Political – कांग्रेस को जब मिली थी सबसे ज्यादा सीटें फिर भी राजीव गांधी ने क्यों सरकार बनाने से कर दिया था मना?- #INA

सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी राजीव गांधी ने सरकार बनाने से अपने कदम पीछे खींच लिए थे

लोकसभा चुनाव 2024 के अंतिम चरण की सीटों पर शनिवार को मतदान होना है. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में है तो कांग्रेस अपनी वापसी से लिए बेताब है. ऐसे में अब सभी की निगाहें चार जून पर है, जिस दिन 2024 के चुनावी नतीजे आने वाले हैं. देखना है कि किसका सियासी मंसूबा कामयाब होता है, लेकिन त्रिशंकु लोकसभा की सूरत बनती है तो आमतौर पर सबसे बड़े दल को ही सरकार बनाने का निमंत्रण मिलता है.

साढ़े तीन दशक पहले सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी राजीव गांधी ने सरकार बनाने से अपने कदम पीछे खींच लिए थे. भारतीय राजनीतिक इतिहास में यह पहला बकाया था जब लोकसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में होने के बाद भी सरकार बनाने के लिए रजामंद तैयार नहीं हुए. यह वाकया 1989 के लोकसभा चुनाव का है, जब कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं, लेकिन बहुमत से दूर थी. इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था.

1984 में कांग्रेस को मिली थीं 414 सीटें

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे. 1984 में इंदिरा गांधी की सहानुभूति में कांग्रेस को 414 सीटें मिली थी. पांच साल के बाद 1989 में राजीव गांधी के अगुवाई में लोकसभा चुनाव हुए तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस को 197 सीटें मिली थी तो जनता दल के हिस्से में 143 सीटें आईं थी. 1984 की तुलना में कांग्रेस को 1989 में 217 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर की पार्टी जनता दल बनी थी.

साल 1989 के लोकसभा चुनाव में कोई भी दल को बहुमत का आंकड़ा नहीं मिला था. हालांकि, कांग्रेस 197 लोकसभा सीटों से साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी, जिसके चलते तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने कांग्रेस को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया. राजीव गांधी ने 1889 के चुनाव नतीजे को अपने खिलाफ जनादेश बताते हुए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सरकार बनाने से भी इंकार कर दिया. कांग्रेस के कदम पीछे खींच लेने के बाद जनता दल ने सरकार बनाने के लिए दावा पेश किया.

1989 के चुनाव में कांग्रेस को 197 सीटें मिली थीं

1989 के चुनाव में कांग्रेस को 197, जनता दल को 143, बीजेपी को 85 और लेफ्ट पार्टियों को 47 सीटें मिली थी. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. वीपी सिंह के अगुवाई वाली जनता दल की सरकार को दो परस्पर धुर विरोधी विचारधारा वाले बीजेपी और वामपंथी दलों ने बाहर से समर्थन दिया था. इस तरह वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन 11 महीने के बाद बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया. इसके चलते वीपी सिंह सरकार गिर गई और जनता दल दो धड़ों में बंट गई. चंद्रशेखर नेतृत्व वाले धड़े को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया.

सात महीने में गिर गई थी चंद्रशेखर की सरकार

चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 में देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन सात महीने के बाद 21 जून 1991 को कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके चलते चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और लोकसभा चुनाव हुए. कांग्रेस इस बार भी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन इस बार भी किसी दल को बहुमत नहीं मिला था. हालांकि, लोकसभा चुनाव के बीच राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाया. कांग्रेस को 232 सीटें मिली थी.

1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला

1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन बीजेपी 161 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और कांग्रेस को 140 सीटें मिली थी. अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में इसी आधार पर न केवल सरकार बनाने का दावा किया था बल्कि तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ भी दिला दी थी. वाजपेयी ने सरकार तो बना ली, लेकिन बहुमत नहीं जुटा सके. किसी भी दल ने बीजेपी को समर्थन देने से इनकार कर दिया, जिसके चलते 13 दिन में ही अटल सरकार गिर गई. किसी भी दल के समर्थन देने से इनकार करने के चलते बहुमत का दावा अटल बिहारी वाजपेयी ने पेश नहीं किया.

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