर तनाव और लगातार भाग से लेकर सप्ताहांत तक के लिए स्लो लिविंग्स की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। ध्यान और योग से लेकर ग्रामीण इलाकों में शांति और सादगी से लोग अपने जीवन को लेकर स्थिर और स्थिर बनाने की कोशिशों में लगे रहते हैं।
सोशल मीडिया से पॉप संगीत हो रहा ये ट्रेंड
आजकल युवा अपने वैज्ञानिकों और निजी जीवन के बीच एक-एक स्मारक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बदलाव केवल आत्म संतुष्टि नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि लोग अब फिटनेस और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। रूढ़िवादी विचारधारा वाले लोग लेखक, योग प्रशिक्षक और विशेष रूप से छोटे व्यापारी शामिल हैं। आर्थिक और सामाजिक लाभ के साथ-साथ यह जन-जन को मानसिक शांति और संतोष का संदेश देने में सक्षम साबित हो रही है। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इस नए ट्रेंड की प्रमुखता इसे एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में पेश कर रही है।
अरबपति बिजनेसमैन ने भी बनाई ये राह
भारतीय अरबपति बिजनेसमैन और टेक कंपनी ज़ोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बू इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण हैं। साल 2019 में वह अमेरिका में अपनी हाई-प्रोफाइल नौकरी खाली कराकर तमिलनाडु के तेनकासी जिले के एक गांव में चली गईं। उन्होंने मेट्रो सिटी के बजाय मथलमपराई गांव में एक मसाला को अपना ऑफिस बनाया। श्रीधर एक सफल टेक कंपनी ने उत्साहित होकर गांव के जीवन की शांति का आनंद लिया है। यह बदलाव एक सकारात्मक संकेत है कि भारतीय समाज अपने जीवन की गुणवत्ता को मजबूत कर एक स्थिर जीवन शैली की ओर कदम बढ़ा रहा है।
मानसिक मूल्यांकन की पुष्टि करता है तेज प्रमाणित जीवन
नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर और साइकेस्ट्रिस्ट डॉ. प्रेरणा कुकरेती ने News18 को बताया कि हद से ज्यादा भागदौड़, पूर्ण जीवन स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। इससे कई शारीरिक समस्याओं के साथ मानसिक विकार उत्पन्न होने लगते हैं। इससे तनाव, एंजाइटी और डिप्रेशन समेत कई मानसिक विकार की नौबत हो सकती है। इस लाइफ़ का बिल्कुल बुरा प्रभाव पड़ता है और लोग रहते हैं। विशाल बिजी योजना में लोग आस-पास रहने वाले लोगों से भी नहीं मिल पाते हैं और मेंटल हेल्थ लैब्रेटी रहते हैं।
निर्णय लेने की क्षमता कम हो सकती है। इस तरह के लोग साइंटिफिक रूप से थका हुआ और अलग-अलग तरह से महसूस कर सकते हैं। खैर ही लोग इस भागदौड़ में पैसे की तलाश में सफल हो सकते हैं, लेकिन लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। युवाओं में ये ज्यादा परेशानी नहीं होती है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे ये आदतें विकराल होती हैं। ऐसे में जरूरी है कि अपने करियर के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी खास ख्याल रखें।
शहरों में स्लो लिविंग का पालन कैसे किया जा सकता है
डॉक्टर प्रेरणा कुकरेती ने बताया कि शहरों में भी कुछ हद तक स्लो लिविंग का पालन किया जा सकता है। इसके लिए आप अपने लिए प्रतिदिन कुछ वक्ता और अपना पसंदीदा काम करें। अधिक भाग दौड़ के बजाय पर्याप्त आराम करें और दैनिक अपनी नींद अवश्य पूरी करें। समय- समय पर ऑफिस के काम से छुट्टी लेकर कहीं शांत जगह पर घूमने की जगह और शहर की भीड़भाड़ से दूर वक्ता कहा जाता है।
दैनिक, योग और चिकित्सा उद्योग के लिए समय और उपकरण खाना खाने की कोशिश करें। अपनी लाइफस्टाइल को सुधारें और दोस्तों से मिलना-जुलना शुरू करें। आप अपने जीवन को साधारण बनाए रख सकते हैं और अपने जीवन को सरल बना सकते हैं।
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पहले प्रकाशित : 4 सितंबर, 2024, 10:33 IST
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