सेहत – कौन सी बेटी सच में होती है माँ की परछाई? दोनों का शारीरिक दर्द एक जैसी बीमारी क्यों है?

कहते हैं बेटी मां की परछाई होती है. यह झूठ नहीं है. उनका सिर्फ चेहरा, बाल, सोच और बोलचाल का तरीका ही नहीं बल्कि शरीर में हो रहे हर बदलाव एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। यही नहीं अगर मां को कोई बीमारी है तो बेटी को भी हो सकती है. यानी जैसी मां की सेहत होगी, वैसी ही मां की सेहत होगी बेटियां। यह जेनेटिक होता है. अगर बेटियां अपनी मां की मेडिकल कंडीशन को जान लें तो वह समय रहते खुद को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से बचा सकती हैं।

माँ-बेटी की मेंस्ट्रुअल साइकल एक जैसी
दिल्ली के सीके बिरला हॉस्पिटल में ऑब्स्ट्रेटिक्स और सिंगिंगोलॉजी में लीड कंसल्टेंट डॉ. तृप्ति रहेजा कहा जाता है कि मां और बेटी जेनेटिकली एक जैसी दिखती हैं लेकिन कई बार कुछ एनवायरमेंट कंडीशन, लाइफस्टाइल और मेडिकल कंडीशन के लिए जरूरी नहीं है कि दोनों में एक जैसी ही नजर आए। हालाँकि माँ-बेटी की स्ट्रैटमैनुअल साइकल एक ऐसी ही है, जैसी दोनों की बॉडी क्लॉक की झलकियाँ-जुलती है। जैसे होटल किस उम्र में शुरू होंगे, स्ट्रा मैनुअल पुस्तिका से जुड़े में कोई बीमारी हो सकती है या नहीं।

पीसी ओएस होना तय है
जिन मां को पॉलीसोस्पेक्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) होता है, उनकी बेटी में यह बीमारी मिलनी तय है। अगर माँ के पास पीसी ओएस भी नहीं है लेकिन फिर भी यह बीमारी है तो बेटी को चिंता हो सकती है। इसी तरह अगर किसी मां को मेनोपॉज 50 साल की उम्र में शुरू हुआ और वह इतने साल तक चली, क्या लक्षण थे, वहीं सभी चीजें बेटी में भी दिख सकती हैं।

बॉडी फिट और जॉइंट पेन भी एक जैसा
बेटी का शरीर मजबूत और लंबाई मां के आकलन पर आधारित है। अगर मां का शिकार है तो बेटी का वजन भी ज्यादा होगा और मां की भूख होगी तो बेटी का शरीर भी बड़ा होगा। वहीं, अगर मां को ऑस्टियोपोरोसिस हो और सीने में दर्द रहता हो तो बेटी को भी जेनेटिकली यह बीमारी होना लाज़मी है।

मां और बेटी को एक तरह की बीमारी हो सकती है। (छवि-कैनवा)

समूह में शामिल है फ़ैमिली स्टूडियो
सिंगिंग डॉ.तृप्ति रहेजा कहा जाता है कि मां और बेटी की भी काफी पुरानी कहानियां हैं। गर्भवती महिला से फैमिली क्लासिकल क्लासिकी आती है। मां और बेटी के बीच इस दौरान इमोशन भी मिलते-जुलते हैं। अगर मां को नौकरी मिल रही हो तो बेटी को भी इस बीमारी का खतरा रहता है। इसकी तरह हाई ब्लड वर्कशॉप और हाई कोलेस्ट्रॉल भी इस दौरान हो सकते हैं क्योंकि मां इन बैचलर की प्रैक्टिस करती हैं। अगर मां को दिल की धमनी का रोग हो तो बेटी में भी इसकी आशंका रहती है।

अवसाद हो सकता है
द जनरल ऑफ न्यूरोसाइंस पापी एक रिसर्च के अनुसार मां और बेटी को मूड और मेंडल डिसऑर्डर एक जैसा होता है। अगर मां अवसाद का शिकार रही हो तो बेटी के साथ भी ऐसा हो सकता है। इसी तरह अगर मां और बच्चे की सर्जरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार हो रही हो तो बेटी भी अपनी सर्जरी के बाद इसी तरह की मानसिक विकार का शिकार हो सकती है।

बेटी को एचपीवी वैक्सीन लगाई गई
हर मां को अपनी बेटी को 10 से 15 साल की उम्र में एचपीवी वैक्सीन डॉक्टर से मिलवाना चाहिए। यह वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर से बचाती है जो मैरमैन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण होती है। यह वायरस संबंध बनाने से शरीर में प्रवेश करता है। 10 से 15 साल की उम्र में 6 महीने के अंतराल में इसके 2 डोज दिए जाते हैं। अगर कोई महिला सेक्सुअली एक्टिव नहीं है तो यह टीका 26 साल की उम्र तक लगाया जा सकता है। इस उम्र में 3 डोज दिए गए हैं. पहली और दूसरी खुराक 1 महीने के अंतर पर और तीसरी खुराक 6 महीने बाद की है।

हर महिला को 40 वर्ष की आयु के बाद धार्मिक स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए (छवि-कैनवा)

माँ को बेटी से फ्रैंक करनी चाहिए बात
माँ और बेटी का रिश्ता दिल से खूबसूरत होता है लेकिन कई बार माँ अपनी बेटी से दुःखी हो जाती हैं। वहीं, कुछ घरों में मां-बेटी के बीच इस तरह की बातें ही नहीं होती हैं, जबकि हर मां को अपने मेडिकल कंडीशन के बारे में बेटी को बताना चाहिए और बेटी को अपना सवाल पूछना चाहिए। जब बेटी छोटी हो तो मां को अपने स्कूल के अनुभव साझा करने चाहिए ताकि बेटी को पता चल सके कि इस दौरान उसे क्या परेशानियां हो सकती हैं। इसी तरह मेनोपॉज़ के बारे में भी फ़्रैंक ने बात करनी चाहिए ताकि बेटी को माप रहे कि माँ को यह कब हुआ और इस दौरान क्या परेशानी हुई। मां की मेडिकल कंडीशन पता होगी तो बेटी के भविष्य में होने वाली परेशानी से पहले ही ध्यान रखा जा सकता है।

पैप स्मीयर टेस्ट और मैमोग्राफी जरूरी
डॉ. तृप्ति रहेजा के अनुसार अगर किसी महिला की मां को कोई परेशानी हो तो सबसे पहले कुछ मेडिकल टेस्ट करवाए जाते हैं और अगर वह पाई जाती है तो समय पर इलाज शुरू किया जाता है। लेकिन 40 साल की उम्र के बाद हर महिला को स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए। विशेष रूप से हर 3 साल का पैप स्मीयर टेस्ट कराना चाहिए। यह सर्वाइकल कैंसर डिटेक्ट करने के लिए होता है। इसके अलावा हर साल कैंसर से बचाव के लिए मैमोग्राफी करानी चाहिए और रजोनिवृत्ति के बाद डेक्सा स्कैन जरूरी है। इसमें कैल्शियम की जांच होती है।


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